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Nepal: नेपाल के प्रसिद्ध इतिहासकार सत्य मोहन जोशी का 103 साल की उम्र में निधन, भारत ने जताया दुख

Nepal: नेपाल के वयोवृद्ध इतिहासकार और सांस्कृतिक विद्वान सत्य मोहन जोशी (103 वर्ष) का रविवार को निधन हो गया. वे निमोनिया, डेंगू व दिल की बीमारी से पीड़ित थे.

Nepal: नेपाल के वयोवृद्ध इतिहासकार और सांस्कृतिक विद्वान सत्य मोहन जोशी का रविवार को निधन हो गया. 103 वर्षीय सत्य मोहन जोशी निमोनिया, डेंगू व दिल की बीमारी से पीड़ित थे. तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें किस्त मेडिकल कॉलेज एवं टीचिंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कुछ दिन पहले ही अस्पताल ने मेडिकल रिपोर्ट जारी कर बताया था कि उनकी स्वास्थ्य स्थिति गंभीर बनी हुई है.

भारत ने जताया शोक

काठमांडू में भारतीय दूतावास ने ट्वीट कर नेपाल के साहित्यकार सत्यमोहन जोशी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. साथ ही कहा कि उनके कार्यों से उनकी विरासत प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी. सत्य मोहन जोशी उम्र से जुड़ी अन्य बीमारियों के अलावा हार्ट और प्रोस्टेट की समस्याओं से भी पीड़ित थे. 23 सितंबर से उनका प्रोस्टेट और हृदय संबंधी बीमारियों का इलाज चल रहा था. बाद में उनकी स्थिति में सुधार नहीं होने पर उन्हें आईसीयू में शिफ्ट करा दिया गया था.

ललितपुर में हुआ था सत्य मोहन जोशी का जन्म

द काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, सत्य मोहन जोशी का जन्म 1919 में पाटन, ललितपुर में हुआ था. उन्होंने तीन बार नेपाल का शीर्ष साहित्यिक सम्मान मदन पुरस्कार (Madan Puraskar) जीता है. 60 से अधिक पुस्तकों के साथ ही सत्य मोहन जोशी को साहित्य, इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में उनके काम के लिए जाना जाता है. इससे पहले, अप्रैल में सत्य मोहन जोशी को सीने में दर्द की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. हालांकि, बाद में उन्हें छुट्टी दे दी गई.

सत्य मोहन जोशी के बारे में जानें

अपने घर पर अक्षर सीखने के बाद सत्य मोहन जोशी ने बाद में काठमांडू के दरबार हाई स्कूल में दाखिला लिया. इसके बाद उन्होंने त्रिचंद्र कॉलेज में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की. 1959 में पुरातत्व और सांस्कृतिक विभाग के पहले निदेशक बने और राष्ट्रीय नाचघर, काठमांडू में राष्ट्रीय रंगमंच, पाटन में पुरातत्व उद्यान, टौलिहावा में पुरातत्व संग्रहालय एवं राष्ट्रीय चित्रकला संग्रहालय की स्थापना की. 1960 में राजा महेंद्र के तख्तापलट के बाद सत्य मोहन जोशी चीन चले गए. यहां उन्होंने पेकिंग ब्रॉडकास्टिंग इंस्टीट्यूट में नेपाली पढ़ाना शुरू किया. चीन में अपने प्रवास के दौरान उन्होंने मल्ला राजवंश के एक मूर्तिकार अर्निको पर शोध किया, जो 1260 ईस्वी की शुरुआत में चीन चले गए थे.

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