नयी दिल्ली : पाकिस्तान की सियासत के किस्से काफी दिलचस्प होते हैं. अब एक नया मामला सामने आया है, जब पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली ने सर्वसम्मति से फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ ईश निंदा के विरोध में फ्रांस से अपने राजदूत को वापस बुलाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया. मालूम हो कि वर्तमान में फ्रांस में पाकिस्तान का कोई राजदूत नहीं है. पेरिस में तैनात राजदूत मोइन-उल-हक को करीब तीन माह पहले तबादला करते हुए चीन का राजदूत बना दिया गया था. उसके बाद से फ्रांस में पाकिस्तान का कोई राजदूत नहीं है.
National Assembly of Pakistan has unanimously passed a resolution condemning blasphemous caricatures in France.
The resolution was presented by the Minister of Foreign Affairs @SMQureshiPTI . pic.twitter.com/XCshKSiVNb— National Assembly 🇵🇰 (@NAofPakistan) October 26, 2020
जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान अब तुर्की के साथ इस्लामिक दुनिया का नेता बनने की जुगत में है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की इस्लाम पर की गयी टिप्पणी के खिलाफ पाकिस्तान में हंगामा शुरू हो गया. इसके बाद पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति के बयान को इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देनेवाला करार देते हुए राजनयिक रिश्ते खत्म करने की मांग की गयी.
पाकिस्तान के दोनों सदनों में मामले का प्रस्ताव निर्विरोध पारित किया गया. लेकिन, नेशनल एसेंबली में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने फ्रांस से अपने राजदूत को बुला लिये जाने का प्रस्ताव पेश किया. इस प्रस्ताव को विपक्षी दलों ने भी समर्थन दे दिया. प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सहित अन्य विपक्षी दलों द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव को सहमति दिये जाने के बाद विदेश मंत्री की जानकारी को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
संसद में कहा गया है कि पैगंबर मोहम्मद के प्रति अपार आस्था निश्चित तौर पर इस्लाम का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कोई भी मुस्लिम ऐसे घृणित अपराधों को बरदाश्त नहीं करेगा. सीनेट के चेयरमैन ने निर्देश दिया है कि पारित प्रस्ताव की प्रति पाकिस्तान में फ्रांस के राजदूत को भी भेजी जाये.
वहीं, पाकिस्तान के डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को फ्रांस से पाकिस्तान के राजदूत को वापस बुलाने की बात मालूम थी. लेकिन, इस्लाम का रहनुमा बनने की कोशिश में उन्होंने सदन को नहीं बताया कि फ्रांस में कोई राजदूत वर्तमान में तैनात नहीं है. वहीं, पाकिस्तान ने दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सार्वजनिक भावना या धार्मिक आस्था को आहत करने और धार्मिक-द्वेष, कटुता और टकराव को हवा देने के लिए दुरुपयोग नहीं होना चाहिए.