नोबेल पुरस्कार विजेता और तालिबानी बर्बरता की शिकार ‘गुल मकई’ ने रचाई शादी, सोशल मीडिया पर शेयर की फोटो
वर्ष 2009 में 11 साल की मलाला ने तालिबानी बर्बरता के खिलाफ बदले हुए 'गुल मकई' के नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू कर दिया. बीबीसी उर्दू की इस डायरी में उन्होंने तालिबानियों की बर्बरता का पर्दाफाश किया.
लंदन : पाकिस्तान के स्वात घाटी क्षेत्र में तालिबानी बर्बरता की शिकार और सबसे कम उम्र में नोबेल की शांति पुरस्कार जीतने वाली सामाजिक कार्यकर्ता मलाला युसूफजई ने शादी रचा ली है. अपनी शादी की तस्वीर उन्होंने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी साझा किया है. मलाला ने अपने ट्विटर हैंडल से जानकारी दी है कि उन्होंने घर पर ही शादी रचा ली है और वह आगे की जिंदगी को लेकर काफी उत्साहित हैं.
माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर तालिबानी बर्बरता की शिकार और नोबेल की शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई ने लिखा, ‘आज मेरी जिंदगी का बेहद खास दिन है, असर और मैंने शादी कर ली है. हमने अपने परिवारों के साथ बर्मिंघम में घर पर ही निकाह समारोह पूरा किया. कृपा करके हमें अपनी दुआएं दें. आगे के सफर में साथ चलने के लिए हम उत्साहित हैं.’
Today marks a precious day in my life.
Asser and I tied the knot to be partners for life. We celebrated a small nikkah ceremony at home in Birmingham with our families. Please send us your prayers. We are excited to walk together for the journey ahead.
📸: @malinfezehai pic.twitter.com/SNRgm3ufWP— Malala Yousafzai (@Malala) November 9, 2021
बता दें कि मलाला युसूफजई का जन्म पाकिस्तान स्थित स्वात क्षेत्र के मिंगोरा शहर में हुआ है. मिंगोरा शहर पर मार्च 2009 से लेकर मई 2009 तक तालिबानियों (तहरीक-ए-तालिबान) ने कब्जा कर रखा था. इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने स्वात क्षेत्र में नियंत्रण हासिल करने के लिए अभियान की शुरुआत भी की थी. तालिबानियों और पाकिस्तानी सेना के संघर्ष के बीच 11 साल की छात्रा मलाला ने ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया था.
वर्ष 2009 में मलाला ने तालिबानी बर्बरता के खिलाफ बदले हुए ‘गुल मकई’ के नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू कर दिया. बीबीसी उर्दू की इस डायरी में उन्होंने तालिबानियों की बर्बरता का पर्दाफाश किया. इसमें उन्होंने अपने दर्द को बयान किया. इस डायरी में उन्होंने लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था. इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया. मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा, लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी.’ इसके बाद मलाला पूरी दुनिया में विख्यात हो गईं.
मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की बर्बरता को लेकर जब से लिखना शुरू किया, तभी से उन्हें धमकियां मिलने लगीं. मलाला ने तालिबानियों के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज 11 साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया. मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से हैं, जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं.
तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी. लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी. स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी. मलाला भी इसकी शिकार हुई, लेकिन अपनी डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरूक किया, बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया. तालिबान ने वर्ष 2007 में स्वात को अपने कब्जे में लेकर और लगातार उत्पात मचाया.
तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे. कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने पर तक पाबंदी लगा दी थी. उस दौर के अपने अनुभवों के आधार पर इस लड़की ने बीबीसी उर्दू सेवा के लिए जनवरी, 2009 में एक डायरी लिखी थी. इसमें उसने जिक्र किया था कि टीवी देखने पर रोक के चलते वह अपना पसंदीदा भारतीय सीरियल ‘राजा की आएगी बारात’ नहीं देख पाती थीं.