काबुल : अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान अब सरकार बनाने की कवायद में जुट गया है. लेकिन एक्सपर्ट का मानना है कि तालिबान को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है. पाकिस्तान के फ्रंटियर पोस्ट के एक विश्लेषण में कहा गया है कि तालिबान अफीम और हेरोइन की तस्करी और तालिबान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों पर लगाये गये करों के माध्यम से सालाना डेढ़ अरब डॉलर से अधिक कमाई करता है.
समाचार एजेंसी एएनआई के विश्लेषण में कहा गया है कि तस्करी के अलावा पाकिस्तान और खाड़ी देशों से तालिबान को फंडिंग होती है. मई में संयुक्त राष्ट्र ने बताया था कि तालिबान की वार्षिक आय 300 मिलियन से 1.6 बिलियन डॉलर के बीच है. तालिबान ने पिछले साल केवल करों में 160 मिलियन डॉलर कमाए थे. ये वही कर थे जो वह अपने अधिकार वाले क्षेत्रों में लगाता है.
तालिबान ने बार-बार दावा किया है कि अफगानिस्तान में अब अफीम की खेती नहीं की जाती है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के रिकॉर्ड में कहा गया है कि अफगानिस्तान में पिछले साल अफीम के फसल में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यहां कम से कम 263 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फसल के साथ बोया जाता है. अफगानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक है. फ्रंटियर पोस्ट ने कहा कि ड्रग्स के कारोबार से तालिबान को सालाना 40 करोड़ डॉलर मिलते हैं.
Also Read: पाकिस्तान और तालिबान के बीच है सांठ-गांठ, इमरान सरकार के मंत्री शेख राशिद ने कबूली यह बात
पोलिटिको के अनुसार, 2020 में अफगान किसानों द्वारा उत्पादित अफीम का 90 प्रतिशत से अधिक स्मगलिंग होता है और ब्रिटेन के बाजार का 95 प्रतिशत हिस्सा अफगानी अफीम का है. पोलिटिको की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस महीने समाप्त हुई अमेरिकी उपस्थिति के बावजूद और कीमतों में गिरावट के बावजूद, नवीनतम अनुमान रिकॉर्ड स्तर पर उत्पादन दिखाते हैं. इस बीच, क्रिस्टल मेथ पर बड़ा लाभ मार्जिन अपने मूल इफेड्रा संयंत्र की खेती में भी तेजी ला रहा है.
लेकिन यह तालिबान के लिए आय का एकमात्र स्रोत नहीं रहने वाला है, क्योंकि तालिबान अब सरकार बनाने के बाद अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आय के अन्य स्रोतों की तलाश कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने यह पता लगाया है कि देश के खनिज तालिबान के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत होंगे क्योंकि देश में तांबा, बॉक्साइट, लौह अयस्क, संगमरमर, दुर्लभ लिथियम और सोना के भंडार हैं.
बीबीसी के अनुसार, तालिबान के सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर में स्थित निजी प्रायोजक हैं जो प्रति वर्ष 500 मिलियन डॉलर की फंडिंग करते हैं. बता दें कि काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने अफगान बैंक से पैसे लेने की कोशिश की थी, लेकिन वे पैसे वहां तिजोरियों में नहीं थे. ऐसे में तालिबान के हाथ कुछ भी नहीं लगा. सैन्य उपकरण भी तालिबान को काफी पैसे खर्च करने होंगे.
Posted By: Amlesh Nandan.