नयी दिल्ली : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान के हाथ पांव फूलने लगे हैं. हालांकि जैसे ही तालिबान ने अपनी शासन परियोजना शुरू की, चीन, रूस और यूके जैसे देशों ने समूह के साथ काम करने की इच्छा प्रदर्शित की है. लंबे समय से पाकिस्तान का समर्थन करने वाला कोई भी देश इसके समर्थन में नहीं आया है. पाकिस्तान के कुछ संगठन तालिबान के समर्थन में हैं तो कई विरोध में. तालिबान के आने से पाकिस्तान के आतंकी संगठनतहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी जैसे चरमपंथी समूहों को मजबूती मिल सकती है.
इससे इमरान खान के हाथ पांव फूल रहे हैं. हाल ही में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान के पुनरुत्थान के लिए अमेरिकी सेना की जल्दबाजी को जिम्मेदार ठहराया था. उन्होंने पाकिस्तान में रहने वाले समूह के सदस्यों को सामान्य नागरिक के रूप में वर्णित किया और यहां तक कि यह सुझाव दिया कि समूह द्वारा अफगानिस्तान को पुनः प्राप्त करना गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के समान था.
पाकिस्तान भारत के साथ अपने संघर्ष में अफगानिस्तान को एक रणनीतिक भागीदार के रूप में देखता है और इसलिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया के बावजूद, काबुल में मौजूद शक्तियों को गले लगाने के लिए तैयार है. जबकि पाकिस्तानी सरकार के भीतर कुछ गुटों ने तालिबान के विरोध का दावा किया है. विशाल बहुमत तालिबान को या तो इस्लामाबाद के लिए एक मूल्यवान सहयोगी या क्षेत्र में नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार करता है. हालांकि, तालिबान के प्रति पाकिस्तान की गणना खतरनाक रूप से पथभ्रष्ट साबित हो सकती है.
Also Read: तालिबान के हाथ लगा हथियारों का जखीरा, मिल गयी पूरी एयरफोर्स की ताकत, भारत के खिलाफ साजिश तो नहीं!
2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो के आक्रमण के बाद गिराये गये तालिबान शासन के नेताओं ने पाकिस्तान में शरण मांगी. तालिबान और अल कायदा के उग्रवादियों ने अफगानिस्तान की सीमा से लगे पाकिस्तान के कबायली इलाकों में पनाह ली. अधिकांश तालिबान लड़ाकों ने खुद को सीमावर्ती इलाकों तक सीमित कर लिया जहां पाकिस्तान सरकार 2003 से उन्हें रोकने की असफल कोशिश कर रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान की दोस्ती पुरानी है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई आज भी तालिबान को हथियार और पैसे सप्लाई करता है. इतना ही नहीं आईएसआई तालिबान आतंकियों को पाकिस्तान में पनाह भी देता है. 1980 के दशक में सीआईए और आईएसआई ने सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने वाले अफगानों को हथियार प्रदान किये और जिहाद में भाग लेने के लिए दुनिया भर के युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और भर्ती करने में मदद की.
1988 में पाकिस्तान ने अपने लगभग 30 लाख अफगान शरणार्थियों के लिए धार्मिक स्कूल खोलना शुरू किया. इन मदरसों ने छात्रों को तालिबान में शामिल होने के लिए प्रशिक्षित किया, जिनमें से 1.5 मिलियन सोवियत संघ के जाने के बाद अफगानिस्तान लौट आए.
Posted By: Amlesh Nandan.