नई दिल्ली : रूस यूक्रेन युद्ध का आज 17वां दिन है. इन दोनों देशों के युद्ध में अमेरिका यूक्रेन के समर्थन में मठाधीश बना बैठा है. हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बार फिर यूक्रेन में अपने सैनिकों को नहीं भेजने की बात कही है, लेकिन उन्होंने धमकी भी दी है कि अगर इन दोनों के युद्ध में वह कूदा तो स्थिति तीसरे विश्व युद्ध जैसी पैदा हो जाएगी. वहीं, रूस ने यह दावा किया है कि इस युद्ध में अमेरिका उसके खिलाफ यूक्रेन के जरिए जैविक हथियारों का इस्तेमाल करवा सकता है. इस दावा के पीछे उसका तर्क यह है कि अमेरिका ने पूरी दुनिया में जैविक हथियारों के लिए 30 देशों में 336 रिसर्च लैब बनवा रखे हैं. इनमें से करीब 26 लैब अकेले यूक्रेन में है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका रूस से लड़ने के लिए यूक्रेन में अपनी सेना नहीं भेजेगा. उन्होंने ट्वीट किया कि हम एक संयुक्त और मजबूत नाटो की पूरी ताकत से उस क्षेत्र के एक-एक इंच की रक्षा करेंगे. हम यूक्रेन में रूस के खिलाफ लड़ाई नहीं करेंगे. नाटो और रूस के बीच सीधी लड़ाई तीसरे विश्व युद्ध जैसा होगा. बाइडन हमेशा यही कहा है कि रूस के साथ सीधी लड़ाई के लिए अमेरिका यूक्रेन में अपने सैनिक नहीं भेजेगा, जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमी जेलेंस्की कई बार नाटो से सैन्य मदद मांग चुके हैं.
रूस ने यूक्रेन में जैविक रिसर्च लैब्स के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की बैठक बुलाई है. इस पर भारत ने कहा है कि जैविक और विषाक्त हथियार सम्मेलन के तहत दायित्वों से जुड़े विषयों को संबद्ध पक्षों के बीच परामर्श एवं सहयोग के जरिये सुलझाया जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि हमने यूक्रेन में मौजूद स्थिति पर बार-बार गंभीर चिंता व्यक्त की है. यूक्रेन के जैविक कार्यक्रमों की रिपोर्ट पर यूएनएससी में शुक्रवार को उन्होंने कहा कि भारत ने संबंधित देशों के हालिया बयानों और यूक्रेन से संबंधित जैविक गतिविधियों के बारे में व्यापक जानकारी पर गौर किया है. इस संदर्भ में हम जैविक और विषाक्त हथियार सम्मेलन को एक प्रमुख वैश्विक और गैर-भेदभावपूर्ण निरस्त्रीकरण सम्मेलन के रूप में भारत द्वारा दिए गए महत्व को रेखांकित करना चाहते हैं, जो जनसंहार के हथियारों की एक पूरी श्रेणी को प्रतिबंधित करता है.
रूस, चीन और अमेरिका रासायनिक या जैविक हथियारों के इस्तेमाल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय संधि के हस्ताक्षरकर्ता हैं. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आकलन है कि रूस ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दुश्मनों के खिलाफ हत्या के प्रयासों को अंजाम देने में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है. रूस सीरिया में असद सरकार का भी समर्थन करता है, जिसने एक दशक लंबे गृहयुद्ध में अपने लोगों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया. मॉस्को ने शुरू में दावा किया था कि उसके आक्रमणकारी बलों को यूक्रेन में जैविक हथियारों के अनुसंधान को छिपाने के जल्दबाजी में किए गए प्रयासों के सबूत मिले हैं. रूसी सेना के विकिरण, रासायनिक और जैविक सुरक्षा बल के प्रमुख इगोर किरिलोव ने गुरुवार को कहा कि कीव, खारकीव और ओडेसा में अमेरिकी प्रायोजित प्रयोगशालाएं ऐसे खतरनाक रोगाणुओं पर काम कर रही थीं जिन्हें विशेष तौर पर रूसियों और अन्य स्लाव लोगों को लक्षित करने के लिए डिजाइन किया गया है.
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आसान भाषा में कहा जाए तो जैविक हथियार में किसी विस्फोटक इस्तेमाल नहीं किया जाता है, बल्कि इसमें कई तरह के वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है. जैविक हमले से लोग गंभीर रूप से बीमार होने लगते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है. इसके अलावा, शरीर पर इस हमले के बहुत भयानक असर होते हैं. कई मामलों में लोग विकलांग और मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. जैविक हथियार कम समय में बहुत बड़े क्षेत्र में तबाही मचा सकते हैं. इसका ताजा उदाहरण चीन के वुहान लैब से निकला कोरोना वायरस है. चीन पर यह आरोप हैं कि उसने वुहान लैब से कोरोना के वायरस फैलाए, जिससे दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हो गई और वैश्विक अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई, जिसका फायदा चीन को मिला है.