Scientist who fought Ebola and HIV affected by COVID-19 सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक पीटर पायोट भी कोरोना संक्रमित पाए गए. जिसके बाद उन्हें आनन-फानन में एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जहां वे करीब एक सप्ताह भर्ती रहे. फिलहाल, वे अपने लंदन वाले घर में कोविड-19 से जंग लड़ रहे हैं. उनकी स्थिति में काफी सुधार आया है. हालांकि, उनका कहना है कि मैं अब सीढ़ियां चढ़ नहीं पाता, हांफने लगता हुं.
आपको बता दें कि कई शोध में मालूम चला है कि कोरोना मरीजों के इम्यूनिटी पावर को काफी प्रभावित करता है. ज्ञात हो कि लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के निदेशक और विय्रोलॉजिस्ट पीटर ने ही इबोला वायरस की खोज की थी.
बेल्जियम में पले-बढ़े पिओट भी 1976 में हुए इबोला वायरस के खोजकर्ताओं में से एक थे. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी संक्रामक रोगों से लड़ने में और वायरस के उपचार की खोज में बिता दिया.
इन्होंने 1995 से 2008 के बीच एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम का नेतृत्व भी किया था. वर्तमान में पिओट कोरोनवायरस वायरस सलाहकार के तौर पर यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के साथ काम कर रहे हैं. संक्रमित पाए जाने के बाद उन्होंने कहा कि नए कोरोनो वायरस ने आखिर मुझे अपने चपेट में ले ही लिया.
साइंसमैग में छपी रिर्पोट के मुताबिक उन्हें अचानक से 19 मार्च को ही तेज बुखार हुआ था. जिसके बाद उनके सिर में असहनिय दर्द उठा. हालांकि, उस समय उन्हें खांसी नहीं थी. बावजूद इसके उन्होंने घर से लगातार काम किया.
हालांकि, उन्हें संदेह हो गया था कि शायद वे कोविड-19 के शिकार हो गए हैं. इसलिए इन्होंने अपने घर के गेस्ट रूम में खुद को क्वारंटाइन कर लिया. बावजूद इसके इनका बुखार समाप्त नहीं हुआ. इससे पहले पिओट कभी गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़े थे. उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में बीमारी के लिए कोई छुट्टी भी नहीं ली थी.
उन्होंने आगे बताया कि वे काफी स्वस्थ लाइफ जीते हैं. हालांकि, कोरोना के फैलने का एकमात्र कारण मेरी आयु है. आपको बता दें कि वे अभी 71 वर्ष के आशावादी इंसान है. और यही कारण है कि इन्होंने इस वायरस को हल्के में ले लिया. इन्हें लगा कि यह खुद चला जाएगा. लेकिन 1 अप्रैल को, एक डॉक्टर दोस्त के कहने पर इन्होंने पूरी तरह जांच कराने की सोची क्योंकि उनके बुखार में कोई कूी नहीं आ रही थी. और थकावट से पूरा शरीर चुभ रहा था.
जब इन्होंने इलाज करवाया तो ऑक्सीजन की काफी कमी पायी गयी इनके शरीर में. हालांकि, उनका कहना है कि इस समय तक उन्हें सांस लेने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. जांच में मालूम चला कि ये गंभीर रूप से निमोनिया के लक्षण वाले कोविड-19 के शिकार थे. जिसके कारण उन्हें अजीब से थकावट महसूस होते रहती थी. उन्होंन बताया कि मैं उस एहसास को कभी नहीं भूल पाउंगा. इस वायरस के कारण मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. हालांकि, मैंने खुद इस दौरान जो शोध किया वह भी अनोखी है. मैंने पाया कि सही इलाज से वायरस तो गायब हो जाता है लेकिन इसके परिणाम हफ्तों तक शरीर को सुस्त रखते हैं
उन्होंने कहा कि जैसा कि मैंने सुना था कि संक्रमित मरीजों को वेंटिलेटर पर रखा जाता है. मुझे भी लगा कि मेरे साथ भी यही होने वाला है. हालांकि, मैं ऑक्सीजन मास्क लगाने से ठीक होने लगा. उस समय मैं पहली बार काफी डर गया था. इस दौरान एक सप्ताह तक मेरी आवाज नहीं निकल पाती थी. आज भी शाम को मेरी हिम्मत जवाब दे देती है. उस समय मेरे दिमाग में हमेशा यही सवाल घूमता रहता था कि जब मैं इससे बाहर निकलूंगा तो कैसा होगा मेरा जीवन?
आगे उन्होंने बताया कि डिस्चार्ज होने के एक सप्ताह बाद, मुझे सांस लेने में दिक्कत होने लगी. जिसके बाद मुझे फिर से भर्ती करवाया गया. जहां मेरी हर्ट 170 की रेट से धड़क रही थी. उन्होंने कहा कि इस दौरान जितना मैं इस वायरस को समझने की कोशिश कर रहा था, उतने ही अधिक सवाल उठ रहे थे. हालांकि, पूरे सात सप्ताह बाद मेरी स्थिति में सुधार आ ही गयी.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.