वैज्ञानिकों ने कहा, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका के कोरोना टीका ने हौसला बढ़ाया है लेकिन लड़ाई लंबी है
भारत और दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका द्वारा तैयार कोरोना वायरस के टीके ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं, क्योंकि यह एंटीबॉडी भी तैयार करता है और प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने का भी काम करता है . हालांकि, आगाह किया है कि लड़ाई अभी बहुत लंबी है .
नयी दिल्ली : भारत और दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका द्वारा तैयार कोरोना वायरस के टीके ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं, क्योंकि यह एंटीबॉडी भी तैयार करता है और प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने का भी काम करता है . हालांकि, आगाह किया है कि लड़ाई अभी बहुत लंबी है .
पत्रिका ‘लांसेट’ द्वारा मानव परीक्षण के पहले चरण के बाद टीके को सुरक्षित और प्रभावी बताए जाने के मद्देनजर वैज्ञानिक बिरादरी ने इस नतीजो को ‘बहुत उत्साहजनक’, दिलचस्प, उम्मीदें बढ़ाने वाला बताया है . परीक्षण के पहले चरण के तहत अप्रैल और मई में ब्रिटेन के अस्पतालों में 18 से 55 साल के 1077 स्वस्थ लोगों को टीके की खुराक दी गयी .
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दुनिया में 1.47 करोड़ लोगों को संक्रमित कर चुके और छह लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुके कोविड-19 का टीका तैयार करने के लिए कई देशों में प्रयास चल रहे हैं . ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के नतीजों पर भी करीबी नजर रखी जा रही है .
विषाणु विज्ञानी उपासना रे ने पीटीआई-भाषा से कहा कि यह ‘आदर्श’ स्थिति है कि टीके ने एंटीबॉडीज भी बनायी और प्रतिरक्षा तंत्र को भी मजबूत करने का काम किया . यह दोतरफा फायदा है . कोलकाता के सीएसआईआर-भारतीय रसायन जीव विज्ञान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईसीबी) में वरिष्ठ वैज्ञानिक रे ने कहा कि प्रभावी उपचार और लंबे समय तक सुरक्षा के लिए दोनों चीजों का होना जरूरी है .
नयी दिल्ली में राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान के एक प्रतिरक्षा वैज्ञानिक सत्यजीत रथ ने इस नतीजे को दिलचस्प और उत्साहजनक बताते हुए कहा कि इससे प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती मिली और शरीर में एंटीबॉडीज का भी स्तर बढ़ गया .
रथ ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘टीके से कोई प्रतिकूल प्रभाव नजर नहीं आया है . ” साथ ही जोड़ा कि हल्के साइड इफैक्ट भी पैरासिटामोल से ठीक हो गए . अध्ययन में भागीदारों को सिर दर्द और थकावट के साइड इफैक्ट पर टिप्पणी करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि यह कोई चिंता की बात नहीं है और टीका देने पर इस तरह होना सामान्य बात है .
रे ने कहा, ‘‘इस तरह के साइड इफैक्ट दूसरे टीके में भी होते हैं . इसलिए मैं इसे बहुत चिंता की बात नहीं मानती हूं . ” आगे की राह का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भौगोलिक विविधता वाले स्थानों पर और परीक्षण होने चाहिए जहां पर कोविड-19 का असर गहरा है और मृत्यु दर ज्यादा है .
विषाणु वैज्ञानिक के मुताबिक पैदा एंटीबॉडीज से प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती और टी-सेल तैयार होने पर नजर रखनी होगी. रे ने कहा, ‘‘फिलहाल हमें यह पता नहीं है कि एंटीबॉडीज का जो स्तर पाया गया क्या इससे संक्रमण के खिलाफ बचाव हो पाएगा. इस पर आगे अध्ययन की जरूरत होगी . ” रथ ने भी इससे सहमति जतायी .
उन्होंने कहा, ‘‘टी-सेल ने काम किया है, यह आशाजनक है लेकिन हमें यह देखना होगा कि सुरक्षा प्रदान करने में यह कितना कारगर है. ” कई चरण से गुजरने के बाद टीका तैयार होता है . पहला चरण छोटे स्तर पर होता है . इसमें यह देखा जाता है कि टीका सुरक्षित है या नहीं.
दूसरे चरण में सैकड़ों लोगों को शामिल किया जाता है और इसका असर देखा जाता है . अंतिम चरण में हजारों लोगों को शामिल कर यह पता लगाया जाता है कि यह कितना कारगर है और कितने समय तक इससे बचाव हो सकता है
Posted By – pankaj Kumar pathak