बांग्लादेश के पूर्व अंतरिम राष्ट्रपति जस्टिस शहाबुद्दीन अहमद का निधन
वर्ष 1990 में पूर्व सैन्य तानाशाह एचएम इरशाद को अपदस्थ करने के लिए बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह के बीच सभी दलों के आम सहमति के उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अहमद को देश का अंतरिम राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया था.
ढाका: बांग्लादेश के पूर्व अंतरिम राष्ट्रपति एवं प्रधान न्यायाधीश शहाबुद्दीन अहमद (Justice Sahabuddin Ahmed) का शुक्रवार को यहां स्थित एक सैन्य अस्पताल में निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. अहमद के परिवार ने मीडिया को बताया कि वह पिछले कुछ समय से आयु संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे और गत 23 फरवरी से वह ढाका के सीएमएच अस्पताल में भर्ती थे.
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने अहमद के निधन पर शोक व्यक्त किया
पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि अहमद को रविवार को ढाका के बनानी कब्रिस्तान में दफनाया जायेगा. राष्ट्रपति अब्दुल हामिद और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अहमद के निधन पर शोक व्यक्त किया है. गौरतलब है कि वर्ष 1990 में पूर्व सैन्य तानाशाह एचएम इरशाद को अपदस्थ करने के लिए बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह के बीच सभी दलों के आम सहमति के उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अहमद को देश का अंतरिम राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया था.
प्रधान न्यायाधीश अहमद को कार्यभार सौंपा गया
विपक्षी राजनीति दलों के जबरदस्त दबाव और बढ़ते विद्रोह के कारण पूर्व सैन्य तानाशाह इरशाद को करीब नौ साल लंबे शासनकाल के बाद संविधान के विशेष प्रावधान के तहत छह दिसंबर 1990 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अहमद को कार्यभार सौंपना पड़ा था. इसके बाद वह कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर सरकार के प्रमुख बने थे.
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अपदस्थ राष्ट्रपति इरशाद को जेल भेजा
बाद में अहमद को राजनीतिक उथल-पुथल को शांत करने के लिए अपदस्थ राष्ट्रपति इरशाद को जेल भेजना पड़ा था और भ्रष्टाचार के आरोपों में इरशाद को छह साल जेल में बिताने पड़े थे. बांग्लादेश में फरवरी 1991 में ‘स्वतंत्र एवं विश्वसनीय’ चुनाव कराने का श्रेय अहमद के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार को जाता है.
संविधान में करना पड़ा था संशोधन
अहमद ने अपने नौ माह लंबे कार्यकाल में प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के साथ ही कई कानूनों में भी संशोधन किया था. बतौर राष्ट्रपति कार्यकाल के बाद अहमद को प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ पूर्व में तय वार्ता के अनुसार वापस प्रधान न्यायाधीश बनाया गया, जिसके लिए संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता पड़ी थी.
Posted By: Mithilesh Jha