17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Sri Lanka Crisis: श्रीलंका के खुद के ‘अरब स्प्रिंग’ ने राजपक्षे परिवार को सत्ता से उखाड़ फेंका

देश में विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के चलते खाद्य उत्पादों, ईंधन, और दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं के आयात पर बुरा असर पड़ा है. विदेशी ऋण 50 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है.

श्रीलंका में बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की मांग को लेकर छिटपुट स्थानों पर शुरू हुआ कुछ लोगों का विरोध प्रदर्शन देखते ही देखते सुनामी में तब्दील हो गया, जिसने कभी शक्तिशाली माने जाने वाले राजपक्षे परिवार को सत्ता से उखाड़ फेंका. यह घटनाक्रम ‘अरब स्प्रिंग’ के दौर जैसा प्रतीत होता है, जब एक-एक कर कई अरब देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ था. हालांकि, श्रीलंका के आर्थिक संकट से निकलने का रास्ता काफी लंबा और मुश्किल नजर आ रहा है. श्रीलंका 1948 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के बाद से सर्वाधिक गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है.

देश में विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के चलते खाद्य उत्पादों, ईंधन, और दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं के आयात पर बुरा असर पड़ा है. विदेशी ऋण 50 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है. इस साल श्रीलंका को 7 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज चुकाना है. श्रीलंका में संकट मार्च में शुरू हुआ, जब चंद लोग एक छोटे से समूह में एकत्र हुए और मिल्क पाउडर तथा नियमित बिजली आपूर्ति जैसी बुनियादी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगे.

कुछ ही दिन में इस आर्थिक संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया और लोगों को ईंधन व रसोई गैस हासिल करने के लिए कई मील लंबी कतारों में इंतजार करने को मजबूर होना पड़ा. साथ ही कई घंटे तक बिजली गुल रहने लगी. चिलचिलाती धूप में लंबी-लंबी कतारों में लगे रहने के चलते करीब 20 लोगों की मौत हो गई. लोगों की मुश्किलें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और वे सरकार की प्रतिक्रिया, सकारात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे. लेकिन राजपक्षे सरकार ने कोई समाधान पेश नहीं किया और लोगों की परेशानियां बढ़ती गईं. सरकार ने अप्रैल के मध्य में देश को दिवालिया घोषित करते हुए अंतरराष्ट्रीय कर्ज उतारने से इनकार कर दिया.

इन हालात में कालाबाजारी बढ़ने लगी और लोगों को कतार में लगने के लिए पैसे देने पड़े. साथ ही ईंधन कानूनी खुदरा मूल्य से चार गुणा अधिक दाम पर बेचा जाने लगा. जब कोई उपाय नहीं बचा तब पूरे श्रीलंका में लोग सड़कों पर उतर आए और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे एवं उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करने लगे. लगभग दो दशक तक श्रीलंका में शासन करने वाले शक्तिशाली राजपक्षे परिवार को देश की आर्थिक बर्बादी का जिम्मेदार ठहराया जाने लगा.

राजपक्षे परिवार की ताकत से बेपरवाह, लोग शांतिपूर्ण विरोध के दौरान “गोगोटगामा” का नारा लगाते हुए कोलंबो के मध्य में गॉल फेस ग्रीन क्षेत्र में एकत्र हुए. इन लोगों ने आगे बढ़ते हुए ‘अरागलया’ आंदोलन शुरू किया, जिसका सिंहली भाषा में अर्थ “संघर्ष” होता है. प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटबाया और उनके बड़े भाई महिंदा के इस्तीफे की मांग कर डाली. इस नारे ने छात्रों, कार्यकर्ताओं, युवाओं और सभी वर्गों के लोगों को आकर्षित किया, जो देश में गहरे जातीय व धार्मिक विभाजन को दरकिनार कर विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए. बढ़ते दबाव के बीच राष्ट्रपति गोटबाया ने अप्रैल के मध्य में अपने बड़े भाई चामल और सबसे बड़े भतीजे नमल को मंत्रिमंडल से हटा दिया.

मई में, प्रधानमंत्री महिंदा के समर्थकों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला किया, तो उन्होंने भी पद से इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में राजपक्षे परिवार के विश्वासपात्र लोगों के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई. जुलाई में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने के कारण राष्ट्रपति गोटबाया को अपने आधिकारिक आवास से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि इससे पहले उन्होंने नव-नियुक्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ कुछ हफ्तों तक संकट से निपटने की कोशिश की. वाहन चालक आनंद अरुणाजीत ने कहा, ”हम देश के हालात से थक चुके हैं. उनके पास कोई समाधान नहीं है.” एक ओर अरुणाजीत पेट्रोल की कतार में खड़े थे, तो दूसरी ओर उनकी पत्नी सुमाली रसोई गैस के लिए कतार में इंतजार कर रही थीं.

आईटी उद्योग के मध्यम स्तर के कर्मचारी शेहान परेरा का कहना है कि ईंधन संकट के कारण नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है. शहर में अपनी कार को लंबी कतार में लगाते हुए वह कहते हैं, ”कंपनियां अब न्यूनतम मानव संसाधन के साथ काम चलाने की जुगत में हैं.” आतिथ्य उद्योग से जुड़े युवा प्रशिक्षु योहान परेरा ने कहा, “इस ईंधन संकट से हमारी पीढ़ी लगभग बेरोजगार हो गई है. मैं अपनी स्कूटी के लिए कुछ ईंधन पाने के लिए भी दिनभर कतार में लगा रहता हूं और रात में आराम करता हूं.” राष्ट्रपति गोटबाया 13 जुलाई को मालदीव भाग गए और फिर वहां से सिंगापुर चले गए, जहां से उन्होंने अपना त्याग पत्र भेज दिया. श्रीलंका की संसद ने नए राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए शनिवार को एक विशेष सत्र आयोजित किया, जो अगली सरकार का नेतृत्व करेगा.

नए राष्ट्रपति के सामने देश की दिवालिया हो चुकी अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकने की एक कठिन चुनौती होगी. आर्थिक संकट के राजनीतिक उथल-पुथल में बदलने से इस बात को लेकर चिंताएं पैदा हो गई हैं कि संकट के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता मांगने जैसे कदम उठाने में देरी होगी. विश्व खाद्य कार्यक्रम ने शुक्रवार को एक स्थिति रिपोर्ट में कहा था कि श्रीलंका में 63 लाख यानी 28.3 प्रतिशत लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर हैं और संकट के गहराने पर ऐसे लोगों की संख्या बढ़ सकती है. ऐसे में इस बात की संभावना नजर नहीं आ रही है कि भविष्य की सरकार कम समय में आर्थिक स्थिति में सुधार ला पाएगी. आर्थिक सुधार की प्रक्रिया काफी लंबी और मुश्किल नजर आ रही है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें