राष्ट्रपति बनने के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की राह कठिन होती हुई दिख रही है. विपक्ष के साथ-साथ सेना ने भी राष्ट्रपति के रूप में विक्रमसिंघे की नियुक्ति का विरोध करना शुरू कर दिया है. एक ओर जहां श्रीलंका की सेना ने मौजूदा संकट के राजनीतिक समाधान के लिए सर्वदलीय नेताओं की एक बैठक बुलाने और सुधार के लिए उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी मांगी है, वहीं विपक्ष ने विक्रमसिंघे का राष्ट्रपति मानने से इनकार कर दिया है. कई सांसदों ने गुरुवार को विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. विपक्ष की ओर से स्पीकर से कहा गया है कि वह तत्काल प्रभाव से रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त करें.
इससे पहले, श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे बुधवार को सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुट गये. इसके लिए उन्होंने सत्ता विरोधी ताकतों पर सबसे पहले नियंत्रण करने का काम शुरू किया है. विक्रमसिंघे ने अपने पहले टेलीविजन भाषण में कहा कि उन्होंने सैन्य कमांडरों और पुलिस प्रमुख को आदेश दिया है कि व्यवस्था बहाल करने के लिए जो कुछ जरूरी है, किया जाये. रानिल ने इसे फासीवादी खतरा बताते हुए कहा कि कुछ मुख्यधारा के राजनेता भी इन उग्रवादियों का समर्थन करते प्रतीत होते हैं. बता दें कि श्रीलंकाई जनता भी विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति के रूप में नहीं देख पा रही है.
श्रीलंका के पूर्व सेना प्रमुख और संसद सदस्य फील्ड मार्शल सरत फोनसेका ने देश के सशस्त्र बलों से अनुरोध किया कि वे कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के आदेशों का पालन नहीं करें क्योंकि उनके निर्देश संविधान के विरुद्ध हैं. फोनसेका ने सशस्त्र बलों से बेगुनाह और निहत्थे नागरिकों के खिलाफ अपने हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने, बल्कि भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ उनका उपयोग करने की अपील भी की.
श्रीलंका में डॉक्टर लोगों को सलाह दे रहे हैं कि देश में दवाओं और संबंधित अन्य महत्वपूर्ण आपूर्ति की कमी है, इसलिए वे बीमार होने से बचें तथा दुर्घटनाओं के शिकार न हों. श्रीलंका मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष समथ धर्मरत्ने ने कहा, बीमार न हों, घायल न हों, ऐसा कुछ भी न करें जिससे आपको बेवजह इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़े. उन्होंने कहा, मैं हालात को इस तरह बयां कर सकता हूं, यह एक गंभीर स्थिति है, देश में दवाइयां खत्म हो गयी हैं.
श्रीलंका के राजनीतिक दलों ने एक सर्वदलीय सरकार बनाने तथा दिवालिया हुए देश में अराजकता फैलने से रोकने के लिए 20 जुलाई को नये राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए प्रयास तेज कर दिये हैं. श्रीलंका के संविधान के तहत, यदि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों अपने पद से इस्तीफा देते हैं, तो संसद का अध्यक्ष अधिकतम 30 दिन के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर सकते हैं. इससे पहले, राजपक्षे ने विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया.
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