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Taliban: तालिबान ने किया बड़ा खुलासा, बताया कहां दफन किया गया मुल्ला उमर और कब हुई उसकी मौत?

Taliban: तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने रविवार को न्यूज अजेंसी AFP को बताया कि आंदोलन के वरिष्ठ नेता जाबुल प्रांत के सूरी जिले में ओमारजो के पास उसकी कब्रगाह पर एक समारोह में शामिल हुए. ऐसे में तालिबान ने मुल्ला उमर के दफन होने वाले स्थान की जानकारी दी है.

Taliban: तालिबान ने बीते रविवार को एक बड़ा खुलासा किया है. तालिबान ने यह खुलासा किया है कि उनके आंदोलन के संस्थापक मुल्ला उमर के बारे में. जानकारी हो बीते कई दिनों से उसके मौत और दफन करने के बात को गुप्त रखा गया था. ज्ञात हो कि उमर के स्वास्थ्य और ठिकाने के बारे में अफवाहें 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण द्वारा तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिए जाने के बाद फैल गईं और उन्होंने केवल अप्रैल 2015 में स्वीकार किया कि दो साल पहले उसकी मृत्यु हो गई थी.

जाबुल प्रांत के सूरी जिले में ओमारजो के पास उसकी कब्रगाह

तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने रविवार को न्यूज अजेंसी AFP को बताया कि आंदोलन के वरिष्ठ नेता जाबुल प्रांत के सूरी जिले में ओमारजो के पास उसकी कब्रगाह पर एक समारोह में शामिल हुए. ऐसे में तालिबान ने मुल्ला उमर के दफन होने वाले स्थान की जानकारी दी है. बता दें कि तालिबान ने पिछले साल अगस्त में सत्ता में वापसी की है. अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान की मजबूती और बढ़ी है.

मकबरे को नुकसान से बचाने के लिए गुप्त रखा गया

मुजाहिद ने मुल्ला उमर के बारे में बताते हुए कहा है कि चूंकि बहुत सारे दुश्मन आसपास थे और देश पर कब्जा कर लिया गया था, मकबरे को नुकसान से बचाने के लिए इसे गुप्त रखा गया था. उन्होंने आगे कहा कि केवल करीबी परिवार के सदस्यों को ही जगह की जानकारी थी. अधिकारियों द्वारा जारी की गई तस्वीरों में दिखाया गया है कि तालिबान नेता एक साधारण सफेद ईंट के मकबरे के चारों ओर इकट्ठा हुए थे, जो बजरी से ढका हुआ था और हरे पिंजरे में बंद था. मुजाहिद ने जानकारी देते हुए कहा कि अब फैसला हो गया है कि लोगों को मकबरे पर जाने में कोई दिक्कत नहीं है.

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55 वर्ष की आयु में हुई मौत

जानकारी हो कि मुल्ला उम्र की मृत्यु 55 वर्ष की आयु में हुई. इसने 1993 में एक दशक लंबे सोवियत कब्जे के बाद भड़के आंतरिक गृहयुद्ध के लिए एक टुकड़ी को आंदोलन के रूप में तालिबान की स्थापना की. उसके नेतृत्व में तालिबान ने इस्लामी शासन का एक कठोर रूप दिखाया जिसमें महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से प्रतिबंधित किया गया और कठोर सार्वजनिक दंड की शुरुआत की गई – जिसमें फांसी और कोड़े भी शामिल थे.

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