कहां से आता है तालिबान के पास इतना पैसा और हथियार, कौन है इस आतंकी संगठन का फाइनेंसर, यहां देखिए पूरी रिपोर्ट

तालिबान ने जिस प्रकार बीते 20 वर्षों तक अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना का सामना किया और जिस तेजी से उसने काबुल की सत्ता हथियाई है, उससे यह बात साबित होती है कि न तो उसके पास पैसों की कमी थी, न ही हथियारों की? ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तालिबान के पास इतनी मात्रा में पैसे और हथियार कहां से आये?

By Prabhat Khabar News Desk | August 24, 2021 9:18 AM

तालिबान ने जिस प्रकार बीते 20 वर्षों तक अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना का सामना किया और जिस तेजी से उसने काबुल की सत्ता हथियाई है, उससे यह बात साबित होती है कि न तो उसके पास पैसों की कमी थी, न ही हथियारों की? ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर तालिबान के पास इतनी मात्रा में पैसे और हथियार कहां से आये?

मादक पदार्थों की तस्करी बना धन उगाही का जरिया

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मई 2020 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि तालिबान की कुल वार्षिक आय 300 मिलियन डॉलर से लेकर डेढ़ बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है. दो दशकों के अध्ययन के बाद सुरक्षा परिषद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि तालिबान के धन का प्राथमिक स्रोत मादक पदार्थों की तस्करी रही है. हालांकि, अफीम की खेती और मुनाफे में कमी समेत कई कारण रहे हैं, जिससे हाल के वर्षों में तालिबान की आय में कमी आयी है.

भले ही तालिबान को हेरोइन की खेती और उत्पादन से कई वर्षों तक काफी आमदनी होती रही है, पर मेथैफेटामीन का उभार तालिबान को लाभ दे रहा है. हालांकि यह दवा कुछ प्रमुख नये दवा उद्योग को भी लाभ के साथ प्रोत्साहन दे रहा है. यह दवा न्यूरोबिहेबिअरल डिसऑर्डर समेत कुछ विशेष विकार के रोगियों को दी जाती है.

चूंकि यह तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करती है, इसलिए नशे के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है. इसकी तस्करी हेरोइन की तुलना में अधिक लाभदायक भी है. अफगानिस्तान के फराह और निमरुज मेथैफेटामीन के प्रमुख उत्पादक प्रांत हैं और माना जाता है कि इन दोनों प्रांतों के 60 प्रतिशत प्रयोगशालाओं पर तालिबान का ही नियंत्रण है.

सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि अफगानिस्तान में हेरोइन की तस्करी और कराधान की व्यवस्था तालिबान ही संभालता है और यह नंगरहार के हिसारक से लेकर पाकिस्तानी सीमा पर स्थित दुर बाबा तक आठ जिलों में फैली हुई है. इन सभी जिलों के तालिबानी कमांडर, तस्करों से प्रति किलोग्राम हेरोइन के आधार पर कर वसूलते हैं. इस प्रकार तस्करी के इन मार्गों ने प्रत्येक जिले के तालिबान कमांडर को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद की है.

पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान अपने पड़ोसी देशों समेत यूरोप, मध्य-पूर्व, दक्षिण एशिया से लेकर उत्तरी अमेरिका, विशेषकर कनाडा और ओशानिया के बाजारों तक में अफीम की आपूर्ति करता है.

विश्व में सबसे ज्यादा अफीम का उत्पादन अफगानिस्तान में ही होता है और बीते पांच वर्षों में वैश्विक अफीम उत्पादन में अफगानिस्तान की हिस्सेदारी लगभग 84 प्रतिशत रही है.

यहां से मिलते हैं तालिबान को हथियार

आइएसआइ और पाकिस्तान सीधे तौर पर और हक्कानी नेटवर्क समेत, चरमपंथी धार्मिक स्कूलों आदि के माध्यम से भी तालिबान को हथियार मुहैया कराते हैं.

अमेरिकी डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की नवंबर 2019 की एक रिपोर्ट में भी कहा गया कि 2007 के बाद से, अफगानिस्तान में अमेरिका समेत विदेशी सेना व आइसिस खोरासन से मुकाबला करने और संघर्ष समाप्ति के बाद सरकार में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ईरान ने तालिबान को हथियार व प्रशिक्षण देने के साथ ही उसका वित्त पोषण भी किया है.

तालिबान से लड़ने के लिए अमेरिका द्वारा अफगानी सेना को बेहिसाब हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराये गये थे, माना जाता है कि तालिबान ने लूट के जरिये इनमें से बहुत से हथियार और गोला-बारूद हासिल किये हैं.

Posted by: Pritish Sahay

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