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Turkey: ब्रिक्स में शामिल होने के लिए क्यों तड़प रहा है तुर्की? भारत के सहयोग बिना एंट्री असंभव!

Turkey: आइए जानते हैं तुर्की ब्रिक्स में शामिल क्यों होना चाहता है.

Turkey: इस बार संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली (General Assembly of the United Nations) में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन (Turkish President Erdogan) ने कश्मीर मुद्दे पर चुप्पी साधी और भारत की आलोचना में एक भी शब्द नहीं कहा, जिससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि तुर्की, भारत, ब्राजील, रूस, साउथ अफ्रीका और चीन के संगठन ब्रिक्स में शामिल होने की कोशिश कर रहा है.

गौरतलब है कि तुर्की ने ब्रिक्स की पूर्ण सदस्यता के लिए आवेदन किया है, जिसके लिए सभी सदस्य देशों की सहमति आवश्यक है. हाल के वर्षों में तुर्की के नाटो के प्रमुख देशों के साथ संबंधों में खटास आई है, और यूरोपीय अर्थव्यवस्था (European Economy) में उसे नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में तुर्की नए बाजार और बदलते वैश्विक परिदृश्य में अपनी अलग पहचान और अधिक ताकत पाने की कोशिश कर रहा है, जिसके लिए ब्रिक्स में शामिल होना उसकी प्राथमिकता बन गई है.

ब्रिक्स में क्यों आना चाहता है तुर्की? (Why Turkey want to join BRICS)

तुर्की अब यूरोप से बाहर नए आर्थिक मंचों की तलाश में है. तुर्की का मानना है कि ब्रिक्स से जुड़कर वह पूर्व और पश्चिम के बीच एक सेतु के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत कर सकता है, जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय मामलों में रणनीतिक महत्व और बढ़ेगा. वास्तव में, तुर्की अपनी विदेश नीति में बदलाव करना चाहता है ताकि उसकी यह छवि भी बदले कि वह मुस्लिम देशों का नेतृत्व करना चाहता है. हाल के दिनों में तुर्की की इस नीति में बदलाव देखने को मिला है, और वह अपनी कट्टर मुस्लिम विदेश नीति से हटता हुआ नजर आ रहा है.

ब्रिक्स से तुर्की को क्या लाभ? (What benefits Turkey have from BRICS)

ब्रिक्स मुख्य रूप से एक आर्थिक संगठन है, और तुर्की के लिए यह कई फायदे ला सकता है. सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि तुर्की को नए बाजारों तक पहुंच मिलेगी. ब्रिक्स में शामिल होने से तुर्की उभरते बाजारों तक आसानी से पहुंच सकता है और अपने व्यापार संबंधों में विविधता ला सकता है. अब तक उसकी अर्थव्यवस्था काफी हद तक यूरोपीय बाजारों पर निर्भर रही है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आई है. तुर्की की मुस्लिम देशों का नेतृत्व करने की कोशिश भी उसे वैसा मुस्लिम बाजार नहीं दिला पाई. ऐसे में अब उसे एशिया के दो बड़े बाजारों, चीन और भारत, की जरूरत है, जिनमें से भारत सबसे महत्वपूर्ण है. तुर्की का मानना है कि ब्रिक्स देशों के साथ करीबी संबंध उसे कई अन्य फायदे भी दे सकते हैं. यह नए निवेश आकर्षित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद कर सकता है. तुर्की को उम्मीद है कि बुनियादी ढांचे और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक से वित्तीय सहायता प्राप्त करने की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं.

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क्या ब्रिक्स में शामिल होना तुर्की की मजबूरी? (Is Turkey compulsion to join BRICS)

विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की की बदलती रणनीति भू-राजनीतिक परिदृश्य में अपनी स्थिति मजबूत करने की ओर संकेत करती है. एर्दोगान, जो पहले आक्रामक रुख अपनाते थे, अब अधिक संयमित नजर आ रहे हैं. उनके वैश्विक मंचों पर भाषणों में भी भाषा और विषयवस्तु में बदलाव दिख रहा है. ब्रिक्स में ब्राजील, चीन, और भारत इस समय बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में उभर रहे हैं, और तुर्की इनके साथ जुड़कर खुद को एक ऐसे समूह में शामिल करना चाहता है जो IMF और विश्व बैंक जैसे पश्चिमी संस्थानों के प्रभुत्व को चुनौती देकर एक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की वकालत करता है. तुर्की की वर्तमान रणनीति अब पूर्वी और पश्चिमी दोनों शक्तियों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की प्रतीत होती है. इस दोहरी दृष्टि से तुर्की वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है.

ब्रिक्स में शामिल होने से क्या नाटो और तुर्की में संबंध हो जाएगा खराब (Will joining BRICS worsen relations between NATO and Turkey)

तुर्की के BRICS में शामिल होने के प्रयासों का NATO के साथ उसके संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है. इसे पश्चिमी साझेदारियों से इतर तुर्की की अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विविधता लाने की रणनीति (Strategy to diversify International relations) के रूप में देखा जा रहा है. यह कदम तुर्की को NATO में अपनी सदस्यता बनाए रखते हुए अपनी विदेश नीति में अधिक स्वतंत्रता हासिल करने का मौका देता है. विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की NATO नहीं छोड़ेगा, बल्कि पश्चिमी और गैर-पश्चिमी शक्तियों के साथ संबंध बनाए रखकर अपने भू-राजनीतिक फायदे को बढ़ाने की कोशिश करेगा.

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तुर्की के ब्रिक्स में शामिल होने से मुस्लिम देशों से रिश्ते पर पड़ेगा असर? (Will Turkey joining BRICS affect its relations with Muslim countries)

तुर्की की BRICS में भागीदारी मुस्लिम-बहुल देशों, जैसे ईरान और मिस्र के साथ मजबूत कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा दे सकती है, जो पहले से नहीं बने थे. हालांकि, ईरान और मिस्र समेत कई मुस्लिम देशों को तुर्की का इस्लामी दुनिया (Islamic World) में एक नेता के रूप में उभरना पसंद नहीं आया था.

ब्रिक्स में तुर्की की सदस्यता की वर्तमान स्थिति क्या है?(What current status of Turkey membership in BRICS)

क्रेमलिन के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, तुर्की ने ब्रिक्स समूह में पूर्ण सदस्यता के लिए आधिकारिक तौर पर आवेदन किया है. सितंबर 2024 में रूस के राष्ट्रपति पुतिन (Russian President Putin) के विदेश मामलों के सहायक यूरी उशाकोव ने पुष्टि की कि तुर्की ने “पूर्ण सदस्यता” के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन भी कई मौकों पर ब्रिक्स में शामिल होने की अपनी महत्वाकांक्षा को जाहिर कर चुके हैं. वर्तमान में ब्रिक्स की अध्यक्षता रूस कर रहा है, और रूस का कहना है कि तुर्की के आवेदन पर विचार किया जाएगा. अगले महीने रूस में 2024 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit 2024)  होने वाला है, जहां इस समूह के विस्तार और तुर्की की संभावित सदस्यता पर चर्चा हो सकती है.

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ब्रिक्स में कितने देश है? (How many countries in BRICS)

Brics Group

ब्रिक्स समूह (BRICS Group) का गठन सितंबर 2006 में हुआ था. इसकी शुरुआत ब्राजील(Brazil), रूस(Russia), भारत (India) और चीन (China) ब्रिक ने मिलकर की थी. सितंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका (South Africa) को पूर्ण सदस्य (full member) के रूप में शामिल किए जाने के बाद इसका नाम बदलकर ब्रिक्स कर दिया गया. अब इस समूह में कुल 10 पूर्ण सदस्य हैं, जिनमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हो चुके हैं. मुस्लिम और अफ्रीकी देश (Muslim and African countries)  इस संगठन की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं.

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