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भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को भारत लाने का रास्ता हुआ साफ, ब्रिटेन की हाईकोर्ट से हार गया केस

भारत के भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को सोमवार को लंदन में केस हार गया है और वह यह कि वहां के हाईकोर्ट ने माल्या की अपील को खारिज कर दिया है.

लंदन : भारत को भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को ब्रिटने से वापस लाने की कानूनी लड़ाई में सोमवार को बड़ी सफलता मिली. ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने माल्या को भारत के हवाले किये जाने के आदेश के खिलाफ उसकी अपील खारिज कर दी. इसके साथ ही, अब माल्या का प्रत्यर्पण अब कुछ ही समय की बात रह गया लगता है. वह भारत में करीब 9,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी और मनी लांड्रिंग के मामले में वांछित है. हाईकोर्ट में अपील खारिज होने से माल्या का भारत प्रत्यर्पण का रास्ता बहुत हद तक साफ हो गया है.

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28वें दिन भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है भारत का भगोड़ा : माल्या के खिलाफ भारतीय अदालत में मामले हैं. उसके पास अब ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए मंजूरी का आवेदन करने के लिए 14 दिन का समय है. अगर वह अपील करता है, तो ब्रिटेन का गृह मंत्रालय उसके नतीजे का इंतजार करेगा, लेकिन अगर उसने अपील नहीं की, तो भारत-ब्रिटेन प्रत्यर्पण संधि के तहत अदालत के आदेश के अनुसार 64 साल के माल्या को 28 दिनों के भीतर भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा कि हमने प्रथम दृष्टि में गलत बयानी और साजिश का मामला पाया और इस प्रकार प्रथम दृष्ट्या मनी लॉन्ड्रिंग का भी मामला बनता है.

2018 में माल्या ने प्रत्यर्पण के खिलाफ वेस्टमिनिस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में की थी अपील : यह केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों के लिए शराब कारोबारी के मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है. माल्या प्रत्यर्पण मामले में अपैल, 2017 में गिरफ्तार होने के बाद से जमानत पर है. अब बंद पड़ी किंगफिशर एयरलाइन के प्रमुख ने वेस्टमिनिस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट के दिसंबर, 2018 में प्रत्यर्पण आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस के न्यायाधीश स्टीफन इरविन और न्यायाधीश एलिजाबेथ लांग की दो सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में माल्या की अपील खारिज कर दी. कोरोना वायरस महामारी के कारण जारी ‘लॉकडाउन’ के कारण मामले की सुनवाई वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये हुई.

व्यापक हैं सीबीआई और ईडी के आरोप : पीठ ने वरिष्ठ जिला न्यायाधीश एम्मा आर्बुथनोट के फैसले सही ठहराया और कहा कि प्रथम दृष्टि में उन्होंने जो मामला पाया, वह कुछ मामलों में भारत में प्रतिवादी (सीबीआई और ईडी) के आरोपों से कहीं व्यापक है. ऐसे में, प्रथम दृष्ट्या सात महत्वपूर्ण बिंदुओं के संदर्भ में उनके खिलाफ मामला बनता है, जो भारत में आरोपों के साथ मेल खाता है.

साजिश के जरिये हासिल किया कर्ज : हाईकोर्ट ने जिन सात बिंदुओं के आधार पर फैसला सुनाया, वह न्यायाधीश आर्बुथनोट के प्रत्यर्पण आदेश से मिलता-जुलता है. माल्या के खिलाफ उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि उन्होंने पाया कि कर्ज साजिश के जरिये हासिल किया गया. यह कर्ज तब लिया गया, जब किंगफिशर एयरलाइन की वित्तीय स्थिति कमजोर थी, उसके नेटवर्थ नीचे आ गया था और ‘क्रेडिट रेटिंग’ निम्न थी.

कर्ज हासिल करने के लिए किया गुमराह : पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता (माल्या) ने गलत बयानी कर यह कर्ज हासिल किया. उन्होंने निवेश, ब्रांड मूल्य, वृद्धि को लेकर गुमराह करने वाले अनुमान तथा परस्पर विरोधी व्यापार योजनाओं की जानकारी दी. अपीलकर्ता का कर्ज नहीं लौटाने का बेईमान इरादा का पता उसके बाद के आचरण से चलता है, जिसमें उसने व्यक्तिगत और कॉरपोरेट गारंटी से बचने का प्रयास किया.

ऑर्थर रोड जेल से लगता है डर : माल्या के वकीलों ने भारत सरकार के मामले को कई आधार पर चुनौती दी थी। इसमें उनका यह भी कहना था कि क्या उनका मुवक्किल मुंबई के आर्थर रोड जेल के बैरक संख्या 12 में सुरक्षित होगा? माल्या को प्रत्यर्पण के बाद वहीं रखा जाना है. हाईकोर्ट ने पहले ही ज्यादातर आधार को खारिज कर दिया था. केवल एक आधार (भारत सरकार के माल्या के खिलाफ धोखाधड़ी के इरादे से बैंक कर्ज लेने का आरोप) पर चुनौती देने को लेकर अपील की अनुमति मिली थी.

माल्या के पास अब केवल 14 दिन का समय : इस बीच, भारतीय जांच एजेंसियों का ब्रिटेन की अदालत में पक्ष रखने वाले ‘क्राउन प्रोसक्यूशन सर्विस’ के प्रवक्ता ने कहा कि माल्या के पास अब सुप्रीम कोर्ट में अपील की मंजूरी को लेकर आवेदन देने के लिए 14 दिन का समय है. अगर वह अपील नहीं करता है, उसके बाद 28 दिन के भीतर उनका प्रत्यर्पण होगा. अगर वह अपील करता है, हम आवेदन के नतीजे का इंतजार करेंगे.

मार्च 2016 से ब्रिटेन में रह रहा है माल्या : माल्या ब्रिटेन में मार्च, 2016 से हैं और अप्रैल, 2017 में प्रत्यर्पण वारंट की तामील के बाद से जमानत पर हैं. भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि पर 1992 में हस्ताक्षर हुए थे. यह संधि नवंबर, 1993 से प्रभाव में है. अब तक केवल एक सफल प्रत्यर्पण ब्रिटेन से भारत हुआ है. समीरभाई बीनुभाई पटेल को 2016 में भारत भेजा गया, ताकि वह 2002 में गोधरा हिंसा के बाद दंगे में शामिल होने को लेकर सुनवाई का सामना कर सके.

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