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पाकिस्तान के साथ होने से तालिबान शासित अफगानिस्तान में चीन को फायदा, भारत के लिए खतरा!

Afghanistan News तालिबानी सरकार के गठन में पाकिस्तान के दखल की चर्चाएं जोरों पर हैं. बता दें कि तालिबान का पाकिस्तान से पुराना नाता रहा है, लेकिन सरकार के गठन से पहले पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का काबुल पहुंचना कई तरह के सवाल खड़े करने वाला है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2021 5:59 PM

Afghanistan News तालिबानी सरकार के गठन में पाकिस्तान के दखल की चर्चाएं जोरों पर हैं. बता दें कि तालिबान का पाकिस्तान से पुराना नाता रहा है, लेकिन सरकार के गठन से पहले पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का काबुल पहुंचना कई तरह के सवाल खड़े करने वाला है. बता दें कि तालिबान के निमंत्रण पर पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल काबुल पहुंचा है. इस प्रतिनिधिमंडल में अधिकारियों के साथ आईएसआई चीफ जनरल फैज हामिद भी शामिल है. अफगानिस्तान में सरकार के गठन से पहले पाकिस्तान से तालिबान के ऐसे रिश्तों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंथन जारी है.

बता दें कि इससे पहले न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने तालिबान के हवाले से दावा किया था कि काबुल में शुक्रवार को तालिबान अपनी नई सरकार का गठन करेगा. लेकिन, देर शाम कुछ वजहों से ऐसा नहीं हो पाया. इसके बाद तालिबान के प्रवक्ता ने शनिवार को नई सरकार के गठन की बात कही. हालांकि, आज भी ये टल गया. अब कहा जा रहा है कि 2 से 3 दिन के अंदर तालिबान अफगानिस्तान में सरकार बना लेगा. इन सबके बीच, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का काबुल पहुंचना चौंकाने वाला है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में सरकार गठन की बातचीत जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, प्रमुख सरकारी पदों को लेकर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच तनाव बढ़ रहा है. मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब और हक्कानियों के बीच विवाद के कई कारण हैं. हक्कानियों ने तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्जा करने में मदद की और इस वक्त भी काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा हक्कानियों के हाथ में ही है. हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के बीच गहरे संबंध हैं.

वहीं, इस हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन से जब पूछा गया कि क्या तालिबान दुश्मन है. इस पर जो बिडेन के सहयोगी ने कहा कि इस पर एक लेबल लगाना मुश्किल है, क्योंकि आंशिक रूप से हम अभी तक यह नहीं देख पाए हैं कि अफगानिस्तान पर उनका पूर्ण नियंत्रण है. पिछले महीने, जेक सुलिवन ने कहा था कि बाइडन प्रशासन का मानना है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान को जो हथियार दिए हैं, उनमें से काफी संख्या में तालिबान के कब्जे में है, और व्हाइट हाउस को उम्मीद नहीं है कि वह अमेरिका वापस कर दिए जाएंगे.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वास्तव में चीन और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों ने नैतिक सिद्धांतों की किताब को खिड़की से बाहर फेंककर तालिबान को शामिल करने के लिए संरक्षक पाकिस्तान का समर्थन मांगा है. इधर, नई अफगान सरकार की घोषणा को लेकर तालिबान के बीच मतभेदों के बीच, पाकिस्तानी सुपर जासूस लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद, डीजी, आईएसआई, आज काबुल पहुंचे है. काबुल पर नजर रखने वालों का कहना है कि जनरल हमीद तालिबान नेतृत्व को अपने मतभेदों को दूर करने और जल्द ही सरकार की घोषणा करने में मदद करेंगे. यह रावलपिंडी था, जिसने पिछले जुलाई में चीन में मुल्ला बरादर और विदेश मंत्री वांग यी की बैठक की सुविधा प्रदान की थी.

वास्तव में, इस वर्ष सैन्य क्रांतियों का वास्तविक लाभार्थी चीन है, जो वास्तविक राजनीति का सच्चा अभ्यासकर्ता है. क्योंकि, यह म्यांमार में जुंटा और अफगानिस्तान में तालिबान को शामिल करता है. जबकि, लोकतांत्रिक दुनिया अभी भी उम्मीद कर रही है कि सुन्नी इस्लामी समूह उन्हें वैध बनाने के लिए एक समावेशी सरकारी खिड़की उन्हें देगा. भारत के लिए वास्तविक खतरा यह है कि पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर चीन समर्थक शासन है. इस बीच अफगानिस्तान में तालिबान के आ जाने से अब आतंकियों की नजर कश्मीर पर है. पाकिस्तान-चीन और तालिबान मिलकर भारत के खिलाफ साजिश रचने की फिराक में हैं. मकसद सिर्फ एक है अलगाववादी एजेंडे को हवा देकर कश्मीर के मुसलमानों को भड़काना और घाटी का माहौल फिर से खराब करके आतंकी साजिश रचना.

तालिबान ने कहा है कि वो कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज उठाएगा. इतना ही नहीं किसी भी देश के मुसलमानों के लिए आवाज उठाने का हक तालिबान के पास है. साथ ही तालिबान ने कहा है कि भारत घाटी के लोगों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाए और पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर मुद्दे पर बैठक करे पाकिस्तान भी यही चाहता है कि वो तालिबान के साथ मिलकर कश्मीर में आतंक फैलाए. इसके लिए पाकिस्तान की आईएसआई ने पूरी तैयारी भी कर ली है.

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