World : Bangledesh Crisis : आरक्षण की आग में सुलगता बांग्लादेश
मुक्ति योद्धाओं के संबंधियों को दिये जाने वाले आरक्षण की आग ने बांग्लादेश मे राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी हैं. शेख हसीना को पद व देश दोनों छोड़ना पड़ा है.
World : Bangledesh Crisis : बीते कई दिनों से बांग्लादेश आरक्षण विरोधी आग में सुलग रहा है. यहां छात्र 1971 में बांग्लादेश की स्वाधीनता के आंदोलन में लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का विरोध कर रहे हैं. हालांकि पिछले महीने की 21 तारीख को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की सीमा कम कर दी परंतु आंदोलन कम होने की बजाय और उग्र हो गया तथा प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना पद छोड़ना पड़ा. इतना ही नहीं, उन्हें अपनी जान बचाने के लिए देश भी छोड़ना पड़ा है. हाल-फिलहाल वे भारत में हैं. जानते हैं बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था के बारे में जिसने देश की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है.
क्या है देश की आरक्षण व्यवस्था
पहले की व्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय के दखल के पहले देश में सरकारी नौकरियों की 56 प्रतिशत सीटें आरक्षित थीं. इनमें जहां 30 प्रतिशत सीटें स्वतंत्रता सेनानी के परिवारों के लिए थीं, वहीं 10 प्रतिशत सीटें पिछड़े जिलों के लिए आरक्षित थीं. महिलाओं के लिए सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत, धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पांच प्रतिशत और दिव्यांगों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था थी. इस लिहाज से देखें तो सरकारी नौकरियों में महज 44 प्रतिशत सीटें ही अनाआरक्षित थीं.
वर्तमान व्यवस्था
छात्रों के उग्र विरोध के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 21 जुलाई को आरक्षण की अधिकांश व्यवस्था को खत्म किये जाने के बाद सरकारी नौकरियों के अब 93 प्रतिशत पद अनारक्षित हो गये हैं. स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के लिए पूर्व के 30 प्रतिशत आरक्षण को घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है. वहीं धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण को घटाकर दो प्रतिशत कर दिया गया है. पूर्व की व्यवस्था के अनुसार अब न तो पिछड़े जिले के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है, न ही महिलाओं व दिव्यांगों को किसी तरह का कोई आरक्षण दिया गया है.
स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए 2018 में खत्म हो गया था आरक्षण
वर्ष 1972 में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरी में किये गये 30 प्रतिशत आरक्षण को 2018 में तत्कालीन सरकार ने समाप्त कर दिया था. परंतु पांच जून, 2024 को उच्च न्यायालय ने सरकार के इस निर्णय को अवैध करार देते हुए कुल आरक्षण 56 प्रतिशत कर दिया. इसके बाद से ही विरोध प्रदर्शन जारी है.
कई बार हुआ आरक्षण में बदलाव
- बांग्लादेश में वर्ष 1972 में तत्कालीन सरकार ने मुक्ति योद्धा, यानी स्वतंत्रता सेनानी, जिला और महिलाओं के लिए प्रथम श्रेणी की नौकरियों में 80 प्रतिशत आरक्षण और 20 प्रतिशत सीटें मेरिट के आधार पर भरने का प्रावधान किया था. इन 80 प्रतिशत में से स्वतंत्रता सेनानियों के लिए 30 प्रतिशत और युद्ध से प्रभावित महिलाओं के लिए 10 प्रतिशत आवंटित कर दिया गया.
- इसके चार वर्ष बाद 1976 में पहली बार आरक्षण व्यवस्था में परिवर्तन किया गया है और मेरिट के आधार पर नियुक्तियों का प्रतिशत बढ़ाकर 40 किया गया. बदलाव के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के लिए नौकरियों में 30 प्रतिशत सीटें, महिलाओं के लिए 10 प्रतिशत, युद्ध में घायल महिलाओं के लिए 10 प्रतिशत और जिलों के आधार 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर दी गयीं.
- इसके बाद 1985 में तत्कालीन स्थापना मंत्रालय (अब लोक प्रशासन) ने आरक्षण की सीमा में अल्पसंख्यकों को शामिल कर और योग्यता के आधार पर भर्ती की संख्या बढ़ा कर तत्कालीन प्रणाली में संशोधन किया. इस व्यवस्था के तहत प्रथम और दूसरी श्रेणी के पदों के लिए मेरिट आधारित कोटा 45 प्रतिशत और जिलेवार कोटा 55 प्रतिशत कर दिया गया. इस 55 प्रतिशत में 30 प्रतिशत पद मुक्ति योद्धाओं के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं और पांच प्रतिशत उपजातियों के लिए था.
वर्ष 1985 में ही जारी एक अधिसूचना में कहा गया था कि यदि उपयुक्त मुक्ति योद्धा उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो मुक्ति योद्धाओं/शहीद मुक्ति योद्धाओं के पुत्रों और पुत्रियों को मुक्ति योद्धाओं के लिए निर्धारित 30 प्रतिशत आरक्षण में से सीटें आवंटित की जा सकती हैं. - वर्ष 1990 में अराजपत्रित पदों पर नियुक्ति में आरक्षण व्यवस्था में आंशिक परिवर्तन हुआ, पर इसके बावजूद प्रथम और द्वितीय श्रेणी के लिए आरक्षण पहले की ही तरह रहा.
- वर्ष 1997 में सरकारी भर्तियों में मुक्ति योद्धा की संतान को भी शामिल किया गया.
- वर्ष 2002 में बीएनपी गठबंधन की तत्कालीन सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर मुक्ति योद्धाओं के लिए आरक्षण के आवंटन से संबंधित पहले जारी तमाम अधिसूचनाएं रद्द कर दीं और मुक्ति योद्धाओं में उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलने की स्थिति में उनके लिए आरक्षित 30 प्रतिशत पदों को मेरिट लिस्ट के उम्मीदवारों से भरने का निर्देश दिया.
- वर्ष 2008 में अवामी लीग की तत्कालीन गठबंधन सरकार ने बीएनपी के निर्देश को रद्द कर दिया.
- आरक्षण व्यवस्था में अगला बदलाव 2011 में हुआ. उस समय मुक्ति योद्धाओं के नाती-पोतों को भी इस 30 फीसदी आरक्षण में शामिल करने का निर्णय लिया गया.
- वर्ष 2012 में सरकार ने विकलांगों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया.
शेख हसीना : एक नजर में
पूरा नाम : शेख हसीना वाजेद
जन्म : 28 सितंबर, 1947 (तुंगीपारा, पूर्वी बंगाल)
शिक्षा : बैचलर डिग्री (एडन महिला कॉलेज, ढाका विश्वविद्यालय)
पेशा : राजनीति
प्रधानमंत्री का कार्यकाल : 1996-2001, 2009-2014, 2014-2019, 2019-2024 और जनवरी 2024 से 5 अगस्त, 2024
दल : बांग्लादेश अवामी लीग
पिता : शेख मुजीब-उर-रहमान (बांग्लादेश के संस्थापक, बंगबंधु के नाम से विख्यात)
माता : बेगम फजिलातुन्नेसा मुजीब
पति : एमए वाजेद मियां