बीजिंग : अभी हाल ही में शी जिनपिंग भले ही चीन के तीसरी बार राष्ट्रपति चुने गए हों, लेकिन पड़ोसी देश भारत के साथ कूटनीतिक संबंधों को लेकर उनकी नीतियों में दुविधा अब बरकरार है. उनके पदभार संभालते ही भारत के साथ संबंधों में सुधार होने की बजाय खटास तब और बढ़ गई, जब अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत-चीन सैनिकों के साथ पिछले नौ दिसंबर को झड़प हो गई. इससे भारत-चीन के संबंधों में तल्खियत पहले से कहीं अधिक बढ़ गई. अब जबकि साल 2022 समाप्त होने वाला है और 2023 की शुरुआत होने वाली है, तो कूटनीतिक तौर पर यह कयास अभी से ही लगाया जाने लगा है कि आने वाले नए साल में भारत-चीन के कूटनीतिक संबंधों पर जमी बर्फ की मोटी परत को पिघलने के आसार कम ही हैं.
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों का वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सेना के जवानों के साथ हुई झड़प के बाद से बीजिंग और नई दिल्ली के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं. यांग्त्से में चीन के सैकड़ों सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के इस पार भारतीय सीमा में अतिक्रमण करने की असफल कोशिश की थी. क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प से रिश्तों में आई तल्खी को दूर करने के प्रयास प्रभावित हो सकते हैं. दोनों देश हाल ही में 16 दौर की बातचीत के जरिये पूर्वी लद्दाख में कई बिंदुओं से सैन्य वापसी पर सहमति बनाने में कामयाब रहे थे.
अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के यांग्त्से में नौ दिसंबर को हुई झड़प पर संसद में दिए बयान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारतीय सेना ने बहादुरी से पीएलए को हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका और उन्हें अपनी चौकियों पर वापस जाने के लिए मजबूर किया. इस झड़प में दोनों पक्षों के कुछ सैनिकों को चोटें आई हैं. चीनी विदेश मंत्रालय ने जहां भारत के साथ सीमा पर स्थिति ‘सामान्यत: स्थिर’ होने की बात कही थी.
वहीं, पीएलए के पश्चिमी थिएटर कमान के प्रवक्ता एवं वरिष्ठ कर्नल लॉन्ग शाओहुआ ने एक बयान में बेबुनियाद आरोप लगाते हुए दावा किया था कि संघर्ष उस समय हुआ, जब भारतीय सैनिकों ने एलएसी पर चीनी सीमा में नियमित गश्त कर रहे उसके जवानों को रोका. लॉन्ग ने कहा था कि हमारे सैनिकों की प्रतिक्रिया पेशेवर, दृढ़ और मानक के अनुरूप थी, जिससे स्थिति को नियंत्रित करने में मदद मिली. तब से दोनों पक्ष पीछे हटने लगे हैं.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि पीएलए का बयान संकेत देता है कि चीनी सेना 3,488 किलोमीटर लंबी गैर-सीमांकित एलएसी पर प्रमुख बिंदुओं पर कब्जा करने के लिए सैकड़ों सैनिकों को गश्त पर भेजने की अपनी लद्दाख में अपनाई गई रणनीति जारी रख सकती है. यह जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के जवानों में हुआ सबसे बड़ा संघर्ष था. गलवान में झड़प के बाद भारत और चीन के रिश्तों में दरार बढ़ गई थी. भारत ने स्पष्ट किया था कि सीमा पर शांति और सद्भाव द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है.
यांग्त्से की घटना राजनीतिक रूप से भी अहम है, क्योंकि यह अक्टूबर में राष्ट्रपति जिनपिंग के अभूतपूर्व रूप से पांच साल के तीसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद भारत-चीन सीमा पर हुई पहली बड़ी घटना थी. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) ने चिनफिंग को चीन के सर्व-शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के अध्यक्ष के रूप में भी फिर से नियुक्त किया था, जो पीएलए की समग्र उच्च कमान है.
जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल में चीन में नए मंत्री और अधिकारी भी अहम पद संभालते नजर आएंगे. इनमें एक नए विदेश मंत्री की नियुक्ति शामिल है, क्योंकि मौजूदा समय में इस पद को संभाल रहे वांग यीन को पदोन्नत कर सीपीसी के उच्च स्तरीय राजनीतिक ब्यूरो में भेज दिया गया है. वांग और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल भारत-चीन सीमा तंत्र के विशेष प्रतिनिधि हैं, जो सीमा पर हाल ही में पैदा हुए गतिरोध के बाद निष्क्रिय है. अगले साल मार्च में चीन की संसद ‘नेशनल पीपुल्स कांग्रेस’ के वार्षिक सत्र के बाद नया मंत्रिमंडल और अधिकारी अपना कार्यभार संभालेंगे.
Also Read: LAC पर फिर ड्रैगन की धमक, चीन ने किया 150 मीटर सड़क का निर्माण, भारत भी हो रहा अत्याधुनिक हथियारों से लैस
भारत और चीन के विवाद वाले कई बिंदुओं से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए सहमत होने के बाद यांग्त्से में पीएलए द्वारा उठाए गए कदम को चीनी नेताओं और सैन्य अधिकारियों में व्याप्त उस दुविधा के प्रतिबिंब के रूप में देखा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ा रहे भारत से कैसा निपटा जाए. भारत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का मौजूदा अध्यक्ष है. वह अगले साल आठ देशों वाले इस समूह के शासनाध्यक्षों की मेजबानी करने को तैयार है. भारत प्रतिष्ठित जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए भी कमर कस रहा है। चीन इन दोनों ही समूहों का सदस्य है. इसके अलावा, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अपनी दो साल की अस्थायी सदस्यता (2021 और 2022) के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी लोकप्रियता अर्जित की है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वर्ष 2028-29 में भी यूएनएससी की अस्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी पेश कर दी है.
समाचार एजेंसी भाषा का इनपुट