आएगी कोरोना की अकाट्य दवा
वातावरण में छाया सन्नाटा कर रहा विकल।
भयभीत सा दिख रहा है संसार सकल।
लॉकडाउन तो खुल गया है आजकल।
फिर भी भयाक्रांत मनुष्य घर से नहीं रहा निकल।
चहुँ ओर निराशा और उदासी का है घोर अंधकार।
चाह कर भी ज़िदगी नहीं हो पा रही गुलज़ार।
शारीरिक,मानसिक व्याधियों ने इंसान को लिया है घेर।
सामान्य जीवन जीने की लालसा और चहुँदिश पसरी आशंका ने किया है बड़ा उलटफेर।
इससे निकलने की हर कोशिश मनुष्य को लेती है और ज़्यादा घेर।
आशा है शीघ्र ही आएगी कोरोना की अकाट्य दवा।
त्वरित ही होगी यह बीमारी दुनिया से दफ़ा।
जल्दी ही सुधरेगी मनुष्य की शारीरिक ,मानसिक दशा।
अवश्य ही लौटेगी बाज़ारों में रौनक चौतरफ़ा।
विनती है ऐ मालिक! इस आग में तपकर मनुष्य का स्वभाव भी जाए सुधर।
न सिर्फ़ अपनी,संपूर्ण ब्रहांड की करने लगे फ़िक़्र।
कभी न भविष्य में कोई बीमारी देखे पृथ्वी की ओर।
कर दो हमारी झोली आशीर्वादों से सराबोर।
– सीमा बेरी