Bhai Dooj Ki Aarti: देशभर में भाई दूज का पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है. हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. इसे कुछ जगहों पर यम द्वितीया के नाम से भी जाता है. इस बार यह पर्व 11 नवंबर को मनाया जा रहा है. इस दिन मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना के पूजा का विधान है. भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व भाई दूज का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि को यमराज और यमुना जी की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भाई दूज पर्व के दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना जी के घर पधारे थे, इस अवसर पर यमुना जी ने तिलक लगाकर उनका स्वागत किया था. यमुना जी के घर यमराज ने भोजन ग्रहण किया था, इस दिन बहन के आवास पर भोजन ग्रहण करने से भाई को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं. वहीं, भाई दूज के दिन पूजा के समय यमुना जी की आरती करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता
जो नहावे फल पावे सुख सुख की दाता
ॐ पावन श्री यमुना जल शीतल अगम बहै धारा,
जो जन शरण से कर दिया निस्तारा
ॐ जो जन प्रातः ही उठकर नित्य स्नान करे,
यम के त्रास न पावे जो नित्य ध्यान करे
ॐ कलिकाल में महिमा तुम्हारी अटल रही,
तुम्हारा बड़ा महातम चारों वेद कही
ॐ आन तुम्हारे माता प्रभु अवतार लियो,
नित्य निर्मल जल पीकर कंस को मार दियो
ॐ नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी,
मन ‘बेचैन’ भय है तुम बिन वैतरणी
ॐ ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता।
Also Read: Bhai Dooj 2023: क्यों मनाते हैं भाई दूज का पर्व? कब और कैसे हुई थी इस त्योहार की शुरुआत, जानें पौराणिक कथा
धर्मराज कर सिद्ध काज,
प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी ।
पड़ी नाव मझदार भंवर में,
पार करो, न करो देरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मलोक के तुम स्वामी,
श्री यमराज कहलाते हो ।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं,
तुम सब लिखते जाते हो ॥
अंत समय में सब ही को,
तुम दूत भेज बुलाते हो ।
पाप पुण्य का सारा लेखा,
उनको बांच सुनते हो ॥
भुगताते हो प्राणिन को तुम,
लख चौरासी की फेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे,
फुर्ती से लिखने वाले ।
अलग अगल से सब जीवों का,
लेखा जोखा लेने वाले ॥
पापी जन को पकड़ बुलाते,
नरको में ढाने वाले ।
बुरे काम करने वालो को,
खूब सजा देने वाले ॥
कोई नही बच पाता न,
याय निति ऐसी तेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
दूत भयंकर तेरे स्वामी,
बड़े बड़े दर जाते हैं ।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही,
भय से थर्राते हैं ॥
बांध गले में रस्सी वे,
पापी जन को ले जाते हैं ।
चाबुक मार लाते,
जरा रहम नहीं मन में लाते हैं ॥
नरक कुंड भुगताते उनको,
नहीं मिलती जिसमें सेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मी जन को धर्मराज,
तुम खुद ही लेने आते हो ।
सादर ले जाकर उनको तुम,
स्वर्ग धाम पहुचाते हो ।
जों जन पाप कपट से डरकर,
तेरी भक्ति करते हैं ।
नर्क यातना कभी ना करते,
भवसागर तरते हैं ॥
कपिल मोहन पर कृपा करिये,
जपता हूँ तेरी माला ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥