वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि 2014 में शुरू की गई प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) देश में वित्तीय समावेशन लाने का सबसे बड़ा साधन बनकर उभरी है. कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2023 के उद्घाटन के बाद मंत्री ने कहा कि 50 से अधिक सरकारी योजनाओं के तहत लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में स्थानांतरित किए जा रहे हैं और पीएमजेडीवाई ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि जब योजना शुरू की गई थी तो लोगों के एक वर्ग ने ‘भद्दी’ टिप्पणियां की थीं और कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक दबाव में होंगे क्योंकि ये ‘जीरो बैलेंस’ खाते हैं. सीतारमण ने कहा कि हालांकि, इन खातों में दो लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि है. वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में जलवायु वित्तपोषण और उससे जुड़ी चुनौतियों पर भी विस्तार से बात की. साथ ही, उन्होंने कहा कि मौजूदा वैश्विक स्थिति में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDB) सहित बहुपक्षीय संस्थान कम प्रभावी हो गए हैं. सीतारमण ने वैश्विक आतंकवाद से उत्पन्न चुनौतियों को भी रेखांकित किया और जोर दिया कि निवेशकों तथा व्यवसायों को निवेश संबंधी फैसले करते समय ऐसे कारकों को ध्यान में रखना होगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कर्ज की स्थिति को लेकर सचेत है और उसने यह सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय प्रबंधन किया है कि आने वाली पीढ़ी पर बोझ न पड़े.
मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने वाली होना चाहिए
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को इस बात पर जोर दिया कि मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने वाली होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसके ऐसा होने से ही जुलाई में 7.44 प्रतिशत के उच्चतम स्तर से मुद्रास्फीति में गिरावट सुचारू रूप से जारी रही. ‘कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2023’ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मूल्य स्थिरता तथा वित्तीय स्थिरता एक-दूसरे के पूरक हैं और आरबीआई ने दोनों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने का प्रयास किया है. सब्जियों तथा ईंधन की कीमतों में नरमी के कारण सितंबर में सालाना आधार पर खुदरा मुद्रास्फीति घटकर तीन महीने के निचले स्तर 5.02 प्रतिशत आ गई. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित मुद्रास्फीति अगस्त में 6.83 प्रतिशत और सितंबर 2022 में 7.41 प्रतिशत थी. जुलाई में मुद्रास्फीति 7.44 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक ने इस साल फरवरी में नीतिगत दर में कोई बढ़ोतरी नहीं की है. इससे पहले, पिछले साल मई से लेकर कुल छह बार में रेपो दर में 2.50 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी.
Also Read: Adani Group: गौतम अदाणी को मिलेगा 3.5 बिलियन डॉलर, तेजी से उछले शेयर, जानें ताजा अपडेट
डिजिटल भुगतान से मौद्रिक नीति का असर हुआ तेजी और प्रभावी
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि हमने नीतिगत दर पर रोक बरकरार रखी है. अब तक 2.50 प्रतिशत की वृद्धि वित्तीय प्रणाली के जरिए अब भी काम कर रही है. उन्होंने कहा कि डिजिटल भुगतान से मौद्रिक नीति का असर तेजी से और प्रभावी रूप से दिखने लगा है. शक्तिकांत दास ने इस बात पर भी जोर दिया कि मौद्रिक नीति हमेशा चुनौतीपूर्ण रहती है और इसमें आत्मसंतुष्ट होने की कोई बात नहीं है. गवर्नर ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अब तीन चुनौतियों मुद्रास्फीति, धीमी वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम का सामना कर रही है. घरेलू वित्तीय क्षेत्र के संबंध में उन्होंने कहा कि भारतीय बैंक तनाव की स्थिति के दौरान भी न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं को बनाए रखने में सक्षम होंगे. उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक वृद्धि का नया इंजन बनने के लिए तैयार है और मार्च 2024 में समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में देश की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है.
(इनपुट-भाषा)
Also Read: Wipro में पांच कंपनियों का होने वाला है मर्जर, बहाली पर भी पड़ेगा असर, जानें क्या है कंपनी का प्लान
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.