नई दिल्ली : उपासना स्थल कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है. अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को 31 अक्टूबर तक की मोहलत दी है. समाचार एजेंसी भाषा की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल अधिनियम-1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 31 अक्टूबर तक का समय दिया है.
एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, संबंधित कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन विद्यमान था. यह किसी धार्मिक स्थल को फिर से हासिल करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है.
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मंगलवार को केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उन दलीलों पर गौर किया कि सरकार ने इस पर विचार किया है और वह एक विस्तृत जवाब दाखिल करेगी. मेहता की दलीलों पर गौर करने के बाद पीठ ने केंद्र को याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए 31 अक्टूबर तक का वक्त दे दिया.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि केंद्र सरकार स्थगन के बाद स्थगन ले रही है. याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें.’ पीठ ने कहा कि भारत सरकार ने स्थगन का अनुरोध किया है. उन्हें जवाबी हलफनामा दाखिल करने दीजिए. केंद्र के हलफनामे पर गौर करने दीजिए.
सर्वोच्च अदालत ने यह भी साफ किया कि उसने कानून के अमल पर रोक नहीं लगाई है और उसने वकील वृंदा ग्रोवर से अपनी याचिका की प्रति सॉलिसिटर जनरल की सहायता कर रहे वकीलों को देने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने नौ जनवरी को केंद्र से उपासना स्थल अधिनियम-1991 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा था और उसे जवाब देने क लिए फरवरी के अंत तक का वक्त दिया था.
अदालत इस कानून के प्रावधानों के खिलाफ वकील अश्विनी उपाध्याय और राज्यसभा के पूर्व सदस्य स्वामी की जनहित याचिकाओं समेत छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अनुरोध किया है कि अधिनियम की धारा 2, 3, 4 को इस आधार पर खारिज किया जाए कि वे किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के उपासना स्थल पर पुनः दावा करने के न्यायिक उपचार के अधिकार को छीनती है. उन्होंने कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है जो 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थलों के स्वामित्व और स्वरूप पर यथास्थिति बनाए रखने का प्रावधान करते हैं.
स्वामी यह चाहते हैं कि सर्वोच्च अदालत कुछ प्रावधानों पर फिर से विचार करे, ताकि हिंदू वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर दावा करने के लिए सक्षम हो सकें. वहीं, उपाध्याय ने दावा किया कि पूरा क़ानून असंवैधानिक है और इस पर फिर से व्याख्या करने का कोई सवाल ही नहीं उठता.
वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि अधिनियम को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले द्वारा संदर्भित किया गया है और इसे अब खारिज नहीं किया जा सकता. अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद प्रकरण को इस अधिनियम से अलग रखा गया था.