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अनिल प्रकाश

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प्रकृति को लेकर चिंतन का समय

सच कहा जाए, तो अभी संभलने का समय है, साथ ही सामूहिकता का भी सवाल है. हम सरकार और समाज के साथ मिल कर यह चिंतन करें कि प्रकृति के प्रति हमारा व्यवहार किस तरह का होना चाहिए.

वनाग्नि में झुलसता वनों का भविष्य

भारत में 35.47 प्रतिशत वन ऐसे हैं, जिन्हें आग की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील माना गया है. तीन लाख से ज्यादा वनाग्नि की घटनाएं पिछले साल हुईं और नवंबर से अब तक आठ हजार से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं.

बिगड़ती आबोहवा की करें चिंता

आज वायु का प्रदूषण दुनिया में एक नये पैमाने के साथ मापा जाना चाहिए और इसको सीधे जीवनशैली से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. जीवन ही नहीं होगा, तो हम किस शैली को लेकर आगे बढ़ें, ये सोचने का समय भी नहीं बचेगा?

आवश्यक है जैव विविधता की सुरक्षा

आज की सबसे बड़ी चुनौती परिस्थिति तंत्र को समझने व समझाने की है. मात्र विकास को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि सरकारों से यह हमारी पहली मांग होती है.

धरती के लिए जैव-विविधता आवश्यक

उपलब्ध आंकड़े और अध्ययन तो यही इंगित करते हैं कि एक लाख से अधिक प्रजातियों को हमने खो दिया है. उससे भी बड़ी बात यह है कि दस लाख से अधिक प्रजातियों पर किसी-न-किसी प्रकार का खतरा मंडरा रहा है
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