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अशोक भगत

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संयम और सतर्कता से समाधान

विज्ञान की प्रगति ने हमें प्रयोगधर्मी बना दिया और परंपराओं को दकियानूसी कहकर हम तिरस्कृत करने लगे, जबकि हमने देखा है कि कोरोना काल में पारंपरिक व्यवस्था ने ही महामारी की मारक क्षमताओं को कमजोर किया.

कोरोना से जंग में जागरूकता जरूरी

यह आपदा कुछ अलग किस्म की है. हमें एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका में आगे आना चाहिए और इस आपदा में अपने नेतृत्व पर भरोसा करना चाहिए.

जलवायु परिवर्तन के खतरे

बदलते प्राकृतिक स्वरूप में ‘जीवन एवं जीविका’ को बचाना बहुत बड़ी चुनौती है, जिसे हमें स्वीकारते हुए नवाचार पर विशेष जोर देना चाहिए.

ग्रामोन्मुख बने कौशल विकास

कोई ऐसी योजना बनानी होगी, जो समेकित रोजगार विकास पर काम करे और बेरोजगारी में हो रहे इजाफे को नियोजित और प्रबंधित कर सके.

जल स्रोतों का संरक्षण आवश्यक

जलवायु परिवर्तन के महाविनाश से बचना है, तो नये जल स्रोत विकसित करने के साथ पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण का भी संकल्प लेना होगा.

दलहन उत्पादन को मिले बढ़ावा

दलहन में आत्मनिर्भरता के लिए औसत उत्पादकता 811 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 2050 तक 1500 किलोग्राम करने की आवश्यकता है. विश्व औसत उत्पादकता 869 किलोग्राम है.

गांव और शिल्पकार बनें मजबूत

गांव सबको नियोजित कर सकते हैं, लेकिन उसके लिए पहले गांवों को मजबूत करना होगा. गांव केवल किसान या पशुपालकों से मजबूत नहीं हो सकता है. इसके लिए शिल्पकारों को भी मजबूत बनाना होगा.

कोठदार बाबा पर हो राष्ट्रीय विमर्श

झारखंड के आदिवासी समाज में आंदोलनों की लंबी शृंखला है. इनमें कोठदार बाबा के आंदोलन की अलग अहमियत है, जिस पर राष्ट्रीय विमर्श की जरूरत है.

गांव को तीर्थ बनाने की जरूरत

ग्राम्य तीर्थ की अवधारणा पर विकास होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था तो मजबूत होगी ही, साथ ही हमारी ऋषि व कृषि वाली संस्कृति का भी संरक्षण हो सकेगा.
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