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Ashutosh Chaturvedi

मीडिया जगत में तीन दशकों से भी ज्यादा का अनुभव. भारत की हिंदी पत्रकारिता में अनुभवी और विशेषज्ञ पत्रकारों में गिनती. भारत ही नहीं विदेशों में भी काम करने का गहन अनु‌भव हासिल. मीडिया जगत के बड़े घरानों में प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का अनुभव. इंडिया टुडे, संडे ऑब्जर्वर के साथ काम किया. बीबीसी हिंदी के साथ ऑनलाइन पत्रकारिता की. अमर उजाला, नोएडा में कार्यकारी संपादक रहे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ एक दर्जन देशों की विदेश यात्राएं भी की हैं. संप्रति एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं.

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प्लास्टिक की अनदेखी के खतरे

हम प्लास्टिक व पॉलिथीन इस्तेमाल को कुछ हद तक नियंत्रित करने में तो सफल रहे हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल को खत्म करने में कामयाबी नहीं मिली है. प्लास्टिक और पॉलिथीन पर प्रतिबंध के सफल न हो पाने का एक सबसे बड़ा कारण विकल्पों की कमी है. इस पर प्रतिबंध तभी प्रभावी हो सकता है, जब इसके विकल्प सुगम व सस्ते हों.

प्रगाढ़ होते भारत-अमेरिका संबंध

विचारधारा और नीतियों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में चाहे जितनी भी जोर-आजमाइश हो, मगर दुनिया का कोई नेता विभाजन की बात करे, तो उसका एक स्वर में प्रतिकार किया जाना चाहिए. कोई हमें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाए, यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है. लोकतंत्र में लोक महत्वपूर्ण है और वह जिसको चुनेगा.

क्रिकेट टीम में बड़े बदलाव की जरूरत

जब मुकाबला कड़ा हो, तो खिलाड़ियों का चयन बहुत अहम हो जाता है. पर भारतीय चयनकर्ता हमेशा से प्रदर्शन के बजाय नामों की चमक-दमक पर ज्यादा ध्यान देते आये हैं. राहुल द्रविड़ की अगुआई में भारतीय टीम प्रयोगों की कहानी बन कर रह गयी है. पता ही नहीं चलता कि कौन खिलाड़ी कब खेलेगा और क्यों खेलेगा.

आइए जल संचय का संकल्प लें

पर्यावरणविद दिवंगत अनुपम मिश्र का मानना था कि जल संकट प्राकृतिक नहीं, मानवीय संकट है. उनका कहना था कि यह समस्या सामाजिक अधिक है, क्योंकि गांवों में हम जल संरक्षण के जो उपाय करते थे, उन्हें हमने छोड़ दिया है.

ओडिशा रेल हादसे के सबक

विशेषज्ञ इस ओर इशारा करते आये हैं कि हमारे ट्रैक पर भारी ट्रैफिक है और आधारभूत ढांचा उसके अनुरूप नहीं है. अधिकांश दुर्घटनाओं में प्रमुख कारण यही होता है.

धौनी में क्रिकेट अभी बाकी है

अगर आप गौर करें, तो पायेंगे कि धौनी की टीम में कोई बहुत बड़ा नाम नहीं है और न ही बहुत चमत्कारी खिलाड़ी हैं, लेकिन उनमें अपनी टीम से सर्वश्रेष्ठ निकाल लेने की कला है.

कैसे चुस्त-दुरुस्त हो हमारी पुलिस

समाज में एक कहावत प्रचलित है कि पुलिस वाले की न दोस्ती भली, न दुश्मनी. इस धारणा की जड़ें गहरी हैं. इसकी वजह यह है कि अनेक राज्यों से पुलिस द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग किये जाने की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं.

कांग्रेस की जीत एवं भाजपा की हार के मायने

इस चुनाव में पार्टियों के तरकश में जितने भी तीर थे, उन्हें चलाने में उन्होंने परहेज नहीं किया. नेताओं द्वारा अमर्यादित भाषा के उपयोग ने चुनाव का माहौल खराब किया.

खेल संघ नेताओं के कब्जे से मुक्त हों

हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे खेल संघों पर नेताओं ने कब्जा कर रखा है. अगर कोई खेल नेताओं से बचा, तो प्रभावशाली नौकरशाह या बड़े कारोबारी उस पर कब्जा कर लेते हैं. ऐसा केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि स्थानीय स्तरों पर भी हो रहा है.
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