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Ashutosh Chaturvedi

मीडिया जगत में तीन दशकों से भी ज्यादा का अनुभव. भारत की हिंदी पत्रकारिता में अनुभवी और विशेषज्ञ पत्रकारों में गिनती. भारत ही नहीं विदेशों में भी काम करने का गहन अनु‌भव हासिल. मीडिया जगत के बड़े घरानों में प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का अनुभव. इंडिया टुडे, संडे ऑब्जर्वर के साथ काम किया. बीबीसी हिंदी के साथ ऑनलाइन पत्रकारिता की. अमर उजाला, नोएडा में कार्यकारी संपादक रहे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ एक दर्जन देशों की विदेश यात्राएं भी की हैं. संप्रति एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं.

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गणित में भी अव्वल हैं बेटियां

यह स्थापित तथ्य है कि महिलाओं की अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने से न केवल सामाजिक, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी भारी बदलाव लाया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मानना है कि अगर भारत में आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो भारत की जीडीपी में भारी वृद्धि हो सकती है.

जनसंख्या नियंत्रित करने का वक्त

बढ़ती जनसंख्या का असर बहुआयामी है. इस बड़ी आबादी को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाएं, घर और पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है. इसके कारण खाद्यान्न का संकट उत्पन्न होता है, बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है

नौकरशाही को छवि सुधारने की जरूरत

नौकरशाहों और राजनेताओं के कार्य क्षेत्र स्पष्ट रूप से रेखांकित हैं और दोनों से देशहित में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है. अधिकारियों को यह समझना होगा कि उनको यह स्थान उनकी योग्यता के कारण मिला होता है और वे किसी भी राजनीतिक दल के चाकर नहीं हैं.

मोबाइल फोन के 50 वर्ष और चुनौतियां

मोबाइल चुपके से हमारे जीवन में प्रवेश कर गया है और हमें पता तक नहीं चला है. शायद आपने अनुभव किया हो यदि आप मोबाइल कहीं भूल जाएं या फिर उसमें कोई तकनीकी खराबी आ जाए, तो आप कितनी बेचैनी महसूस करते हैं. दरअसल, मोबाइल फोन की हम सभी को लत लग गयी है.

जल संकट के लिए तैयार रहिए

समस्या केवल कम बारिश की नहीं है. बारिश होती भी है, तो हम जल संरक्षण नहीं करते. अपने तालाबों को हमने पाट दिया है. शहरों में तो उनके स्थान पर बहुमंजिले अपार्टमेंट और मॉल खड़े हो गये हैं.

संयत भाषा का इस्तेमाल करें नेता

लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी होता है, लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों की जो स्थिति है, उसने विपक्ष को बेहद कमजोर कर दिया है. अब हालत यह है कि 1885 में स्थापित कांग्रेस आज अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष कर रही है. इस साल अनेक राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर 2024 में लोकसभा चुनाव हैं.

नियम-कानून से ऊपर कोई नहीं है

अपने देश में नेता व अधिकारी और उनके परिजनों की दबंगई के मामले रोजाना सामने आते हैं. यह बात कोई छुपी हुई नहीं है कि भारत में प्रशासनिक कामकाज में भारी राजनीतिक हस्तक्षेप होता है. जब भी किसी पहुंच वाले शख्स को पुलिस पकड़ कर ले जाती है, तो उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय रसूखदार नेताओं के फोन आ जाते हैं.

क्या खुशियां खरीदी जा सकती हैं

अमेरिका की सामाजिक संरचना भारतीय समाज से भिन्न है. वहां समाज भौतिकवादी और पूंजीवादी व्यवस्था से संचालित है. वहां ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो मानते हैं कि पैसे से खुशियां खरीदी जा सकती हैं

विमर्श के केंद्र में हों किसान

किसान अपनी फसल में जितना लगाता है, उसका आधा भी नहीं निकलता है. छोटी जोत के किसानों के समक्ष सबसे अधिक संकट है. उन्हें उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता है. उनका उत्पाद तो मंडियों तक भी नहीं पहुंच पाता है. बीच में ही बिचौलिये उन्हें औने-पौने दामों में खरीद लेते हैं.
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