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ज्ञानेंद्र रावत

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वर्षाजल संरक्षण ही संकट का समाधान

जल संग्रहण क्षमता सीमित होने के कारण वर्षा का अधिकांश पानी नदियों से होकर समुद्र में बेकार चला जाता है. सभी सरकारों के लिए यह गंभीर चुनौती है.

बादल फटने की गंभीर त्रासदी

भले भारत का प्राकृतिक आपदा से प्रभावित 171 देशों की सूची में 78वां स्थान है, लेकिन हमें संभावित खतरों से निबटने हेतु त्वरित प्रयास तो करने ही होंगे.

भारी बारिश के कारणों की पड़ताल

इस साल सितंबर में हुई बारिश का प्रमुख कारण माॅनसून का देरी से विदा होना, निम्न दबाव प्रणाली का जल्दी बनना और जलवायु परिवर्तन है.

जलवायु परिवर्तन से शीतलहर

शीतलहर के प्रकोप से आनेवाले 15-20 दिनों तक राहत मिलने के आसार नहीं हैं. नतीजतन शहरों में प्रदूषण का स्तर भी खतरनाक स्तर पर रहेगा.

ऋतु परिवर्तन का महापर्व

सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं या फिर पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य की महत्ता से जुड़ा है.

प्रेम वैलेंटाइन डे तक सीमित नहीं

सामाजिक बदलावों और मानवीय मूल्यों में आयी गिरावट के कारण आज प्रेम में ठहराव कहीं दिखाई ही नहीं देता, त्याग तो बहुत दूर की बात है.

जरूरी है नदियों का संरक्षण

साल 1986 में गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2014 में शुरू नमामि गंगे परियोजना, जिसमें केंद्र सरकार के सात मंत्रालयों की प्रतिष्ठा दांव पर थी, हजारों करोड़ स्वाहा हो गये, उसके बाद भी देश की राष्ट्रीय नदी, पुण्य दायिनी, पतितपावनी गंगा जस की तस है.

वर्षा जल संचयन समय की मांग

वर्षा जल का 47 फीसदी हिस्सा नदियों में चला जाता है. यदि इसी को रिचार्ज की स्पष्ट नीति के तहत संरक्षित किया जाए, तो देश में पानी का कोई संकट नहीं होगा.

बाघों को सुरक्षित करना जरूरी

वर्ष 2012 से हर साल औसतन 98 बाघ की मौत हुई है. सबसे ज्यादा मौतें 2021 में हुईं, जब यह संख्या 126 रही थी. इनमें 60 अवैध शिकार, सड़क हादसों व इंसानी संघर्ष में मरे थे.
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