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कृष्ण प्रताप

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क्रांति का अर्थ शोषण का अंत

क्रांतिकारी कभी यह छिपाते नहीं थे कि वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद से इसलिए युद्धरत हैं कि समाजवादी समाज व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं.

राजनीति में सिद्धांत के हिमायती

डॉ लोहिया का मानना था कि चुनाव प्रत्याशियों की हार-जीत से कहीं आगे पार्टियों द्वारा अपनी नीतियों व सिद्धांतों को जनता के बीच ले जाने के सुनहरे अवसर होते हैं.

भुला दिये गये जनकवि अदम गोंडवी

वे कहते थे कि जनता को बेचारगी के हवाले कर उसके हाल पर छोड़ दिया गया है. वह बेहद अपमानजनक स्थितियों में जी रही है. जो भी इस जनता के साथ रहेगा, उसको अपमान झेलना पड़ेगा.

गणेशशंकर विद्यार्थी : कृतित्व व शहादत दोनों अनमोल

आज की तारीख में हम स्वतंत्रता आंदोलन के जिन शहीदों की ओर सबसे ज्यादा उम्मीद से देख सकते हैं, उनमें गणेशशंकर विद्यार्थी का नाम बेहद खास है. सिर्फ इसलिए नहीं कि वे ‘आजादी की लड़ाई का मुखपत्र’ कहलाने वाले पत्र ‘प्रताप’ के संस्थापक-संपादक थे

इस दीपावली ऐसे बांटें उजाला

हम किसी ब्रांड के आकर्षण में न फंसकर स्वदेशी यानी स्थानीय स्तर पर उत्पादित हो रही वस्तुओं को खरीदना व इस्तेमाल करना शुरू कर दें, तो न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि उसकी आत्मनिर्भरता का मार्ग भी प्रशस्त होगा.

संविधान निर्माताओं की अपेक्षाएं

संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है. उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाये जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है.

‘हार की जीत’ वाले सुदर्शन!

अपने समय के दूसरे सुधारवादी सर्जकों की तरह सुदर्शन के लेखन का लक्ष्य भी समाज व राष्ट्र का पुनर्निर्माण था.

अनूठे नेता चौधरी चरण सिंह

देश के राजनीतिक हलकों में चौधरी चरण सिंह की अनूठी राजनीतिक नैतिकताओं के किस्से आज भी दंतकथाओं की तरह कहे और सुने जाते हैं.

हादसों से सबक लेना जरूरी

भीड़ प्रबंधन की नाकामी के कारण हुईं पिछली भगदड़ों के ब्यौरे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि उनके सबक अमल में लाये गये होते, तो ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति नहीं होती.
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