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क्षमा शर्मा

वरिष्ठ टिप्पणीकार

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मासिक धर्म से जुड़ी भ्रामक धारणाएं तोड़ने का समय

बड़ी संख्या में लड़कियां पढ़ने जाती हैं, बाहर निकलती हैं, नौकरी करती हैं. ग्रामीण स्त्रियां भी घरेलू काम के अतिरिक्त, पशुओं की देखभाल, फसलों की देखभाल आदि करती हैं.

सामाजिक चेतना बढ़ाने की आवश्यकता

इस पर भी गौर करने की जरूरत है कि जिस आदमी ने इस अपराध को अंजाम दिया, उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं आन पड़ी. हो सकता है कि उसे सजा मिल जाए, पर इससे लड़की के ऊपर कम आयु में जो बोझ पड़ेगा, वह कम नहीं हो जायेगा.

परिवार के बिन अकेलापन

परिवार दिवस के बारे में कहा जाता है कि इसे 2007 में कामगारों की सुविधा के लिए बनाया गया था कि कम से कम कर्मचारी वर्ग एक विशेष दिन अपने परिवार के साथ बिता सकें

परिवार को बचाने का प्रयास जरूरी

जो आज जवान है, जिम्मेदारी उठाने से मना कर रहा है, कल वह भी बूढ़ा होगा. उसकी जिम्मेदारी भी कोई नहीं उठायेगा. पश्चिम का रहन-सहन हम सीख रहे हैं, बोली-वाणी के पीछे दौड़ रहे हैं

यह रणबीर की नग्नता है, कला नहीं

अगर वाकई दर्शकों पर कुछ असर डालना था, तो किसी फिल्म में ऐसा अभिनय करते, जो हमेशा याद रह जाता. यह क्या हुआ कि कपड़े उतार दिये और अपने को कैसानोवा समझने लगे!

दीपावली हो शांति का पर्व

अगर किसी की अच्छी नौकरी लग गयी, वेतन बढ़ा, परिवार में बढ़ोतरी हुई, तो एक बात कही जाती है- इस बार तो उसकी दूसरी दीपावली हो गयी यानी दीपावली का मतलब है खुशी, उजास, उजाला. वैसे भी इसे प्रकाश का पर्व कहा जाता है. यह भी दिलचस्प है कि जिस दिन अमावस्या होती है, ठीक उसी दिन हमारे घररोशनी से जगमगा उठते हैं.

दुष्कर्म की जांच के तरीके पर कोर्ट का फैसला उचित

आश्चर्य यह भी है कि अब तक किसी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया. यह मान कैसे लिया गया कि बलात्कार जैसे अपराध को प्रमाणित करने के लिए स्त्री को इस बात का सर्टिफिकेट भी लेना होगा कि बलात्कार से पहले उसके किसी से संबंध नहीं रहे.

महिलाओं के खिलाफ खत्म हो हिंसा

महिलाओं के खिलाफ हर तरह की हिंसा समाप्त करने के लिए सिर्फ सरकारों की नहीं, आम जन की भी असली भागीदारी चाहिए. यह कैसे हो, इस पर सोचा जाना चाहिए.
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