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प्रभु चावला
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Opinion
सेकुलर सिविल कोड का नया मंत्र
Secular Civil Code : चुनाव अभियान के दौरान भाजपा के नेता समान नागरिक संहिता को देश को एकताबद्ध करने के एकमात्र उपाय के रूप में देख रहे थे. अल्पसंख्यकों को मिलने वाले विशेषाधिकारों को मुद्दा बनाकर भाजपा लगातार नागरिक संहिता को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए हथियार बनाती रही है. अब मोदी ने बिना विवरण बताये सेकुलर बनाम कम्युनल कोड की बहस शुरू कर दी है.
Opinion
फिल्मों से अलग है राजनीति की कंगना
Kangana Ranaut : उनका व्यक्तित्व अवचेतन के स्तर पर स्वयं को झांसी की रानी से जोड़ता है. लेकिन बॉलीवुड की इस रानी को बलिदान नहीं देना है, बस लड़ना है. वे अपने आदर्श नरेंद्र मोदी के दृढ़ व्यक्तित्व से आकर्षित होकर छह साल पहले भाजपा से संबद्ध हुई थीं, जिन्होंने उन्हें उनके गृह राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया.
Opinion
आरक्षण के स्वरूप में बदलाव जरूरी
Reservation in India: अनुसूचित जातियों और जनजातियों की दुर्दशा को देखते हुए संविधान निर्माताओं ने कार्यपालिका एवं विधायिका में प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की, जो एक अस्थायी प्रावधान था और उसकी अवधि दस वर्ष थी. भारतीय राजनीति को यथास्थिति पसंद है और इसे बदलाव से परहेज है.
Opinion
नयी सरकार में निरंतरता को प्रमुखता
पिछले कुछ हफ्तों में मोदी सरकार के क्रियाकलापों को देखकर लगता है कि निरंतरता बदलाव पर हावी हो गयी है. मंत्रिपरिषद का रंग जरूर बदला है,
Opinion
यूरोप के सामने पहचान की चुनौती
इस वर्ष अप्रैल में द इकोनॉमिस्ट ने लिखा था कि यूरोपीय संघ में कोई ढाई करोड़ मुस्लिम हैं और पूरे यूरोप में इनकी संख्या पांच करोड़ है.
Opinion
स्वच्छ एवं समृद्ध भारत बनाने की ओर बढ़ें मोदी
साल 2029 में जीत और राज्यों में पकड़ बनाये रखने के लिए भाजपा को नये मोदी की आवश्यकता है. भारत जल्दी ही पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जायेगा.
Opinion
राहुल गांधी का राजनीतिक उत्थान
राहुल धारदार वक्ता नहीं हैं. उन्हें मोदी की राजनीति, आर्थिक नीति और कूटनीति में कमियां निकालने की कला सीखनी होगी.
Opinion
मोदी के लिए अहम हैं अश्विनी वैष्णव
मंत्री के रूप में मिले बंगले के अलावा वैष्णव का असली घर मोदीनॉमिक्स और मोदीपॉलिटिक्स का कंटेनर है. वे कम बोलने और अपना काम चुपचाप करते रहने के लिए जाने जाते हैं.
Opinion
संविधान एवं सर्वसम्मति के लिए जनादेश
भाजपा ने 2014 में 282 और 2019 में 303 सीटें जीती थीं. इस बार भाजपा लगभग 430 सीटों पर लड़ी थी, पर उसे 240 सीटें ही मिल सकीं. उसने 63 सीटें खो दी.