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प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

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मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के सम्मान

मिथुन दा के फिल्मी सफर को बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना

स्वप्न में भी नृत्य देखती थीं यामिनी कृष्णमूर्ति

अपने नृत्य कौशल से यामिनी 1957-58 के अपने आरंभिक प्रदर्शनों से ही इतनी लोकप्रिय हो गयी थीं कि उनके नृत्य को देखने के लिए दर्शक महंगे टिकट खरीदते थे. उनके नृत्य इतने लोकप्रिय हुए कि उनके घुंघरुओं की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच गयी, जिसका परिणाम यह हुआ कि आये दिन लंदन, अमेरिका, रूस, जापान फ्रांस, अफगानिस्तान आदि से उनको नृत्य के लिए आमंत्रण मिलता रहता था.

फिर राममय हो रही है संगीत एवं सिनेमा की दुनिया

फिल्मकारों को फिर से राम याद आने लगे हैं, जिससे गीत-संगीत की दुनिया के साथ-साथ टीवी-सिनेमा का रुपहला पर्दा फिर से राममय हो गया है.

आवाज के जादूगर अमीन सयानी का जाना

अमीन सयानी ने मुझे एक बार बताया था कि वे सिर्फ सात साल के थे, जब उनके भाई उन्हें चर्च गेट पर ऑल इंडिया रेडियो के ऑफिस ले गये थे. तभी से उन्हें रेडियो से प्यार हो गया.

सौ बरसों में कई रंग बदले हैं रेडियो ने

यूं भारत में रेडियो के सौ बरस को देखें, तो रेडियो ने कई रंग बदले हैं. रेडियो के बड़े बड़े आकार से लेकर पॉकेट ट्रांजिस्टर तक कितने ही किस्म के रेडियो सेट आते रहे. आज तो रेडियो डिजिटल होकर मोबाइल फोन पर भी सुलभ है. बरसों पहले रेडियो सुनने के लिए घर में एंटीना लगाया जाता था.

भारत रंग महोत्सव : नाटकों का महाकुंभ

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यूं तो ‘भारत रंग महोत्सव’ का आयोजन 1999 से कर रहा है. परंतु इस वर्ष का यह रंग महोत्सव बेहद खास है. वह इसलिए कि एक तो ‘भारंगम’ का यह रजत जयंती वर्ष है. दूसरा, पहली बार इस आयोजन में देश-विदेश के लगभग 150 नाटकों का मंचन होने जा रहा है.

जूनियर महमूद: छोटी उम्र का बड़ा सितारा

जूनियर की किस्मत तब बदली, जब निर्माता जीपी सिप्पी की फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ के निर्देशक भप्पी सोनी ने नईम से फिल्म ‘गुमनाम’ में महमूद पर फिल्मांकित गीत ‘काले हैं तो क्या हुआ है’ पर डांस करने को कहा. नईम ने ऐसा डांस किया कि सभी हैरान रह गये. इसी फिल्म से नईम जूनियर महमूद बनकर पर्दे पर आये.

गोवा में दुनियाभर की फिल्मों का भव्य मेला

जिस प्रकार भारतीय सिनेमा दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहा है, उससे भारतीय फिल्मों के ग्राहक दूर-दराज से मिलने लगे हैं. यही कारण है कि पिछले तीन वर्षों में हमारा फिल्म बाजार 20 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि से आगे बढ़ रहा है. इससे भारत के 
बाजार की विश्व रैंकिंग पांचवें नंबर पर पहुंच गयी है.

बदल रही है राष्ट्रीय फिल्म समारोह की तस्वीर

फाल्के सम्मान में महिलाओं की स्थिति देखें तो 1969 से 2019 तक के 50 बरसों में सिर्फ छह महिलाओं को ही फाल्के सम्मान से नवाजा गया. लेकिन अब पिछले दो बरसों में लगातार दो महिलाओं को फाल्के सम्मान मिलने से एक नया इतिहास बन गया है.
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