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शिवानंद तिवारी

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राजद

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स्मृति शेष: संघर्षों के साथी शिवपूजन भाई की याद

Shiv Pujan Bhai : एक पूर्व विधायक ने दरी बिछाकर किसी की छत पर बाहर से आये अपने अतिथि साथी के सोने का इंतजाम किया और मुफलिसी की वजह से बगैर सत्तू के लिट्टी खा और खिला रहा है. उनकी जमात प्रायः पिछड़े, दलित और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों की थी.

लोकतांत्रिक मूल्यों को दबाने के लिए लगा था आपातकाल

आजादी के बाद देश में ऐसी पहली परिघटना घटी थी. इसके चलते लोगों में उबाल था. उन्हें लग रहा था कि बड़े संघर्षों एवं बलिदानों से हासिल की गयी आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों को दबाने के लिए तथा अपनी सत्ता को बचाने के लिए इंदिरा गांधी आपातकाल का सहारा ले रही हैं. यह बात उस संदर्भ में एक हद तक सही भी थी.

मित्र लालमुनि को याद करते हुए

आंदोलन के दरम्यान जब जेपी ने आंदोलन समर्थक दलों के विधायकों को त्यागपत्र देने का निर्देश दिया, तो चौबे उन चंद लोगों में थे, जिन्होंने जेपी की पहली आवाज पर इस्तीफा दे दिया था.

विराट व्यक्तित्व के स्वामी रहे जेपी

सभी विजयी नेताओं के साथ जयप्रकाश जी को भी उस विजय रैली को संबोधित करना था, लेकिन जेपी उस रैली में नहीं जा कर गांधी शांति प्रतिष्ठान के अपने कमरे से निकल कर एक सफदरजंग वाली कोठी में, जहां उनकी पराजित इंदू रहती थीं, वहां गये.

साफ और बेलाग बोलते थे प्रो मैनेजर पांडेय

प्रोफेसर पांडेय ने कहा है कि व्यक्ति के चले जाने के बाद उसकी यादें रह जाती हैं. उसकी लिखी हुई किताबें रह जाती हैं. बाद की पीढ़ी उनको पढ़ती है तथा उनसे जितना ग्रहण कर सकती है, ग्रहण करती है.
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