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महामारी और अर्थव्यवस्था

दूसरी तिमाही से वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी की उम्मीद है, जिसका फायदा भारत को भी होगा. बढ़ते निवेश और निर्यात से इसके संतोषजनक संकेत मिल रहे हैं.

आत्मघाती लापरवाही

अफसोस की बात है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के उपायों के प्रति लोग लापरवाही बरत रहे हैं. यह लापरवाही उन जगहों पर भी देखी जा रही है, जहां महामारी का प्रकोप अधिक है.

चिंताजनक बेरोजगारी दर

रोजगार में कमी का सीधा असर मांग में गिरावट के रूप में सामने आता है. यदि मांग कम होगी, तो उत्पादन और वितरण में भी कमी आयेगी.

भारतीय भूमिका का विस्तार

बहुध्रुवीय विश्व की वर्तमान रचना प्रक्रिया में भू-राजनीति, वाणिज्य-व्यापार और सामरिक व रणनीतिक आयामों का नये ढंग से संतुलन बन रहा है.

वृद्धि में बाधा

अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गयी है. आर्थिक वृद्धि इस बात पर निर्भर करेगी कि हम कितनी जल्दी इस महामारी पर काबू पाते हैं.

गरीबी का साया

उम्मीद थी कि 2020 में करीब 10 करोड़ भारतीय वैश्विक मध्य वर्ग का हिस्सा होंगे, लेकिन महामारी ने इस आंकड़े को 6.6 करोड़ के स्तर पर ला दिया है.

कामगारों पर ध्यान

प्रवासी कामगार हमारी अर्थव्यवस्था के आधार हैं. स्थिति सामान्य होने के बाद उन्हें फिर शहरों में बुलाने में देरी होगी. इससे आर्थिक गतिविधियों को चालू करने में देरी होगी.

टीका बर्बाद न हो

सवाल केवल दवा की कुछ खुराक के खराब होने का नहीं है, यह लोगों के जीने-मरने का मसला है. यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे जाने-अनजाने लापरवाही न हो.

जजों की कमी

उच्च न्यायालयों में कुल 1080 जजों के पद निर्धारित हैं, जिनमें से 416 पद खाली हैं. कॉलेजियम ने सरकार से 196 नामों को नियुक्त करने की सिफारिश की है.
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