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सुधा सिंह

सीनियर प्रोफेसर, हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय

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स्वतंत्रता संग्राम में स्त्रियों की भूमिका विशिष्ट थी

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महिलाओं ने अपने लेखन में गंभीर राजनीतिक चेतना का परिचय दिया. उनके लेखन के दो महत्वपूर्ण छोर थे.

एक थीं उषा देवी मित्रा

उनकी कहानियों में समाज में स्त्री की वैविध्यपूर्ण छवियां उभरती हैं. शिक्षित, अशिक्षित, विधवा, विवाहिता स्त्रियां उनकी रचनाओं में हैं.

आजादी का आख्यान और लेखिकाएं

भारत में स्त्री शिक्षा और साक्षरता की हीन स्थिति को देखते हुए साधारण स्त्रियों ने जिस उत्साह से स्वाधीनता आंदोलन में सहयोगी होने का प्रमाण दिया, वह अभूतपूर्व था.

स्त्रियों के प्रति समाज बदले नजरिया

आज भी कुछ पुरुषों में कहीं न कहीं यह भय है कि स्त्रियां यदि घर से बाहर निकलेंगी, तो बहुत सारा विघटन परिवार, समाज, राजनीति और बाहरी दुनिया में होगा, इस भय से पुरुषों को उबरना चाहिए.

हिंदी में विज्ञानकथा और लेखिकाएं

विज्ञानकथा में स्त्री रचनाकारों का प्रवेश एक नये लोकप्रिय विधा को अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों के जरिये समृद्ध करने का सुंदर प्रयास हो सकता था, लेकिन हिंदी में स्त्री लेखन का ध्यान इस तरफ कम है.

लुग्दी साहित्य को लेकर बदले सोच

लोकप्रिय कला और साहित्य रूप जनसमाज की पैदाइश हैं, आधुनिक उद्योग आधारित संस्कृति आने के पहले हम इस प्रकार के साहित्य रूप की कल्पना नहीं कर सकते. दोहराव और लगातार दोहराव इसका गुण है. इसके जरिये ही यह अपने आपको प्रतिष्ठित करता है. इसी कारण इसमें फार्मूलाबद्धता का प्रवेश होता है.

भाषा का संबंध हमारे जीवन से है

भाषा का अपने सामाजिक यथार्थ से गहरा रिश्ता होता है. कोई भी भाषा अपने व्यापक सामाजिक-आर्थिक सरोकारों से जुड़े सच को व्यक्त करके ही शक्ति अर्जित करती है. कोई लेखक हिंदी में लिखने मात्र से महान लेखक नहीं बन जाता.
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