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योगेंद्र यादव
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Opinion
Election in India : लोक उत्सव जैसे होते थे पहले के चुनाव
Election in India : पिछले चार दशकों में चुनावों के दौरान देश और दुनिया के अलग-अलग कोनों की धूल फांकने का मुझे मौका मिला, अखबार, टेलीविजन और अब यूट्यूब पर मैंने विश्लेषण किया है, एक बार खुद चुनाव लड़ने और कई बार चुनाव लड़ाने का अवसर भी मुझे मिला है.
Opinion
पहुंच से दूर होते शिक्षा के अवसर
Education Opportunities : अंग्रेजी के लालच में अभिभावक अपने बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे हैं, पर उसमें भी बच्चों का हाथ तंग है. ग्रामीण निजी स्कूलों में (अधिकांश अंग्रेजी मीडियम) पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले 47 फीसदी बच्चे अंग्रेजी का एक साधारण-सा वाक्य पढ़ सकते थे, और मात्र 29 प्रतिशत उसका अर्थ बता सकते थे.
Opinion
असली अमेरिकी चेहरे को बेनकाब करता चुनाव
US Election 2024 : अमेरिकी चुनाव को देखने के तीन नजरिये हो सकते हैं. पहला, बाकी दुनिया की तरह हम उत्सुकता से परिणाम का अनुमान लगा सकते हैं, मानो यह इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का टेस्ट मैच हो. अमेरिकी राजनीति के विद्वानों की राय मानें, तो इस बार कांटे की टक्कर है.
Opinion
भारत की संत परंपरा को खोजना जरूरी
Tradition of India : संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ, नामदेव, जनाबाई, रामदास, शेख मोहम्मद, गोटा कुम्हार और रोहिदास की परंपरा ने सदियों तक इस प्रदेश की संस्कृति को परिभाषित किया. लेकिन 20वीं सदी आते-आते यह परंपरा लुप्त प्राय हो जाती है.
Opinion
मणिपुर पर देश में सन्नाटा पसरा है
Manipur news : अगर विपक्षी दलों की किसी सरकार में जंगलराज की खबर होती, तो चल भी जाती. तो, कुछ ऐसी खबर लाइए, जिसमें कुछ रस हो, हमारे रीडर्स के लिए दिलचस्पी हो.’ चलिए, मैं कोशिश करता हूं कि कुछ-कुछ सनसनीखेज खबर सुनाऊं आपको.
Opinion
हिंदी दिवस पर पढ़ें राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव का यह खास आलेख- हिंदी पखवाड़े...
Hindi Diwas 2024 : बच्चों को हिंदी पढ़ने-बोलने के उपदेश मत दीजिए, उनके लिए ऐसी कहानियां लिखिए कि उन्हें हिंदी का चस्का लग जाए.
Opinion
आर्थिक वृद्धि के वैकल्पिक सूत्र
हम असली सवाल कब पूछेंगे? देश एक भयावह संकट की तरफ बढ़ता जा रहा है. हर दिन कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेज इजाफा हो रहा है. चार दशक बाद पहली बार आर्थिक वृद्धि की रफ्तार शून्य से नीचे जाने की संभावना है.क्या हम सिर्फ आशंका व्यक्त करेंगे और आंकड़े गिनते रहेंगे? या फिर हमदेश के सामने एक स्पष्ट योजना रखकर काम करने का संकल्प दिखायेंगे ? वित्तमंत्री के कथित पैकेज का पिटारा खुलने के बाद हम जैसे कुछ लोगों नेतय किया कि सिर्फ विरोध नहीं, हम इसका विकल्प भी तैयार करेंगे.
Opinion
आपातकाल के सबक
लोकतंत्र के मूल को परिवर्तित करने के लिए इसकी जरूरत नहीं होती. आपात की औपचारिक शुरुआत थी, तो अंत भी होना था. हम जिस नये तंत्र में रह रहे हैं, उसकी शुरुआत तो है, लेकिन कोई अंत को लेकर अाश्वस्त नहीं है.
Opinion
कितना कारगर होगा प्रदूषण कमीशन
दिल्ली और एनसीआर के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण उद्योग और वाहनों का प्रदूषण है. शहरों में जलने वाला कचरा और बिल्डिंग निर्माण का गर्दा भी कारण हैं. सर्दी के महीनों में इस इलाके का प्रदूषण पराली जलाने से भी बढ़ता है़