नई दिल्ली : आपने टीवी सीरियल में बीआर चोपड़ा वाला धार्मिक सीरियल ‘महाभारत’ तो देखी होगी, जिसकी पटकथा राही मासूम रजा ने लिखी थी. लेकिन, क्या आप महाभारत के पात्रों के अनछुई रोचक कहानियों के बारे में जानते हैं? आइए, इन्हीं कुछ रोचक कथाओं में से एकाध को हम जानने की कोशिश करते हैं. द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के समय में दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत हुआ था. इसे ‘जय’ भी कहा जाता है. यह युद्ध राज्य पर अधिकार प्राप्त करने के लिए अपने ही चचेरे भाइयों के बीच हुआ था. इसे ‘धर्मयुद्ध’ भी कहा जाता है. इसमें एक पक्ष पांडवों का था और दूसरा कौरवों का. पांडवों में पांच भाई युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे. इनके पिता का नाम महाराजा पांडु थे, जो हस्तिनापुर के राजा थे. उनकी दो पत्नियां थीं कुंती और माद्री.
कौन थे युधिष्ठिर
कुंती से तीन पुत्र युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन हुए, जबकि माद्री से दो पुत्र नकुल और सहदेव हुए. महाराजा पांडु से विवाह होने के पूर्व कुंती ने भगवान भास्कर की आराधना की थी. उससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने वरदान मांगने को कहा था, तो कुंती ने पुत्ररत्न की मांग कर दी. भगवान भास्कर ने उनकी इच्छा की पूर्ति करते हुए उन्हें पुत्ररत्न दिया था, जिसका नाम कर्ण था. कर्ण को राधेय भी कहा जाता है और वे कुंती के ज्येष्ठ पुत्र थे और चूंकि भगवान भास्कर के वरदान से प्राप्त हुए, तो उन्हें सूर्यपुत्र भी कहा जाता है. लेकिन, महाराजा पांडु के साथ विवाह होने के बाद युधिष्ठिर कुंती के ज्येष्ठ पुत्र कहलाए. महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में बताया गया है कि युधिष्ठिर धर्मराज के अंश थे और कुंती के गर्भ के जरिए संसार से दुराचार को समाप्त करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, इसलिए उन्हें धर्मराज युधिष्ठिर भी कहा जाता है. युधिष्ठिर के बारे में कहा जाता है कि वे कभी ‘झूठ’ नहीं बोलते थे.
कौन थे दुर्योधन
वहीं दूसरी ओर, कौरवों में सबसे बड़े दुर्योधन थे. उसके बाद दुस्सासन हुए. दुर्योधन के चूंकि 100 भाई थे, इसलिए उन्हें कौरव कहा गया. कौरवों के पिता का नाम धृतराष्ट्र था, जो जन्म से अंधे थे. धृतराष्ट्र का विवाह गांधार नरेश की बेटी गांधारी से हुई. गांधारी ने जब अपने पति धृतराष्ट्र को बिना आंख का देखा, तो उन्होंने भी अपनी आंखों पर आजीवन पट्टी बांध ली. महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत (इसे ‘जय’ भी कहा जाता है.) में धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन और उनके सौ पुत्रों को दंभी, दुराचारी, छली और कपटी भी कहा गया है.
क्यों हुआ था महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध हस्तिनापुर राज्य पर अधिकार प्राप्त करने को लेकर हुआ था. दरअसल, हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य की दो रानियां थीं. उनका नाम अंबिका और अंबालिका थीं. विचित्रवीर्य क्षय रोग से ग्रस्त थे, इसलिए वे संतानोत्पत्ति के लायक नहीं थे. ऐसी स्थिति में महर्षि वेदव्यास ने अपनी दिव्यदृष्टि से उन दोनों रानियों को संतान का वरदान दिया. जिस समय महर्षि वेदव्यास वरदान दे रहे थे, तो अंबिका ने अपनी आंखें बंद कर लीं. इसलिए उनके उत्पन्न पुत्र धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हो गए. वहीं, अंबालिका ने अपने अंगों पर पीली मिट्टी का लेप लगा लिया, तो उनके उत्पन्न पुत्र जन्मजात पांडु रोग यानी पीलिया से ग्रस्त पैदा हुए. इसलिए उन्हें पांडु कहा गया. पांडु विचित्रवीर्य के छोटे बेटे थे, लेकिन धृतराष्ट्र के दृष्टिहीनता की वजह से हस्तिनापुर के सिंहासन पर पांडु को बैठाया गया. बाद में जब महाराज पांडु और धृतराष्ट्र के बेटे बड़े हुए तो दुर्योधन ने राज्य की गद्दी प्राप्त करने की हठ ठान दी और इसीलिए महाभारत का युद्ध हुआ था.
जमीन से चार अंगुल ऊपर उड़ता था युधिष्ठिर का रथ
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में इस बात का जिक्र किया गया है कि जब हस्तिनापुर राज्य पर अधिकार प्राप्त करने के लिए पांडवों और कौरवों में युद्ध हो रहा था, तो सबके पास अपने-अपने रथ थे. पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर के पास भी रथ था, जिसके सारथी इंद्रसेन थे. हालांकि, इंद्रसेन से पहले नकुल और सहदेव के मामा मद्रराज शल्य उनके सारथी थे, लेकिन कर्ण का भेद जानने के लिए युधिष्ठिर ने उन्हें कर्ण के रथ के सारथी के तौर पर नियुक्त करवा दिया था. बताया जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर का रथ जमीन से 4 अंगुल ऊपर उड़ता था. इसके पीछे कारण यह बताया जाता है कि महाराज युधिष्ठिर कभी ‘झूठ’ नहीं बोलते थे, सत्याचरण का पालन करते थे और धर्मात्मा थे, इसलिए उनके पुण्य के प्रताप से उनका रथ जमीन से 4 अंगुल ऊपर हवा में उड़ता था. उनके रथ का नाम ही ‘धर्मपद’ था.
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युधिष्ठिर के एक ‘झूठ’ से जमीन पर आ गया रथ
महाभारत में इस बात का जिक्र है कि जब हस्तिनापुर राज्य पर अधिकार प्राप्त करने के लिए पांडवों और कौरवों में युद्ध शुरू हुआ, तो भीष्म पितामह को कौरवों का सेनापति बनाया गया था, लेकिन उनके शरशय्या पर लेट गए, तो गुरु द्रोणाचार्य को कौरवों की सेना का सेनापति बनाया गया. गुरु द्रोण ने पांडवों की सेना में भीषण तबाही मचाई. इसे देखकर भगवान श्रीकृष्ण चिंतित हो गए. तब भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि गुरु द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा से बहुत प्रेम करते हैं, अगर हम उन्हें ये यकीन दिला दें कि उनके पुत्र का वध हो चुका है, तो वे अपने अस्त्र त्याग देंगे. उस अवस्था में उनका वध आसानी से किया जा सकेगा. श्रीकृष्ण ने भीम से कहा कि युद्ध भूमि में एक हाथी का नाम अश्वत्थामा है, तुम उसका वध कर दो और द्रोणाचार्य के सामने जाकर कहो कि अश्वत्थामा मारा गया. भीम ने ऐसा ही किया. भीम के मुख से अपने पुत्र की मौत की खबर सुनकर आचार्य द्रोण को विश्वास नहीं हुआ. तब उन्होंने युधिष्ठिर से इसके बारे में पूछा, क्योंकि वे जानते थे कि युधिष्ठिर कभी ‘झूठ’ नहीं बोलता. गुरु द्रोणाचार्य के पूछने पर युधिष्ठिर न कहा कि अश्वत्थामा मारा गया और उसके बाद धीरे से बोले, किंतु हाथी. इसके पहले युधिष्ठिर का रथ पृथ्वी से चार अंगुल ऊंचा उड़ता था, लेकिन उस दिन के एक ‘झूठ’ की वजह से उनका रथ जमीन से सट गया.
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