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सफलता का आनंद लें, उसके बोझ तले नहीं दबें

दोनवंबर, 2011 याद होगा. पूरे देश की निगाह टीवी स्क्रीन पर टिकी थी. केबीसी का सीजन-5 का टेलीकास्ट हाे रहा था. एक तरफ महानायक अमिताभ बच्चन एंकर के रूप में और दूसरी तरफ उनके सवालों का जवाब देने के लिए मोतिहारी बिहार के सुशील कुमार कुर्सी पर विराजमान थे. दावं पर लगे थे पांच करोड़ […]

दोनवंबर, 2011 याद होगा. पूरे देश की निगाह टीवी स्क्रीन पर टिकी थी. केबीसी का सीजन-5 का टेलीकास्ट हाे रहा था. एक तरफ महानायक अमिताभ बच्चन एंकर के रूप में और दूसरी तरफ उनके सवालों का जवाब देने के लिए मोतिहारी बिहार के सुशील कुमार कुर्सी पर विराजमान थे. दावं पर लगे थे पांच करोड़ रुपये.

अमिताभ बच्चन ने सुशील से 13वां सवाल पूछा. कौन सा देश निकोबार द्वीप बेच कर वर्ष 1868 में भारत से चला गया था? सारी निगाहें सुशील कुमार की तरफ थीं कि वो क्या जवाब देंगे. खेल छोड़ देंगें और एक करोड़ रुपये लेकर संतुष्ट हो जायेंगे. या फिर सवाल का जवाब देंगे. लेकिन, समस्या यह थी कि गलत जवाब देने का का मतलब था सीधे एक लाख साठ हजार पर पहुंच जाना और सही जवाब का मतलब था पांच करोड़ रुपये का विजेता बनना.

छह हजार की नौकरी करनेवाले सुशील कुमार के लिए यह बहुत ही दुविधा का समय था. यह उनके लिए केवल पांच करोड़ रुपये का प्रश्न नहीं था, बल्कि उनके सपने और आनेवाले जीवन का सवाल था. सफल हुए तो जीवन में नयी छलांग और असफल हुए तो फिर से फर्श पर. सुशील ने जवाब दिया और उसके बाद माहौल में अजीब सी खामोशी छा गयी. अमिताभ ने रहस्यमयी तरीके से सुशील की ओर देखा, थोड़ा रुके और कहा बिलकुल सही जवाब. उसके बाद सुशील ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाये, फिर सामने रखे ग्लास के पूरे पानी को अपने सिर के ऊपर डाल दिया. वह दृश्य आज भी करोड़ों भारतीयों के मानस पटल पर अंकित है.

फरवरी, 2012 में सुशील कुमार से मुजफ्फरपुर में मुलाकात हुई थी. उनकी लोकप्रियता चरम पर थी, लेकिन उस समय भी सुशील बहुत ही सहज और सरल दिख रहे थे. सात वर्ष गुजर गये, सुशील को सेलिब्रिटी बने हुए. उस समय सुशील से पूछा आपकी चार पीढ़ी मोकामा में रही, बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रहा, मोतिहारी जाकर पढ़ाई की, ताकि किसी तरह कोई सरकारी नौकरी मिल जाये. उनके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़े, शादी हो और जीवन आसानी से कट सके. जीवन में शायद कोई बड़ा सपना भी नहीं था. और, एकाएक केबीसी सीजन-5 का विजेता बनकर सेलिब्रिटी बन गये और जैसे आपकी सारी दुनिया ही बदल गयी. और, फिर आज धीरे-धीरे सेलिब्रिटी के लेवल से बाहर निकल कर सामान्य जीवन जी रहे हैं. मतलब जीवन फर्श से अर्श और फिर सामान्य. बीच में मीडिया में भी यह खबर चली कि सुशील कुमार कंगाल हो गये हैं. इस संबंध में आपको क्या कहना है? कैसे देखतें हैं आप अपने जीवन चक्र को?

एक साथ पूछे कई सवालों का जवाब देते हुए बहुत ही सहज और चुटीले अंदाज में सुशील ने कहा, सेलिब्रिटी का मतलब जोगी के कुत्ता बलाय 😀. आम आदमी का जीवन किसी भी सेलिब्रिटी से ज्यादा मजेदार और आसान होता है, बशर्ते उसके बुरे समय में सरकार और समाज उसकी मदद और सहयोग करे. वर्तमान में मेरे जीवन का लक्ष्य बदल गया है. आज मेरा लक्ष्य है नयी-नयी चीजों को जानना और अपनी क्षमता के अनुसार समाज का कल्याण करना. आजकल मैं सितार सिख रहा हूं. ठीक-ठाक बजा लेता हूं. मैं अंग्रेजी और उर्दू भी सिख रहा हूं और साथ में पेंटिंग सीखने की भी कोशिश कर रहा हूं.

मैंने जब केबीसी जीता उस समय मेरी उम्र सिर्फ 28 वर्ष थी. मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. मैंने इससे पहले के विजेताओं की कहानी अखबार और पत्रिकाओं में पढ़ी थी. मुझे लगता था कि यह सिर्फ एक रात या फिर कुछ दिनों की बात होगी, फिर सब कुछ सामान्य हो जायेगा. लेकिन, मेरे जीवन में अप्रत्याशित बदलाव हुआ. मेरे ऊपर मीडिया का कुछ ज्यादा ही दबाव था. कोई भी काम शुरू करने से पहले सोचता था कि मीडिया में क्या प्रतिक्रिया होगी. इसलिए मैं कोई भी काम मीडिया को दिखाने के लिए या उसके हिसाब से ही करता था. लेकिन, धीरे-धीरे मीडिया का ध्यान जब मेरे ऊपर से हटा, तो मैंने अपने हिसाब से काम करना शुरू किया. बहुत सारे कामों में असफल रहा, लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ में आ गया कि मैं क्या कर सकता हूं और मेरे लिए क्या बेहतर होगा.

आज मैं जब पीछे मुड़ कर देखता हूं तो यह जरूर लगता है कि मेरे जीवन में कुछ विशेष तो जरूर हुआ है. कहीं जाने पर खास कर उत्तर भारत में लोग मुझे पहचान लेते हैं या फिर पहचाने की कोशिश जरूर करते हैं. मुझे लगता है की कोई भी इंसान अपने सपनों को साकार करना चाहता है, तो फिर उसे आगे की आेर कदम बढ़ा देना चाहिए. लेकिन, अगर आप सफलता के बारे में ज्यादा ध्यान नहीं देंगे, तो उसके बोझ तले नहीं दबेंगे. जरूरी यह है कि सफलता का आनंद लें, उसके बोझ तले नहीं दबें. मैंने शुरू में ही अपने आपको विश्वास दिला दिया था कि मैं कोई सेलिब्रिटी नहीं हूं. इसलिए मैं आज भी ट्रेन में किसी भी क्लास में सफर कर लेता हूं. जिस भी होटल में रुका, जो मिला वही खा लिया. मेरे लिए जीवन में सफलता के मायने बदल गये हैं. आज मेरे लिए जीवन का सबसे खूबसूरत समय तब होता जब मैं अपनी बेटी के साथ होता हूं. जब उसकी स्कूल की छुट्टी होती है और वह मेरी तरफ दौड़ कर आती और गले से लग जाती है. बचपन के दोस्तों के साथ चाय पीना या फिर सितार क्लास में गुरुजी को सही-सही होम वर्क सुनाना. जीवन के ये छोटे-छोटे लम्हे ही आपको सच्ची खुशी देती है. q

बी-पॉजिटिव

विजय बहादुर

vijay@prabhatkhabar.in

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