बी पॉजिटिव
विजय बहादुर
2014 फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप की विजेता टीम रूस में चल रहे फुटबॉल वर्ल्ड कप में पहले राउंड में ही दक्षिण कोरिया जैसी कम आंकी जाने वाली टीम से हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गयी. अर्जेंटीना जैसी खिताब की मजबूत टीम बमुश्किल नॉकआउट चरण में पहुंच सकी है और इटली जैसी मजबूत टीम इस बार वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर सकी.
इन टीमों के परफॉरमेंस का आकलन करेंगे, तो स्पष्ट नजर आता है कि ये टीमें बहुत हद तक ही एक-दो खिलाड़ियों पर निर्भर है. अर्जेंटीना जैसी टीम का परफॉरमेंस तो लियोनल मैसी के ही इर्द-गिर्द घूमता है. मैसी चल गये, तो अर्जेंटीना चल जाती है और मैसी का परफॉर्मेंस कमतर रहनेसे अर्जेंटीना की टीम साधारण नजर आने लगती है.
इसके बरक्स कुछ और चैंपियन टीमों का आकलन करें. कपिलदेव के नेतृत्व वाली 1983 वर्ल्ड कप क्रिकेट विजेता भारतीय टीम और अर्जुना रणतुंगा के नेतृत्व वाली 1996 वर्ल्ड कप क्रिकेट की विजेता श्रीलंकाई टीम. दोनों टीमों की वर्ल्ड कप जीतने की दावेदारी कहीं नजर नहीं आती थी. 1996 के क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने के बाद एक इंटरव्यू में अर्जुना रणतुंगा से किसी पत्रकार ने पूछा कि आपकी टीम में तो कोई सुपरस्टार खिलाड़ी नहीं है, फिर भी आप कैसे जीत गये. अर्जुना रणतुंगा ने कहा कि मेरी टीम में सचिन तेंदुलकर या ब्रायन लारा जैसे जीनियस नहीं हैं, लेकिन मेरी टीम में एक स्तर के कई सारेबेहतर खिलाड़ी हैं. मुझे लगता है कि वही टीम लगातार बेहतर कर सकती है, जिसमें एक-दो सुपरस्टार के बदले बहुत सारे अच्छे खिलाड़ी हों.
क्रिकेटर अर्जुना रणतुंगा की बात सही भी लगती है. 1987 में सचिन तेंदुलकर जैसे जीनियस ने भारतीय क्रिकेट टीम में पदार्पण किया. उसके बाद 1995-96 तक के भारतीय टीम का प्रदर्शन देखें और फिर उसके बाद का प्रदर्शन. 1995-96 तक लगातार सचिन तेंदुलकर बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे, लेकिन भारतीय टीम का प्रदर्शन बहुत ही औसत ही रहा. उसके बाद टीम में राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण, अनिल कुंबले जैसे खिलाड़ियों के आने के बाद टीम नये मुकाम तक पहुंच गयी.
ये साफ दिखाता है कि एक या दो जीनियस पर ज्यादा निर्भरता आपको कभी-कभी सफलता दिला सकती है, लेकिन लगातार बेहतरीन प्रदर्शन के लिए बेहतरीन टीम की जरूरत होती है.
एक और तथ्य, जो अहम है कि जब कोई टीम या व्यक्ति शिखर पर होता है, तो उसका बेंचमार्क बहुत ही ऊपर होता है. शिखर पर पहुंचना तो कठिन है, लेकिन उससे ज्यादा कठिन है शिखर पर अपने को बनाये रखना. निचले पायदान पर जो भी व्यक्ति, टीम या संस्थान होता है, उसका लक्ष्य या बेंचमार्क ऊपर के पायदान पर बैठा हुआ व्यक्ति, टीम या संस्थान होता है. शिखर में बैठे व्यक्ति के ऊपर हमेशा दबाव रहता है कि वो रोज अपने आपको साबित करे. इसके लिए उसे अपने बैंचमार्क को समय के साथ बेहतर करते रहना है.