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एवरेस्ट से भी ऊंची है विनीता की मंजिल, पर रास्ता उससे भी कठिन

।।विजय बहादुर।।ईमेल करें- vijay@prabhatkhabar.inफेसबुक से जुड़ने के लिए क्लिक करेंटि्वटर पर फॉलो करें बी पॉजिटिव यानी सकारात्मक सोच. इसमें इतनी ताकत है कि आपको दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचा सकती है. बशर्ते आपके सपने के रास्ते में जो भी परेशानियां आयें, उसे अवसर मान कर आप आगे बढ़ते रहें. आप परेशानियों को छोटा […]

।।विजय बहादुर।।
ईमेल करें- vijay@prabhatkhabar.in
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बी पॉजिटिव यानी सकारात्मक सोच. इसमें इतनी ताकत है कि आपको दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचा सकती है. बशर्ते आपके सपने के रास्ते में जो भी परेशानियां आयें, उसे अवसर मान कर आप आगे बढ़ते रहें. आप परेशानियों को छोटा और खुद को बड़ा समझें. जिंदगी आपको इस परेशानी के काबिल समझती है. इसलिए वह इसे खींच कर आपके पास ले आयी है. उसे विश्वास है कि आप इससे आसानी से बाहर निकल जायेंगे.

हमेशा आगे बढ़ने की चाहत
झारखंड के सरायकेला के केशोरसोरागांव की रहनेवाली विनीता सोरेन का यही नजरिया उन्हें एवरेस्ट तक ले गया. साल 2012 में उन्होंने झारखंड का मान बढ़ाया. झारखंड की पहली आदिवासी महिला के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने के पीछे उनका यही जज्बा था. विनीता इस बड़ी जीत के बाद भी संतुष्ट नहीं हैं. उनका मानना है जिस दिन आप लड़ना छोड़ देते हैं, संतोष कर लेते हैं, जीवन का आनंद वहीं खत्म हो जाता है. हमेशा आगे बढ़ते रहने की चाहत ही तो आपको जिंदा रखती है. विनीता कहती हैं कि मैं एवरेस्ट तक पहुंची हूं, लेकिन मैं नहीं चाहती कि इस खिताब को थामें रखूं. झारखंड की लड़कियों में प्रतिभा की कमी नहीं है. उनमें जुनून है, हिम्मत है, मेहनती हैं. बस जरूरत है उन्हें पॉजिटिव होने की.
एवरेस्ट फतह के बाद गंगा की सफाई का लक्ष्य
एवरेस्ट भले ही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है, लेकिन जिंदगी का लक्ष्य उससे कहीं ज्यादा ऊंचा होना चाहिए. विनीता जिंदगी में नयी ऊंचाइयों की तलाश में हैं. विनीता टाटा के सीएसआर कार्यक्रम के तहत गंगा सफाई से जुड़ीं हैं. वह वाटर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना चाहती हैं. हरिद्वार से शुरू हुई 1500 किमी की यात्रा अब खत्म होनेवाली है. 1200 किमी का सफर तय हो चुका है. रिवर रॉफटिंग के जरिये उन्होंने गंगा सफाई से लोगों को जोड़ने की कोशिश की है. विनीता कहती हैं कि गंगा सफाई का सपना सिर्फ सरकार का नहीं है. गंगा से जुड़े हर धर्म, वर्ग, पंथ और समुदाय का है. एवरेस्ट जीत कर इस गंगा सफाई का सपना देखनेवाली विनीता गंगा को शुद्ध मानती हैं. कहती हैं कि गंगा हमें शुद्ध करती है. आज गंगा का पानी दूषित है. हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि गंगा के लिए कुछ करें. विनीता अकेली नहीं हैं. विनीता के साथ एवरेस्ट फतह करनेवाली आठ लोगों की टीम साथ है. 40 सदस्यों का चयन किया गया है, जिसमें 20 पुरुष व 20 महिलाएं हैं. इसमें माउंट एवरेस्ट पर विजय पानेवाले आठ पर्वतारोही (हेमंत गुप्ता, आरएस पाल, विनीता सोरेन, चेतना साहू, पूनम राणा, स्वर्णलता दलाई और प्रेमलता अग्रवाल), 26 टाटा स्टील कर्मचारी, आइआइटी के पांच इंजीनियर्स, एक रेडियो जॉकी और एक मैनेजमेंट ट्रेनी शामिल हैं.
संघर्षपूर्ण रहा एवरेस्ट फतह का सपना
विनीता के पिता किसान हैं. पिता ने लॉ किया, लेकिन चार भाई-बहनों की पढ़ाई का खर्च आसानी से नहीं उठा पाते थे. विनीता संघर्ष के दिनों को याद कर बताती हैं कि पहले हमारे हालात बहुत अच्छे नहीं थे. पिता पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे, जबकि मैंने तो करियर के रूप में एवरेस्ट को चुन लिया था. एडवेंचर के लिए कई जरूरी सामान चाहिए होते हैं. सुविधाएं कम थीं, लेकिन एवरेस्ट तक पहुंचने का जुनून उससे ज्यादा था. साल 2004 में मैं अपनी गुरु बछेंद्री पाल से मिली. उन्होंने हिम्मत दी. टाटा ने भरोसा जताया. यहां तक पहुंचने से पहले मैंने ट्रेनिंग ली. बेसिक और एडवांस कोर्स किया. इसके बाद एवरेस्ट फतह का सपना पूरा करने के लिए निकल पड़ी. ट्रेनिंग कठिन है. ऑक्सीजन की कमी होती है. कम से कम सुविधा में रहना पड़ता है. हर कदम जिंदगी और मौत के बीच है. मैंने गांव में रहकर देखा है, वहां तकलीफ बहुत है. गांव की एक लड़की ऐसा रास्ता चुने, जो कठिन हो, तो लोग टोकते हैं, रोकते हैं. मुझे बाहर की आवाजों से फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन घरवाले भी जब मेरे फैसले पर सवाल करते थे, तो निरुतर हो जाती थी.
कठिन रास्ते ने निडर बनाया
अब लोगों की सोच बदली है. वह मेरी तरह दूसरी लड़कियों को सिर्फ शिक्षिका बनकर जीवन जीने के लिए नहीं कहते. अगर किसी लड़की को कुछ अलग करना है, तो मैं उनके लिए उदाहरण बनती हूं. मैं अगर उस वक्त लोगों के सवालों के डर से रुक जाती, तो आज कई घरों के सवालों का जवाब नहीं बन पाती. यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था. जितनी आसानी से आपको मैं अपने सफर की कहानी बता रही हूं. कई परेशानियां आयीं. उन सबको लांघते हुए मैं एवरेस्ट तक पहुंची हूं. जब उनसे सवाल किया गया कि उन्होंने एवरेस्ट फतह के लिए लुलका का कठिन रास्ता क्यों चुना? इस फैसले पर विनीता कहती हैं कि मैं ज्यादा से ज्यादा ट्रेकिंग करना चाहती थी. मुझे पता था कि कठिन रास्ते से होकर जाऊंगी, तो वहां और अच्छा महसूस करूंगी.
एवरेस्ट चढ़ो न चढ़ो, जिंदगी में आगे बढ़ते रहो
विनीता अपने अबतक के अनुभवों का जिक्र करते हुए कहती हैं कि सपने देखना और उसे पूरा करना सबसे शानदार अनुभव है. मैं लोगों से कहती हूं कि आप एवरेस्ट क्लाइंब करो, न करो, लेकिन आप जीवन में जो करना चाहते हैं, उसके लिये जी जान लगा दो. आपको अपने सपने को पूरा करने के लिए किसी का पीछा करने की जरूरत नहीं है. किसी को देख कर या उससे प्रभावित होकर सपने मत देखो. खुद फैसला करो. मैंने एवरेस्ट के बाद कई सपने पूरे किये. आज मैंने कुछ हासिल किया है, मुझे लोगों का प्यार मिला है, तो उसे वापस करना अब मेरी जिम्मेदारी है. गंगा सफाई जैसे सामाजिक सरोकार से जुड़ कर मैं वही प्यार समाज को वापस लौटाने की कोशिश कर रही हूं. मैं जानती हूं कि यह रास्ता एवरेस्ट से भी कठिन है, लेकिन मेरे साथ मेरा जुनून है, जो मुझे आगे बढ़ने में मदद करता है.

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