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रांची के युवा नीलेश के इसरो पहुंचने की कहानी, सपना सच करना है, तो जागना जरूरी

एपीजे अब्दुल कलाम की एक महत्वपूर्ण उक्ति है- सपने वे सच होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते. पूर्व राष्ट्रपति के इस कथन पर चल कर रांची के युवा नीलेश कुमार ने अपने सपने को सच किया. इसरो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में इंजीनियर बनना नीलेश का सपना था. अपनी मेहनत, लगन और काबिलियत से नीलेश […]

एपीजे अब्दुल कलाम की एक महत्वपूर्ण उक्ति है- सपने वे सच होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते. पूर्व राष्ट्रपति के इस कथन पर चल कर रांची के युवा नीलेश कुमार ने अपने सपने को सच किया. इसरो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में इंजीनियर बनना नीलेश का सपना था. अपनी मेहनत, लगन और काबिलियत से नीलेश ने इस सपने को 2018 में पूरा किया. नीलेश ने इसरो द्वारा आयोजित परीक्षा में ऑल इंडिया लेवल पर 12 वां रैंक हासिल किया. अब नीलेश इसरो में अपने आगे के सपनों को सच करने के लिए जाग रहा है.

रांची के डीएवी कपिलदेव से इसरो तक की उड़ान
नीलेश के पिता नरेश प्रसाद एकाउंटेंट जेनरल के रांची कार्यालय से सीनियर एकाउंट्स अफसर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. माता निर्मला देवी सफल गृहिणी हैं. रांची के हरमू हाउसिंग कॉलोनी स्थित बसंत विहार के रहनेवाले नीलेश की रुचि बचपन से ही गणित और इंजीनियरिंग में थी. रांची के डीएवी कपिलदेल से बारहवीं की पढ़ाई पूरी की. स्कूली पढ़ाई के बाद साल 2006 में उसने एनआइटी, जमशेदपुर में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया. साल 2010 में वह मेकेनिकल इंजीनियर बन गया. इसी बीच उसकी नौकरी हिंडाल्को में लग गयी. नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी, लेकिन नीलेश के सपने उसे सोने नहीं दे रहे थे. उसका सपना था डिजाइनिंग इंजीनियरिंग का काम करना.
हिंडाल्को में कार्य करते हुए नीलेश ने अपने सपने को जिंदा रखा और काम करते हुए हर रोज तीन से चार घंटे की पढ़ाई करने लगा, लेकिन नीलेश को पता था कि इसरो जैसे संस्थान में इंजीनियर की नौकरी पाने के लिए तीन-चार घंटे की पढ़ाई से कुछ नहीं होनेवाला है. इसरो की परीक्षा पास करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. इसके लिए विषयों की अच्छी समझ और अच्छा मार्गदर्शन भी होना चाहिए. अगर ऐसे ही चलता रहा, तो वो अपना सपना कभी पूरा नहीं कर पायेगा. कहते हैं न, कहीं पहुंचने के लिए कहीं से चलना पड़ता है. नीलेश ने भी ऐसा ही कुछ सोचा और इसरो में अपने इंजीनियर बनने के सपने को पूरा करने के लिए हिंडाल्को की नौकरी छोड़ दी.
जिस समय नीलेश ने हिंडाल्को में नौकरी छोड़ी थी, उस वक्त नीलेश असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्य कर रहा था. नीलेश को अच्छी तनख्वाह भी मिलती थी. नौकरी छोड़ने के बाद नीलेश अपना घर रांची वापस आ गया. सपने पूरा करने में नीलेश को घरवालों का भी काफी सहयोग मिला. नौकरी छोड़ने के फैसले में सभी ने उसका साथ दिया.
रांची आने के बाद नीलेश ने फिर से तैयारी शुरू कर दी. नीलेश को अपने बड़े भाई लोकेश कुमार का काफी सहयोग मिला, जो इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं. नीलेश ने अपने भाई लोकेश के साथ मिलकर तैयारी शुरू कर दी. लोकेश कुमार का लंबा शिक्षण अनुभव नीलेश को काम आया. लोकेश कुमार ने नीलेश को विज्ञान और गणित की बारीकियों से अवगत कराया. जिस तरीके से लोकेश ने नीलेश को पढ़ाया और समझाया, इससे नीलेश के अंदर आत्मविश्वास आ गया कि अब वो इसरो द्वारा आयोजित लिखित परीक्षा और साक्षात्कार में सफल हो जायेगा.
…और इसरो पहुंचने का सपना हुआ सच
डिजाइनिंग इंजीनियरिंग के सबसे बड़े और प्रामाणिक संस्थान इसरो में नौकरी करने का नीलेश का सपना इस साल 2018 में सच हुआ. प्रवेश परीक्षा में भैया लोकेश के टिप्स काम आये और उसकी मेहनत रंग लायी. ऑल इंडिया में 12 वां रैंक हासिल हुआ. उनके सपने सच करने में बड़े भाई के साथ पूरे परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
हिंडाल्को में जमी-जमायी नौकरी छोड़ने के फैसले के वक्त पूरा परिवार साथ खड़ा रहा.
नीलेश बताते हैं कि इसरो में पहुंच गया हूं. एक सपना पूरा हुआ. अब आगे डिजाइनिंग इंजीनियरिंग के सपनों को सच करना है. इसके लिए मैं पूरी तरह तैयार हूं. इसरो में देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों के साथ काम करने का अनुभव काफी अच्छा है. इसरो में काम करते हुए मैं अपने देश की सेवा भी कर रहा हूं.

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