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सफल होना है, तो शौक जिंदा रखें

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।। विजय बहादुर।।

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प्रभात खबर ने पटना में 24 और 25 दिसंबर, 2018 को क्विज का आयोजन किया था. इसमें क्विज मास्टर प्रणब मुखर्जी हमारे साथ थे. मैंने महसूस किया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है. उनकी आवाज लड़खड़ा रही है. हम जब उन्हें सेहत की जांच के लिए ले गये, तो उनकी बीपी हाई थी. मुझे लगा कि वह क्विज नहीं करा पायेंगे, लेकिन अगले दिन फिर पूरे जोश के साथ वह क्विज कराने पहुंच गये. बी पॉजिटिव के कॉलम के लिए मैं ऐसी ही कहानियों की तलाश में रहता हूं, जो आपको पॉजिटिव बनाये. मुझे उनका जज्बा देख कर महसूस हुआ कि प्रणब की कहानी आप तक पहुंचनी चाहिए. मैंने उनकी तबीयत को लेकर सवाल किया और कहा कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है, आपको आराम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं बिहार के दूर-दराज इलाके से आये बच्चों को निराश नहीं कर सकता. वह क्विज के लिए आये हैं और मैं उनके लिए. प्रणब सिर्फ क्विज मास्टर नहीं हैं, बल्कि कई क्षेत्रों में उन्होंने शानदार काम किया है. थियेटर, पत्रकार, लेखक, डिबेटर. कई भूमिकाएं प्रणब बखूबी निभा रहे हैं.
एक सफल आदमी की यही पहचान है. लगभग 15 साल क्विजिंग के क्षेत्र में पहचान बनाने वाले प्रणब मुखर्जी यूं ही अंतरराष्ट्रीय क्विज मास्टर्स में शुमार नहीं हैं. इसके पीछे उनकी मेहनत का छोटा-सा उदाहरण हमारे सामने था. यह पहला मौका नहीं था, जब उन्होंने बच्चों के लिए खुद की सेहत को ताक पर रख दिया, बल्कि इससे भी बड़ी तकलीफ के वक्त वह मंच पर थे और बच्चों से सवाल पूछ रहे थे. अबतक वे छह हजार से ज्यादा क्विज करा चुके हैं.
पिता के निधन के दूसरे दिन ही स्टेज पर
सफलता आसानी से आप तक नहीं पहुंचती. इसके पीछे मेहनत, लगन और त्याग का होना बेहद जरूरी है. प्रणब आज सफल हैं तो उनके त्याग और हिम्मत को समझना भी बेहद जरूरी है. 14 साल पहले प्रणब के पिता का निधन हो गया था. उस दिन को याद करते हुए प्रणब कहते हैं, मेरी आंखों के सामने उन्हें हार्ट अटैक आया और वह नहीं रहे. दूसरे दिन मुझे एक क्विज कराना था. मैं सोच रहा था कि क्या मैं यह क्विज करा पाऊंगा? मुझे लगा कि यह मेरा टेस्ट है. मैं दूसरे दिन सफेद रंग के कुर्ते-पायजामे में क्विज कराने चला गया. मैंने उस दिन ऑडियो राउंड नहीं कराया. मुझे उस वक्त लगा कि मेरे पिता नहीं रहे, यह मेरा नुकसान है. मेरी जगह उस क्विज को कोई भी कर सकता था. स्टेज पर यह बता दिया जाता कि प्रणब के पिता नहीं रहे इसलिए वह क्विज नहीं करा सके, मैंने सोचा यह गलत है. अगर मैं अपने पिता को याद करूंगा, तो अच्छी यादों के साथ.
सिर्फ क्विज मास्टर ही नहीं, कई क्षेत्रों में सफल हैं प्रणब
प्रणब का जन्म कोलकाता में हुआ. वहीं पढ़ाई पूरी हुई. लिखने का शौक था. खुद का काम शुरू किया. कई प्रोजेक्ट पर काम किया. इस बीच उनकी थियटेर की जिंदगी भी चल रही थी. मदन सरकार से उन्होंने थियेटर सीखा. छोटे से स्थान को कैसे थियटेर के रूप में बदल कर काम किया जा सकता है. कमेंट्री फॉर्म में थियटेर कैसे किया जाता है. प्रणब ने कई स्टेज पर थियेटर किये.
सफलता के मंत्र
प्रणब का क्विजिंग में लंबा अनुभव रहा है. जब मैंने युवाओं के लिए सफलता के मंत्र जानना चाहा, तो सबसे पहले उन्होंने कहा कि युवाओं में पढ़ने की आदत होनी चाहिए. शब्द की ताकत बहुत होती है. ध्यान रहे कि यह किताब हो, मोबाइल पर नहीं. छोटी चीजों को समझने की ताकत होनी चाहिए. हर छोटी चीजों पर ध्यान दें. दिमाग को ऐसे तैयार करें कि छोटी सी छोटी चीज पकड़ने की क्षमता रखें. अगर आप सफल होना चाहते हैं तो आपके कार्यक्षेत्र के अलावा एक पैशन का होना बेहद जरूरी है. अगर आप अपने करियर में अच्छा कर रहे थे, तो ठीक है, लेकिन अगर आप अपने करियर में कुछ अलग और बेहतर नहीं कर रहे हैं, तो पैशन आपको सकारात्मक रखता है. सफल होना है, तो कम से कम एक शौक को तो जरूर जिंदा रखें. आइंस्टाइन अपने वायलिन और पियानो के बगैर नहीं कर सकते थे. गांधी को चरखे का शौक था.
मेरा मकसद क्या है
पढ़ाई के साथ समानांतर गतिविधियों को भी बढ़ावा मिले. एक चैलेंज है, जो आपकी किताबों में है, वही एकमात्र सच नहीं है. मैंने सोचा था कि जो भारतीय भाषा बोलचाल में ज्यादा इस्तेमाल होती है, उसे आगे ले जाना. मैं कोशिश कर रहा हूं कि अपने मकसद में कामयाब हो सकूं.
1. सफलता : मेरे लिए यह है कि आप आसपास के लोगों के जीवन को बदल सकें. कम से कम एक के जीवन में बदलाव ला सकें. बदलाव से मेरा मतलब पैसे या विचारधारा से नहीं, बल्कि उनमें सोचने की क्षमता बढ़ा सकते हैं या नहीं. समाज को देखने का जो दायरा है, उसे बढ़ा सकते हैं या नहीं. आप किसी एक विचारधारा के साथ न जुडे़ं, बल्कि सभी को समझें.
2. गरीबी : इसे उस तरह समझे, जैसे आप समझते हैं. आपके दोस्त सभी क्षेत्रों से होने चाहिए. उन्हें समझने के लिए जरूरी है कि आप उनसे राफ्ता रखें. इससे आपका भी विकास होगा.
3. सामाजिक बदलाव : बदलाव की कोशिश जारी रहनी चाहिए. यह नहीं देखना चाहिए कि कितना बदल रहा है. निराश नहीं होना चाहिए. मेरे हीरो छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शंकर गुहा नियोगी हैं. जब उनका निधन हुआ, तो मैं सोच रहा था कि एक बंगाल के आदमी का घर छत्तीसगढ़ कैसे हो गया. आप अपने आपको कैसे तैयार करते हैं. कैसे शोषण के खिलाफ खड़े होते हैं. अगर आपने इसके लिए खुद को तैयार कर लिया, तो बदलाव आ जाता है.

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