विजय बहादुर
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न्यारी नैन, मरीन इंजीनियर
लेखिका-टेडेक्स स्पीकर
मिथक तोड़ने वाली. रांची की बहादुर बिटिया का सिर्फ इतना ही परिचय नहीं है. आत्मविश्वास से लबरेज न्यारी उन गिनी-चुनी महिलाओं में शुमार हैं, जो विषम परिस्थितियों में भी घुटने टेकने की बजाय उसका डटकर मुकाबला करती हैं. जिंदगी को किसी तरह जीने की बजाय वो संजीदगी के साथ जीने में यकीन करती हैं. अपनी छोटी सी उम्र में ही मिसाल पेश कर वह महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गयी हैं. पुरुषों के वर्चस्व वाले नौ परिवहन क्षेत्र में भी कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं. इनका जज्बा सलाम करने योग्य है.
न्यारी नैन रांची की हैं. इनकी पढ़ाई-लिखाई केराली स्कूल से हुई है. अपने पेशे में मिथक तोड़ चुकीं न्यारी विषम परिस्थितियों में भी पुरुषों के वर्चस्व वाले नौ परिवहन में अपने आत्मविश्वास के बल पर बेहतर कार्य कर रही हैं. मरीन इंजीनियर न्यारी को न सिर्फ पेशेवर लोगों से प्रशंसा मिल रही है बल्कि कला के क्षेत्र से जुड़े लोग भी उनकी तारीफ कर रहे हैं. इनकी गिनती उन गिनी-चुनी महिलाओं में होती है, जो देश के नौ परिवहन क्षेत्र में बेहतर काम कर रही हैं.
न्यारी नैन देश-विदेश में शिपिंग कंपनी का जहाज घूमा रही हैं. वह अपने जहाज में अकेली रहती हैं. वहां अधिकतर पुरुष होते हैं. इसके बावजूद वह अपना काम बखूबी करती हैं. बात पुरुषों के बीच अकेली महिला के काम करने तक सीमित नहीं है. विपरीत परिस्थितियों के बीच काम करने की चुनौती भी है. न्यारी जिस जहाज में काम करती हैं, वहां वह एक साथ कई चुनौतियों से जूझती हैं. न सिर्फ पुरुषों के बीच वह कार्यस्थल पर अकेली होती हैं, बल्कि वहां तापमान 40 डिग्री होता है. वह 600 केवी का जेनरेटर, ब्वायलर और अन्य मशीन को न सिर्फ संचालित करती हैं, बल्कि उसका रख-रखाव भी करती हैं.
न्यारी कहती हैं कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए पानी जहाज में काम करना मुश्किल होता है. यहां महिलाएं नहीं के बराबर होती हैं. कई बार लिंगभेद का भी सामना करना पड़ता है. विद्वेष की भावना भी होती है. अक्सर मान लिया जाता है कि लड़की है, तो काम क्या कर पायेगी. कार्य काफी चुनौतीपू्र्ण होता है. महिलाओं को कई समस्याओं से जूझना पड़ता है. इसके बावजूद वह अपने आत्मविश्वास के बल पर अपना सौ फीसदी देकर साहसिक कार्य कर रही हैं.
पानी जहाज के कड़वे-मीठे अनुभव को साझा करने के लिए उन्होंने पुस्तक लिखी है. नाम है ‘एंकर माई हर्ट’. इसे हार्पर कोलिंस ने प्रकाशित किया है. इसकी काफी तारीफ हो रही है. न्यारी बताती हैं कि इसकी कहानी महिला मरीन इंजीनियर के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका बॉस पूर्वग्रह के कारण महिलाओं से घृणा करता है. कोलाहलपूर्ण कार्यस्थल, अकेलापन और समुद्री लुटेरों के खतरे के बीच वक्त गुजारते हुए काम करने की मनोस्थिति का आंकलन किया जा सकता है. इसमें मशीनों और हथौड़े के बीच पीसती जिंदगी की कहानी है. नौ परिवहन के क्षेत्र में काम करने वालों की परेशानियों का बारीकी से चित्रण किया गया है.
अभी हाल ही में न्यारी को ‘कितना आवश्यक है भूत की बेकार बातों को भूलकर आगे बढ़ना’ विषय पर व्याख्यान देने के लिए टेडेक्स, नयी दिल्ली द्वारा आमंत्रित किया गया था. न्यारी का दिया गया व्याख्यान यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया है. इसकी काफी तारीफ हो रही है. ये वीडियो प्रेरक है. रांची के कई पुस्तक विक्रेताओं ने न्यारी को अपनी पुस्तक को स्वहस्ताक्षरित करने के लिए आमंत्रित किया है, ताकि उनकी पुस्तक की ओर पाठकों का रुझान बढ़ सके.
न्यारी नैन कहती हैं कि वह अपनी दो आंखों और शरीर के कई अंगों को लेकर धरती पर पैदा हुई हैं और इसी के साथ दुनिया से चली जाएंगी. इसे बदलने की क्षमता उनमें नहीं है, लेकिन वो ये करने का प्रयास जरूर करेंगी कि उनकी जीवनयात्रा निश्चित रूप से एक उदाहरण बन जाये. कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है. मनुष्य होने के नाते विकास की गति अवरुद्ध करने वाले तत्वों पर ध्यान न देकर अपनी क्षमता व बुद्धिमता बढ़ाने पर केंद्रित करना चाहिए.
जिंदगी का मंत्र बताते हुए न्यारी नैन कहती हैं कि वक्त इतिहास रचने का है. महिलाओं को मिथक तोड़ नया कीर्तिमान गढ़ना चाहिए. अब किसी की मदद की जरूरत नहीं है. जिंदगी में ऐसा कुछ भी नहीं, जो महिलाएं नहीं कर सकती हैं. उनकी अपनी जिंदगी पहले से काफी बदल गयी है. जीवन में पॉजिटिविटी काफी बढ़ गयी है. चारों तरफ तारीफ मिलने में बेहद खुशी हो रही है. फिलहाल वह दो पुस्तकें और लिख रही हैं.