B positive : केस स्टडी 1 – कोविड के एक मरीज को नोएडा में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा था, तो उसके रांची में रहने वाले मित्र ने ऑक्सीजन की व्यवस्था की और बिना विराम लिए अपनी गाड़ी से 1600 किलोमीटर की यात्रा कर ऑक्सीजन सिलेंडर मित्र तक पहुंचाया, ताकि उसकी जान बच सके.
नागपुर में 85 साल के बुजुर्ग, जिनका बमुश्किल अस्पताल में दाखिला हो पाया था. उन्होंने जब देखा कि 40 साल के युवक को बेड नहीं मिल पा रहा है, तो उन्होंने स्वेच्छा से अपनी जगह युवक को बेड दे दिया, जबकि उन्हें पता था कि इलाज के बिना उनका जीवन खत्म होना तय है और वही हुआ भी.
कोविड के मरीज को इलाज के लिए अस्पताल ले जाना हो या अस्पताल में अटेंडेंट की भूमिका में रहना हो. रिश्तेदार संक्रमण की चिंता किये बिना जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा में दिन-रात एक किये हुए हैं.
जाति-धर्म से ऊपर उठकर बहुत सारे लोग मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, दवाओं, प्लाज्मा, भोजन की व्यवस्था या मृत्यु के बाद उनके दाह संस्कार के लिए दिन-रात लगे हुए हैं. डॉक्टर्स, फ्रंटलाइनर्स ने अपना व अपने परिवार की चिंता किए बिना अपनी पूरी ताकत मरीजों के इलाज में झोंक दी है.
ऊपर दिये गये चारों केस स्टडीज आज हिंदुस्तान के लगभग हरेक शहर और कस्बें की तस्वीर है. ऐसा लगेगा जैसे सिर्फ शहर, मरीज और उसके देखभाल में लगे हुए व्यक्ति का नाम बदला हुआ है.
Also Read: थामे रखें उम्मीदों की डोर
पिछले 14 महीने से पूरी दुनिया और हिंदुस्तान मानव जीवन की सबसे कठिनतम समय और त्रासदी से गुजर रहा है. तमाम प्रयास के बावजूद संक्रमण और महामारी की चेन सरकारों और व्यवस्थापकों के नियंत्रण से बाहर नजर आ रही है. वैसे समय में इंसानी रिश्ता ही वो डोर है, जिससे उम्मीद की किरण नजर आती है. समाज में बहुत बड़ी संख्या है, जो अनैतिक तरीके से आपदा में अवसर ढूंढ रहे हैं, लेकिन वहीं बड़ी तादाद वैसे लोगों की भी है, जिनके अंदर इंसानियत जिंदा है.
पिछले 30 सालों में बाजारवाद बढ़ने के बाद परिवार और समाज का ढांचा भी धीरे-धीरे बिखरता चला गया. संयुक्त परिवार का ढांचा तो खैर खत्म होने के कगार पर ही है. हालात इस तरह के हो गये कि किसी मेहमान के आने के बाद थोड़ी-सी जगह देना निजता का हनन लगने लगा. इंसान ने धनार्जन कर लिया और समाज में बड़ा नाम कमा लिया, लेकिन वो अपनी जड़ों से कटता भी गया.
हम सिर्फ मैं की चाहत में इतने मसरूफ हो गये कि उनलोगों से भी अपने को जुदा कर लिया जो लोग अच्छे इंसान हैं या जो हमारे शुभचिंतक हैं, लेकिन आज के कठिन हालात इंसान को बार-बार ये महसूस करा रहे हैं कि सिर्फ धन और बड़ा नाम काफी नहीं है. आप अपने को सौभाग्यशाली मानिए, अगर आपको परिवार और समाज का सहयोग हासिल है.
Also Read: B positive : इंसान बनें, नरपिशाच नहीं !
इसलिए मेरा मानना है कि ये समय है कि जो भी हमारे अख्तियार में हैं, उसके हिसाब से परिवार और समाज को वापस करें. बहुत बार मन में प्रश्न आता है कि सिर्फ मैं ही क्यों करूं. मेरे लिए तो कोई खड़ा नहीं रहता है. मन में ये प्रश्न आना लाजिमी है, लेकिन आज भी वैसे बहुत सारे लोग हैं, जो बिना किसी आकांक्षा के जिन्हें वो जानते भी नहीं हैं, उनके पीछे खड़े हैं.
आज ना सिर्फ कठिन समय है, बल्कि अपने को क्लेश मुक्त करने का समय भी है. इसलिए मिलजुल कर इस कठिन समय से निजात पाने के लिए प्रयास करें. आने वाले समय में जब भी हम बेहतर हालात में हों, तो संवेदनशील बने रहें. रिश्ते और इंसानियत की डोर थामे रखें.
Posted By : Samir Ranjan.