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B- positive : कोरोना के साथ गुजरने वाले पिछले सात महीनों की मुश्किल समय ने इंसान को अपने आसपास से ही जीवन के बहुत सारे सबक याद दिला दिये हैं. ऐसे ही एक कहानी आज मैं आपसे साझा कर रहा हूं.
मेरे एक परिचित बुजुर्ग गंभीर रूप से बीमार पड़ गये. परिवार में चिंता की लकीर दौड़ गयी. मन में चिंता थी कि घर में इलाज कराये, तो कोई परेशानी खड़ी ना हो जाये, क्योंकि उन्हें अन्य स्वास्थ्य की परेशानियां भी थी. अस्पताल ले जाया जाये, तो कहीं वहां कोविड- 19 का संक्रमण ना हो जाये. आखिरकार डॉक्टरी सलाह के बाद बुजुर्ग को अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करा दिया गया. लेकिन, ये इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि संभवत: बुजुर्ग की पहली अस्पताल यात्रा थी, जिसके कारण मानसिक रूप से वो काफी बेचैन थे.
तीन दिनों के बाद ही मरीज की हालत बेहतर होने लगी. डॉक्टर ने वार्ड में शिफ्ट करने की बात कही. इसी बीच, कोविड का टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आ गया, जिससे इलाज का स्वरूप बिल्कुल ही बदल गया. परिवार वालों ने डॉक्टर से आग्रह किया कि मरीज को कोरोना संक्रमण की जानकारी ना दिया जाये वर्ना मानसिक रूप से और कमजोर पड़ जाएंगे और इसका असर उनके बीमारी से उबरने में पड़ सकता है.
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डॉक्टर्स और अस्पताल के लोगों ने भी सहयोग किया और मरीज को उनके संक्रमण के बारे में सूचित किए बिना कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया और उन्हें विश्वास में लिया गया कि चूंकि वो पहले से बेहतर हैं इसलिए उन्हें आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट किया जा रहा है. कोविड वार्ड में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषिद्ध था इसलिए उन्हें किसी तरह से समझाया गया कि अगल- बगल के कमरों में चूंकि बहुत सारे कोविड के मरीज हैं, इसलिए बाहर से किसी व्यक्ति के वार्ड में आना आपको संक्रमित कर सकता है. अगले कुछ दिनों तक बुजुर्ग अपने परिवार वालों से मोबाइल पर वीडियो कॉलिंग के माध्यम से जुड़े रहे. नर्सेस और वार्ड के कर्मचारियों ने दवा और खान-पान का ख्याल रखने के साथ मरीज का हमेशा मनोबल भी बढ़ाया, जिसके कारण कुछ दिनों के बाद स्वस्थ होकर वो अपने घर चले गये.
कुछ दिनों के बाद जब उन्हें अपनी बीमारी के बारे में पता चला, तो उन्होंने कहा कि अगर उन्हें कोरोना संक्रमण का पता चलता, तो शायद वो इतनी जल्दी ठीक नहीं हो पाते. हर वक्त बहुत जल्द ठीक होकर घर जाने के बारे में सोचना उत्प्रेरक का काम किया. ये तो सिर्फ एक उदाहरण है.
आप अपने आसपास नजर दौड़ाइए जो लोग बीमार हो रहे हैं उनकी आपबीती सुनिये. जो व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत होते हुए इम्यूनिटी सिस्टम बेहतर रहने की बातें करते हैं, वैसे लोगों के स्वस्थ होने की रफ्तार बेहतर है. इसके बरक्स जो लोग मानसिक रूप से कमजोर हैं या जिन्हें बीमारी को लेकर फोबिया है, वो देर से स्वस्थ हो रहे हैं या ऐसे लोगों की मृत्यु दर ज्यादा है. डॉक्टरों का कहना है मेडिकल साइंस में स्थापित है कि वैसे लोग जो मानसिक रूप से मजबूत होते हैं उनके ठीक होने की दर भी बेहतर होती है.
सिर्फ मेडिकल नहीं जीवन के अन्य क्षेत्रों में बेहतर करना भी एक हद तक इंसान की मनोदशा पर निर्भर करता है. जो व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत है, वो कठिन हालात में भी बेहतर तरीके से उबर जाता है और जो कमजोर है वो सामान्य हालात को भी कठिन बना लेता है.
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कोई काम करने या नहीं करने के बीच इंसान का मानसिक संबल बहुत बड़ा कारक है. इसलिए कहा भी जाता है मन के जीते जीत है और मन के हारे हार.
Posted By : Samir Ranjan.