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Kargil Vijay Diwas: बरेली के सैनिकों ने फहराया था तिरंगा, यहां का कारगिल चौक सुनाता है शहीदों की शौर्य गाथा

Kargil Diwas: बरेली कैंटोनमेंट में ऑपरेशन विजय की सफलता को समर्पित करने के लिए कारगिल विजय स्थल तथा कारगिल चौक का निर्माण किया गया है. ये अब कैंटोनमेंट एरिया की विशेष पहचान बन गए हैं. कारगिल की लड़ाई में बरेली के बरेली के पंकज अरोड़ा और हरिओम सिंह की शहीद हुए थे, जिन्हें आज पूरा जनपद नमन कर रहा है.

भारतीय सेना ने 24 वर्ष पहले आज ही के दिन यानी 26 जुलाई को जो शौर्य, और पराक्रम दिखाया था.उसका इतिहास में कोई मुकाबला नहीं है. भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी आतंकवादियों को करारा सबक सिखाते हुए अपने अदम्य साहस के बल पर पाकिस्तान के मंसूबे को फेल कर दिया था. कारगिल युद्ध में बरेली के सैनिकों का मुख्य योगदान रहा है.

बरेली के वीर सपूतों ने कारगिल की चोटियों पर जीत के बाद तिरंगा लहराया था. 26 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में बलिदान देने वाले देश के वीर सपूतों की याद में हर वर्ष कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. बरेली में कारगिल युद्ध की यादों को हमेशा के लिए सजाया गया है, जिसके चलते बरेली के लोग हर दिन कारगिल युद्ध के शहीदों को याद करते हैं.

बरेली कैंटोनमेंट में ऑपरेशन विजय की सफलता को समर्पित करने के लिए कारगिल विजय स्थल तथा कारगिल चौक का निर्माण किया गया है, जो कैंटोनमेंट एरिया की पहचान बन गए हैं. कारगिल युद्ध का कोड नाम ऑपरेशन विजय दिया गया था. इस युद्ध के जरिए भारत ने पाकिस्तान को उसकी हद बता दी थी. इंडियन आर्मी के जवानों ने 18000 फीट की ऊंचाई पर तिरंगा लहरा कर ऑपरेशन विजय का इतिहास रचा था.

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वीर सपूतों की याद में नम हो जाती हैं आंखें

देशभर में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है.1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश की खातिर सैकड़ों जवानों ने अपने प्राण न्योछावर कर जान दे दी थी. वहीं बरेली के शहीद कैप्टन पंकज अरोड़ा और हरिओम सिंह का परिवार आज भी अपने बेटों की शहादत को याद करता है. इन दोनों बरेली के जाबांज सैनिकों ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों को धूल चटा दी थी.

इनको स्पेशल सर्विस मेडल दिया गया था. शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डू देवी बताती हैं कि हरि ओम 1986 में हवलदार के पद पर आर्मी में भर्ती हुए थे. उन्हें देश की सेवा का काफी जज्बा था. उनको मैदानी इलाके अच्छे नहीं लगते थे. पहाड़ी इलाके सियाचिन आदि बर्फीले इलाकों में ही देश की सरहद की हिफाजत के दौरान वह बेहद उत्साहित नजर आते थे.

जाट रेजीमेंट के 47 वीर सपूतों में दी कुर्बानी

24 वर्ष पहले कारगिल की पहाड़ियों पर अदम्य साहस और पराक्रम से दुश्मन देश को धूल चटाने की यादें अब भी कारगिल विजेताओं में स्फूर्ति पैदा कर देती हैं. विजय गाथा में बस वही पल भारी पड़ता है, जब जंग में शहीद हुए वीर साथियों की स्मृतियां उभर आती हैं. कारगिल विजय युद्ध के नाम पर जाट रेजिमेंट सेंटर के जवानों का सीना चौड़ा हो जाता है. लेकिन, ये बताते हुए भावुक भी हो जाते हैं कि उनके 60 वीर जवानों की पलटन में से 47 वीर साथियों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

सेना के लिए 80 घंटे में बनाया रास्ता

बरेली के प्रथमेश गुप्ता कारगिल युद्ध के दौरान इंजीनियर कोर में तैनात थे. कारगिल युद्ध का बिगुल बजते ही उनकी यूनिट को कारगिल चढ़ाई के लिए भेज दिया गया, जहां, उन्हें पहाड़ी पर सेना के लिए रास्ता निर्माण करना था. इसके लिए उनकी यूनिट ने 80 घंटे लगातार काम कर सेना के लिए रास्ता बनाया. 25 जुलाई को सीजफायर का आदेश मिलते ही भारतीय सेना की ओर से विजय पताका लहराई गई.

18 फीट ऊंची पहाड़ी पर 10 घंटे दुश्मन को रोका

कारगिल युद्ध के वीरों में हवलदार कुमार सिंह का नाम शुमार हैं. जाट रेजीमेंट सेंटर से प्रशिक्षण पाने वाले इस जवान का जन्म आगरा के फतेहपुर सीकरी में हुआ. लेकिन, इन्हें देश का वीर सैनिक बरेली के जाट रेजीमेंट सेंटर ने बनाया था. यहां नौ महीने तक मिलने वाली कठिन ट्रेनिंग का ही नतीजा रहा कि हवलदार कुमार सिंह ने कश्मीर के द्रास सेक्टर में मुश्कोह घाटी पर बर्फीली चट्टानों के बीच शून्य डिग्री से कम तापमान पर दुश्मन से मोर्चा लिया. करीब 18 हजार फीट ऊंचाई पर 10 घंटे तक दुश्मन को रोके रखा. रात में साथियों के साथ चढ़ाई की और 16 दुश्मनों को मार गिराया था. 10 घंटे तक लगातार युद्ध के बाद और पपल-1 और पपल-2 पर फतह पाने के लिए हवलदार कुमार सिंह ने अपनी जान तक न्योछावर कर दी.

पाकिस्तानी आर्मी से छीने थे घातक हथियार

कारगिल युद्ध के दौरान जाट रेजीमेंट के जाबांज सैनिकों ने आतंकियों के साथ ही पाक आर्मी के दांत खट्टे किए थे. यहां के सैनिकों ने घातक हथियार कब्जे में ले लिए थे.यह हथियार जाट रेजीमेंट में रखे हैं.एक मशीनगन को भी कब्जे में लिया था.यह काफी घातक है.इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इसकी गोली करीब सात इंच की होती है. इससे 250 राउंड तक फायर किए जाते हैं. इस मशीनगन से पाकिस्तानी ऊंचाई से बने बंकर से हमला करते थे.

बर्फ में छिपकर करते थे वार, फिर भी आए हाथ

कारगिल युद्ध में शामिल सैनिक बताते हैं कि 10 हजार फीट की ऊंचाई पर अधिकतर हिस्सा बर्फ से ढका होता था.इसलिए युद्ध के दौरान पाकिस्तानी छिपकर वार करने के लिए स्नो ड्रेस पहनते थे. हालांकि इसके बावजूद वह भारतीय वीरों की निगाह से नहीं बच सके. युद्ध स्मारक में ऐसे सैनिक की वर्दी भी मौजूद है. यह ड्रेस पाकिस्तानी फोर्स के नार्दर्न लाइट इन्फेंट्री के जवान की है. इसके अलावा पाक फील्ड टेलीफोन भी म्यूजियम में रखा है.

रिपोर्ट मुहम्मद साजिद, बरेली

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