Bihar News: बिहार में बच्चों में ऑटिज्म की समस्या में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है. इस परेशानी में इजाफा हो रहा है. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे इलाज कराने के लिए अलग-अलग अस्पताल में पहुंच रहे हैं. एक आकड़े के अनुसार आईजीआईएमएस के मनोरोग विभाग में आनेवाले 50 बच्चे में से पांच ऑटिज्म से पीड़ित हैं. पटना के आयुर्वेदिक कालेज में हर सप्ताह एक से दो बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होकर आते थे. लेकिन, इस संख्या में इजाफा हुआ है. अब 10 से 12 बच्चे इस समस्या से पीड़ित होकर पहुंच रहे हैं. यहां डॉक्टर बताते है कि पहले के मुकाबले इस बीमारी में 300 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
मानसिक विकास की कमी की वजह से यह बच्चे अपने आप में ही सिमटे रहते हैं. यह अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं. एक ही बात को बार-बार बोलते हैं. माता-पिता या किसी की भी बात को नहीं सुनते है और काफी जिद्दी हो जाते हैं. इस कारण माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों को काफी परेशानी होती हैं. यह अपनी ही काल्पनिक दुनिया में खोए रहते हैं. पीड़ित बच्चों के शारीरिक विकास में भी बाधा होती है. दिमाग का सही से विकास नहीं होने पर बोलने, चलने, सीखने, समझने आदि में देरी होती है. डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी की जितनी जल्दी पहचान हो जाए उतना अच्छा होता है. अधिक समय में बीमारी की पहचान होने से इसके ठीक होने में काफी परेशानी होती है.
चिकित्सक बताते हैं कि दो साल के बाद इस बीमारी की पहचान होने लगती है. पीड़ित बच्चे अपने आप में ही मग्न रहते हैं और सामाजिक मेल जोल से बचने की कोशिश करते हैं. किसी भी घटना के प्रति उदासिन होते हैं. साथ ही किसी से बात करते वक्त आंख में आंख नहीं डालते हैं. इस बीमारी का माता-पिता के चौकन्ना रहने पर आराम से पता लगाया जा सकता है. माता और पिता की जागरूकता के कारण ही यह बच्चे समय पर अस्पताल पहुंच रहे हैं. यह बीमारी आनुवांशिक है. साथ ही दिमागी विकास से जुड़ी होती है. मां की गर्भावस्था के दौरान होने वाला कम मानसिक विकास भी इस बीमारी का कारण है. साथ ही इसका आनुवांशिक कारण भी हो सकता है. आकड़े के अनुसार शहरी क्षेत्र में या उच्च वर्ग के लोग इस बीमारी का पता जल्दी लगा लेते हैं. दूसरी ओर ग्रामीण परिवेश में बीमारी का पता लगाने में समय लगता है.
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बता दें कि यह डिसॉर्डर पागलपन नहीं है. इससे पीड़ित बच्चों को अलग तरह से ट्रीट करना चाहिए. मालूम हो कि वैज्ञानिक न्यूटन भी इसी बीमारी से पीड़ित थे. उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी. इस बीमारी से पीड़ित बच्चे भी कमाल कर सकते हैं. इन्हें अवसर देने की जरूरत है. इनके बेहतर जीवन के लिए लोगों में जागरूकता की जरूरत है. बता दें कि यह एक न्यूरो डेवलपमेंटल बीमारी है, जिसके लक्षण मुख्य रूप से तीन साल से कम उम्र के बच्चों में ही दिखाई देते हैं. पहले 24 महीने में इसके बारे में जानकारी मिल जाती है. बच्चों की भाषा, इंटरैक्शन, कम्यूनिकेशन स्किल्स और उनके प्रतिक्रिया व्यक्त करनेवाले व्यवहार इस बीमारी के कारण प्रभावित होते है.ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे शब्द बोल लेते हैं. लेकिन, वाक्यों को नहीं बोल सकते हैं. खास तरह के लक्षण को देखकर बीमारी की पहचान की जा सकती है.
इन बच्चों में भाषा की बड़ी परेशानी होती है. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अपनी जरूरतों को भी बोल कर बताने में असमर्थ होते हैं. इस कारण उन्हें काफी परेशनियों का सामना करना पड़ता है. ऑटिज्म के उपचार का लक्ष्य सामाजिक संचार और सामाजिक संपर्क में सुधार करना होता है. बच्चों में इस बीमारी के सामने आने के बाद माता-पिता को नकारात्मक होने की आवश्यकता नहीं है. उपचार को ध्यान में रखते हुए शीघ्र उपचार और थेरेपी की आवश्कता को पूरा कर लेना चाहिए. ऐसा करना ऑटिज्म की समस्या में उपयोगी होता है. ताजा जानकारी के अनुसार ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में इजाफा हो रहा है. ऐसे में माता-पिता को सतर्क रहने की जरूरत है. अगर जल्द ही परेशानी का पता लगा लिया गया तो इससे बचने में आसानी होगी.
Published By: Sakshi Shiva