बिहार में सत्ता का समीकरण बदलने के बाद से राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा है. इसके साथ ही सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चल रहा है. भाजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार हमला कर रही है. इन तमाम हलचल के बीच बिहार विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया है. जहां विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने स्पीकर पद से इस्तीफा दे दिया. वहीं, बिहार विधानसभा के विशेष सत्र को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संबोधित किया.
अपने संबोधन में CM नीतीश कुमार ने BJP को आड़े हाथों लिया. उन्होनें कहा कि 2020 विधानसभा के परिणाम आने के बाद बीजेपी वाले उसकी चर्चा करते हैं, लेकिन 2005 को भी याद कीजिए. 88 और 55 का आंकड़ा था. 2009 में लोकसभा में बिहार से जेडीयू 20 और बीजेपी 12 थी.
सदन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बीजेपी के लोग समाज और देश में टकराव पैदा करना चाहते हैं. ये लोग अपनी बात चलाएंगे, और धीरे-धीरे सब खत्म कर देंगे. काम नहीं, सिर्फ प्रचार पर ध्यान है. नीतीश कुमार ने गया के विष्णुपद मंदिर विवाद को लेकर भी बीजेपी पर करारा प्रहार किया. सीएम ने आगे कहा कि 2010 में गया के मुसलमानों ने भी बीजेपी को समर्थन दिया था.
नीतीश कुमार के संबोधन के दौरान बीजेपी विधायक ने नीतीश कुमार को टोका. इस पर सीएम ने कहा कि ‘तुम बैठो, तुम क्या जानते हो. अभी बच्चे हो. सीएम ने कहा कि हमारे खिलाफ बोलोगे तभी केंद्र वाला तुमको आगे बढ़ाएगा. 2020 के चुनाव में जो हालत हो गई थी सब देख रहे थे.
अपने संबोधन में सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि राज्य की योजनाओं को केंद्र की योजना बतायी जा रही है. जो एक साजिश है. उन्होंने कहा कि आज की केंद्र सरकार की कोई योजना नहीं. उन्होंने सवालिया लहजे में बीजेपी से पूछा कि ये जो आ गए हैं. वो कोई काम किये हैं? ग्रामीण इलाकों में सड़क बनाने का निर्णय काफी पहले हुआ. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में हुआ था निर्णय. केंद्र की वर्तमान सरकार ने एक भी काम नहीं किया है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हमको प्रधानमंत्री बनने की कोई महत्वकांक्षा नहीं. हमपर बिहार को संभालने का दबाव बनाया गया. वर्ष 2005 के नतीजों को भी याद किया जाए. नंदकिशोर यादव के बदले विजय सिन्हा को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया.
बिहार विधानसभा के विशेष सत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि आज सात पार्टियों का एक साथ समर्थन मिला है. पहले चार पार्टियां थी, अब सात पार्टियां हैं. अध्यक्ष को अगर हम समर्थन नहीं देते, तो क्या वो अध्यक्ष बनते.