पटना : Bihar Election 2020 News – लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने एनडीए से अलग होकर खुद अपने बूते बिहार चुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला लिया है. चिराग पासवान ने ट्विटर पर एक इमोशनल पोस्ट शेयर करके बिहार चुनाव को राज्य के लिए निर्णायक क्षण करार दिया है. चिराग की मानें तो यह चुनाव बिहार की जनता के लिए जीने-मरने का सवाल है. ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ नारे के जरिए चिराग पासवान ने बच्चों के पलायन को रोकने के लिए वोटिंग करने की अपील की है. बड़ा सवाल यह है कि आखिर चिराग पासवान अकेले क्यों चुनाव लड़ना चाहते हैं? क्या चिराग पासवान अपने बूते मैजिकल नंबर्स ला सकेंगे?
बिहार राज्य के इतिहास का ये बड़ा निर्णायक क्षण है करोड़ों बिहारियों के जीवन मरण का प्रश्न है क्योंकि अब हमारे पास खोने के लिए और समय नहीं है।
जे॰डी॰यू॰ के प्रत्याशी को दिया गया एक भी वोट कल आपके बच्चे को पलायन करने पर मजबूर करेगा। #Bihar1stBihari1st pic.twitter.com/VTRJSIuZR2— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) October 5, 2020
दरअसल, जेडीयू और लोजपा की अदावत सालों पुरानी है. 2005 के फरवरी-मार्च में बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रामविलास पासवान ने तत्कालीन केंद्र सरकार से इस्तीफा दिया था. इसके बाद अपनी पार्टी लोजपा का गठन किया था. रामविलास पासवान ने अकेले ही बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. दूसरी तरफ बीजेपी और जेडीयू राजद के कुनबे को खत्म करने की लड़ाई लड़ रही थी. जेडीयू ने लोजपा को साथ रखने की कोशिश की और लोजपा अकेले ही चुनाव में आगे बढ़ गई.
2005 के विधानसभा चुनाव परिणाम में लोजपा किंगमेकर बनकर उभरी. लेकिन, रामविलास पासवान की जिद्द के चलते बिहार में किसी भी दल की सरकार नहीं बन सकी. छह महीने बाद अक्टूबर-नवंबर में हुए मध्यावधि चुनाव में बीजेपी और जेडीयू गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला था. लोजपा मुश्किल से दस सीटें जीत सकी. सत्ता में आते ही नीतीश सरकार ने बिहार में महादलित कैटेगरी बनाया. उसमें लगभग हर दलित जाति को शामिल किया गया. जबकि, पासवान जाति को बाहर रखा गया. 2016 में नीतीश सरकार में लोजपा आना चाहती थी. लेकिन, जेडीयू ने उसे सरकार में शामिल करने से इंकार कर दिया.
जेडीयू और लोजपा के बीच बढ़ती दूरी का कारण बिहार का मुख्यमंत्री का पद भी रहा है. रामविलास पासवान बिहार के कद्दावर नेता रहे हैं. 1996 के बाद रामविलास पासवान का रूतबा केंद्र की सरकार में बढ़ता चला गया. कमोबेश हर सरकार में रामविलास पासवान मंत्रालय का जिम्मा संभालते रहे. हालांकि, चाहते हुए भी रामविलास पासवान बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके. माना जाता है केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के दिले में हमेशा बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बन पाने का मलाल रहा है.
बिहार की राजनीति को देखें तो वोट बैंक के हिसाब से पार्टियां अपना चुनावी एजेंडा तय करती हैं. कहीं ना कहीं 2005 के चुनाव परिणाम में लोजपा के हाथों बिहार में जातीय समीकरण का अचूक फॉर्मूला लगा था. इसकी बदौलत पार्टी किंगमेकर की भूमिका में आ गई थी. दूसरी तरफ आने वाले चुनावों में लोजपा के खराब होते प्रदर्शन ने उसे बिहार की राजनीति में कमजोर ही किया. रामविलास पासवान के पुत्र और लोजपा नेता चिराग पासवान बिहार में समानांतर राजनीतिक जमीन तलाशने की फिराक में हैं. चिराग चाहते हैं लोजपा की खोई साख वापस लौटे और पार्टी ‘किंगमेकर’ जैसा कुछ कमाल कर दिखाए.