बिहार में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक (KK Pathak) इन दिनों सबसे अधिक सुर्खियों में रहने वाले आइएएस अधिकारी हैं. के के पाठक शिक्षा विभाग व स्कूल की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लगातार सख्त फैसले ले रहे हैं. के के पाठक के निर्देशों को लेकर शिक्षक संघ कई बार विरोध भी जता चुका है. वहीं आम लोगों की राय उनके लिए अलग है. हाल में के के पाठक और शिक्षा मंत्री तक आमने-सामने हो गए थे. लेकिन आखिर सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के के पाठक के एक्शन को कैसे देखते हैं, ये खुद मुख्यमंत्री ने ही साफ कर दिया है.
मुख्यमंत्री ने स्कूलों की छुट्टियां कम किये जाने के सवाल पर कहा कि कहीं कोई विवाद नहीं है. हम सबलोग बच्चे-बच्चियों को पढ़ाना चाहते हैं तो इसमें बुराई क्या है? वहीं अपर मुख्य सचिव के के पाठक के कार्यों का मुख्यमंत्री ने समर्थन किया और कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है. वे बढ़िया काम कर रहे हैं. वे तो स्कूल में बच्चों को पढ़ाना ही चाहते हैं. इसमें भला परेशानी क्या है. विभाग या अधिकारी जो अच्छा समझते हैं, वही निर्णय लेते हैं. उन्होंने कहा कि जो लोग इसपर सवाल खड़ा करते हैं, उससे मुझे आश्चर्य होता है. यदि किसी को कोई शंका है तो वे आकर बताएं, हम सबकी बात सुनेंगे. कहा कि हम सबकी बात सुनते हैं और उनके हित में काम करते हैं. हम चाहते हैं कि बच्चे-बच्चियों की पढ़ाई समय पर हो.
उधर, के के पाठक की ओर से एक और निर्देश जारी कर दिया गया. अब स्कूलों में अनुपस्थित रहने वाले छात्र-छात्राओं की मुश्किलें बढ़ेंगी. राज्य भर में स्कूली में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने को लेकर एक-एक विद्यालय में आरडीडी, डीइओ और डीपीओ खुद से हस्तक्षेप करेंगे और सभी छात्र-छात्राओं एवं उनके अभिभावकों से बात करेंगे. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने स्कूलों में बच्चों की मौजूदगी 50 प्रतिशत से कम होने पर चिंता जाहिर की और सभी डीएम को दिशा निर्देश भेजा है.
के के पाठक ने कहा है कि एक जुलाई से स्कूलों में निगरानी व्यवस्था की गयी है. इसके तहत विद्यालयों का लगातार निरीक्षण किया जा रहा है.जुलाई से अब तक 50 प्रतिशत से कम उपस्थिति वाले विद्यालयों की संख्या कम हुई है, लेकिन अभी भी लगभग 10 प्रतिशत विद्यालय ऐसे हैं, जहां छात्र की उपस्थिति 50 प्रतिशत से कम है, जो चिंता का विषय है. ऐसे में सभी आरडीडी, डीइओ और डीपीओ को चरणबद्ध तरीके से काम करना होगा.
केके पाठक ने सभी डीएम को निर्देश दिया है कि अपने जिले के डीइओ, सभी डीपीओ को पांच-पांच विद्यालय एडॉप्ट करें. वहीं, जिस डीपीओ के कार्यक्षेत्र में ऐसा कोई विद्यालय नहीं है, जहां छात्र उपस्थिति 50 प्रतिशत से कम है, तो उसे कार्यक्षेत्र के बाहर का भी विद्यालय दिया जाये. एडॉप्ट किये हुए विद्यालयों में यह सभी पदाधिकारी लगातार प्रतिदिन जायेंगे. हरेक छात्र एवं उनके अभिभावकों से बात की जाये जो छात्र तीन दिन लगातार अनुपस्थित हैं, उसे प्रधानाध्यापक नोटिस दें. 15 दिन लगातार अनुपस्थित रहने पर छात्र का नामांकन रद्द किया जाये.
विभाग ने कहा है कि सभी छात्रों की ट्रैकिंग की जाये. देखा जाए कि वह कहीं एक ही साथ दो विद्यालयों में तो नहीं पढ़ रहे हैं.ऐसे छात्र नाम कटने के डर से लगातार 15 दिन अनुपस्थित नहीं रहते हैं और बीच-बीच में हमारे स्कूल में आते रहते हैं. विभाग को शिकायत मिली है कि डीबीटी लेने के उद्देश्य से छात्र, छात्राएं ने केवल सरकारी विद्यालयों में दाखिला लिया है, जबकि वह जिला या जिला के बाहर के निजी विद्यालयों में पढ़ाई करते हैं. वहीं, कुछ छात्रों के तो राज्य के बाहर (कोटा इत्यादि) में भी रहने की सूचना है. इस कारण से ऐसे हर एक मामले की ट्रैकिंग की जाए और इस तरह के छात्रों का नामांकन रद्द किया जाये, जो केवल डीबीटी के उद्देश्य से सरकारी विद्यालयों से जुड़े हुए हैं.
विभाग के मुताबिक प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार कई योजनाओं के तहत लगभग 3000 करोड़ की डीबीटी सहायता देती है यदि ऐसे 10 प्रतिशत छात्रों का भी नामांकन रद्दकिया गया, जो केवल डीबीटी के उद्देश्य से यहां नामांकित हैं और पढ़ते कहीं और है, तो राज्य को लगभग 300 करोड़ की सीधी बचत होगी. साथ ही, आरडीडी भी पांच स्कूल को एडाॅप्ट करें. वहीं, प्रचार-प्रसार करें.