बोकारो (सुनील तिवारी) : कभी रोजगार के सिलसिले में बोकारो आये थे, लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी में मन ऐसा रमा कि यहीं के होकर रह गये. जन्मभूमि छोड़कर बोकारो को कर्मभूमि बनाने वाले इन लोगों ने अब यहीं अपना ‘संसार’ बसा लिया है. इन्हीं के कारण इस्पात नगरी बोकारो में मिनी भारत का नजारा दिखाई देता है. यहां यूपी-बिहार के हजारों लोग निवास कर रहे हैं. इनमें से अधिकतर बोकारो आये बीएसएल में नौकरी के कारण और फिर यहीं बस गये. इन परिवारों ने यहां के खान-पान, रहन-सहन व रीति-रिवाजों को अपनाते हुए अपने प्रांत के तीज-त्योहार व परंपराओं को भी सहेजे रखा है. कभी छठ व गोवर्धन पूजन से माहौल भक्तिमय हो जाता है तो कभी गणेश महोत्सव और गरबा रास की धूम नजर आती है. कभी ओणम की खुशियां झलकती हैं तो कभी क्रिसमस पर्व की रौनक.
बोकारो में बीएसएल से रिटायर लगभग 14 हजार कर्मी विभिन्न सेक्टरों में लीज व लाइसेंस पर क्वार्टर लेकर रह रहे हैं. इनमें लीज पर लगभग पांच हजार व लाइसेंस पर लगभग नौ हजार क्वार्टर हैं. इसके अलावा चीरा चास में भी सैकड़ों रिटायर कर्मियों ने अपना आशियाना बनाया है. बोकारो की आबो-हवा पसंद आने के साथ-साथ कुछ लोग विवशता व मजबूरी में भी यहीं से होकर रह गये हैं. इनमें कुछ स्वास्थ्य कारणों से यहां रह रहे हैं, तो कुछ बच्चों की शिक्षा व रोजगार के कारण. कुछ का यह कहना है कि रिटायरमेंट के बाद गांव जाने के बाद लोग परदेसी समझते हैं. कुछ के गांव में खेती-बारी भी वैसी नहीं है कि वह रिटायरमेंट के बाद वहां जाकर उसमें जुट जायें.
बीएसएल से जुलाई 2010 में रिटायर रामानुज शर्मा ने सेक्टर-09 में लाइसेंस पर क्वार्टर लिया है. मूलत: गांव-बड़कागांव, नालंदा जिला-बिहार के रहने वाले हैं. क्वार्टर में पत्नी, बहू, बेब व पोता-पोती के साथ रह रहे हैं. कहा : जवानी यहां गुजारी, अब बुढ़ापे में कहां जाये? 20 की उम्र में आये 60 में रिटायर हो गये. गांव की बनावट ऐसी है कि लोग परदेसी समझते हैं. यहां गांव से अधिक आनंद आता है. हर जगह के लोग यहां पर है. सबसे बड़ी बात यह है कि स्वास्थ्य सुविधा के लिये यहां बीजीएच है. बिजली-पानी-सड़क की सुविधा बेहतर है. साथ हीं पोता-पोती के लिये यहां पढ़ाई की भी समुचित व्यवस्था है.
बीएसएल से मई 2014 में रिटायर श्रीकांत सिंह ने सेक्टर-09 में लाइसेंस पर क्वार्टर लिया है. मूलत: गांव बड़हरा, जिला नालंदा, बिहार के रहने वाले हैं. क्वार्टर में पत्नी, बेटा, बहू के साथ रह रहे हैं. कहा : बीएसएल में पूरी जिंदगी गुजार दी. मन यहां लग गया. शरीर बुढ़ा हो गया है. यहां इलाज के लिये हर सेक्टर में अस्पताल है. बीजीएच में इलाज की बेहतर व्यवस्था है. इलाज की जरूरत समय-समय पड़ती रहती है. ऐसे में यहां रहना हीं बेहतर समझा. साथ हीं बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की अच्छी सुविधा है. असके अलावा बोकारो का वातावरण अभी भी और जगह से अच्छा है. इसलिए यहीं रहना अच्छा लगा.
बीएसएल से अप्रैल 2013 में रिटायर विक्रमा राम ने सेक्टर दो डी में लाइसेंस पर क्वार्टर लिया है. मूलत: डेहरी-ऑन-सोन, बिहार के रहने वाले हैं. क्वार्टर में पुत्र, बहू, पोता-पोती के साथ रह रहे हैं. कहा कि गांव में विवाद चल रहा है. घर बनाने की सुविधा नहीं है. हार्ट का मरीज हूं. बीजीएच में इलाज चल रहा है. रेगुलर जांच कराना पड़ता है. इसके अलावा बाल-बच्चों की पढ़ाई करानी थी. पोता-पोती की पढ़ाई के लिये यहां अच्छी सुविधा है. इन्हीं कारणों से बोकारो में हीं रहना पसंद किया. लाइसेंस पर क्वार्टर ले लिया. यहां की रूटिन लाइफ है. साथ ही, बोकारो का वातावरण भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा है.
बीएसएल से मार्च 2006 में रिटायर चंद्रमा सिंह ने सेक्टर नौ में लीज पर क्वार्टर लिया है. मूलत: हरिहरपुर लालगढ़, जिला-सीवान के रहने वाले हैं. क्वार्टर में पत्नी, दो बेटा व बहू के साथ रह रहे हैं. कहा कि बुढ़ापा में तरह-तरह की बीमारी हो गयी है. यहां बीजीएच सहित सभी सेक्टरों में अस्पताल है. इससे इलाज की व्यवस्था तुरंत मिल जाती है. बेटा के रोजी-रोजगार की भी यहां व्यवस्था हो गयी है. गांव-घर में खेती-बारी भी उस तरह की नहीं है, जिससे रिटायरमेंट के बाद जाकर उसमें लगा जाय. उक्त कारणों से बोकारो में रहने का फैसला लिया. इलाज व रोजी-रोजगार की यहां पर अच्छी व्यवस्था है.
बीएसएल से दिसंबर 2009 में रिटायर टीपी सिंह ने सेक्टर दो में लाइसेंस पर क्वार्टर लिया है. मूलत: पटना जिला-बिहार के रहने वाले हैं. क्वार्टर में पत्नी के साथ रहते हैं. कहा कि रिटायरमेंट के बाद बीपी, सुगर, हार्ट सहित कई तरह की बीमारी से ग्रसित हूं. गांव में इलाज की सुविधा नहीं है. यहां पर हर सेक्टर सहित बीजीएच में इलाज की बेहतर व्यवस्था है. तुरंत अस्पताल पहुंच जाते हैं. गांव पर रहने के बाद इलाज के लिये बोकारो आना पड़ेगा. मुख्य रूप से इलाज के लिये हीं बोकारो में रह रहा हूं. वैसे भी लगभग पूरी जिंदगी यहीं पर गुजरी है. यहां रहने के कारण अपना समाज भी बन गया है, जो सुख-दु:ख का साथी है.
बीएसएल से फरवरी 2013 में रिटायर तापेश्वर सिंह ने सेक्टर नौ में लाइसेंस पर क्वार्टर लिया है. मूलत: गोड़ाबाली-बालीडीह के रहने वाले हैं. मतलब, बोकारो के हीं स्थानीय है. क्वार्टर में पत्नी, बेटा, बहू, पोता-पोती के साथ रह रहे हैं. बताया : पत्नी हार्ट की पेंशेट है. रात-बिरात जरूरत पड़ती है तो तुरंत बीजीएच पहुंच जाते हैं. रिटायरमेंट के बाद उतना पैसा नहीं मिला कि गांव पर घर बनाते. घर बनाते तो ‘घर’ कैसे चलता? इसलिए लाइसेंस पर हीं क्वार्टर लेना उचित समझा. क्वार्टर में पानी, बिजली की सुविधा भी बेहतर है. जिंदगी का एक हिस्सा सेक्टर में ही गुजार दिया. स्वास्थ्य के कारण क्वार्टर लिया.
लीज व लाइसेंस धारियों की ये हैं मांग
– आवास लाइसेंस स्कीम 2017 में 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी वापस लेकर ईएफ टाइप आवास का रेंट 1300 रुपए की जगह 1000 रुपए किया जाये.
– मेडिकल संबंधित क्लेम का अविलंव भुगतान किया जाय. जिनका मेडिकलेम रिनुवल हो गया है, उनका मेडिकलेम का भुगतान अविलंब किया जाये.
– मृत कर्मचारियों के आश्रितों, जिनके माता-पिता दोनों का निधन हो गया है, उन्हें अपना आवास लाइसेंस पर पूर्व की भांति दिया जाये.
– आवास का बाहर मेंटेनेंस, जिसमें छत का मरम्मत लाइसेंस धारियों की शिकायत पर रेगुलर कर्मचारियों की तरह किया जाये.
– बहुत से कर्मचारी का मेडिक्लेम बंद कर रखा गया है. इस विसंगति को दूर कर मेडिक्लेम जारी किया जाये.
– लाइसेंस स्कीम में अनुचित ढंग से लिया गया सर्विस चार्ज व रिनुवल चार्ज को समाप्त किया जाये.
– रिनुवल चार्ज / सर्विस चार्ज आवास लीज की तरह 33 वर्षों मे लिया जाये.
– मीटर रीडिंग के आधार पर बिजली बिल लिया जाये.
– आवास लाइसेंस को लीज में कन्वर्ट किया जाये.
Posted By : Guru Swarup Mishra